कवितासाहित्य-संस्कृति ‘यह तश्ना की है गज़ल, इस शायरी में गाने-बजाने को कुछ नहीं’समकालीन जनमतFebruary 3, 2018May 31, 2020 by समकालीन जनमतFebruary 3, 2018May 31, 20206 2955 तश्ना आलमी की याद में लखनऊ में सजी गज़लों की शाम लखनऊ । तश्ना आलमी की शायरी गहरे तक छूती है। ऐसा लगता है कि...