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विकास माॅडल पर सवाल उठाता है ‘ शालडुंगरी का घायल सपना ’

पटना । “आज जो देश का मुख्य अंतर्विरोध है, ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ उस पर उंगली रखता है। एक ओर कारपोरेट पूंजी का तंत्र है, जिसमें पी.एम., सी.एम., ठेकेदार, बिचौलिये- सब शामिल हैं, दूसरी ओर वे लोग हैं जो अपने अस्तित्व और जीवन की लड़ाइ‌याँ लड़ रहे हैं। इस तरह का उपन्यास रचना साहस का काम है।” अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिंह ने जन संस्कृति मंच, पटना द्वारा कालिदास रंगालय सभागार में ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ उपन्यास पर आयोजित परिचर्चा में ये विचार व्यक्त किये। उन्होंने उपन्यास को रोचक और पठनीय बताया।

इसके पूर्व उपन्यासकार मनोज भक्त ने विकास के मौजूदा मॉडल के कारण हो रहे विस्थापनों, प्रतिरोधों, दमन की घटनाओं और आंदोलनों में जीत के प्रसंगों की चर्चा करते हुए उनको उपन्यास लिखे जाने का उत्प्रेरक कारक बताया। उन्होंने कहा कि विकास की नीतियाँ आदिवासियों को उनके गाँवों और जंगल से बेदखल कर रही हैं।
वरिष्ठ लेखक और ‘कथांतर’ के संपादक राणा प्रताप ने कहा कि ‘शाल डुंगरी का घायल सपना’ एक राजनैतिक उपन्यास है। इसमें सामूहिक और मुखर विरोध है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों की समस्या अंतर्राष्ट्रीय समस्या है। यह समस्या विकास के यूरोपीय मॉडल के कारण पैदा हुई है। हमें इस यूरोपीय मॉडल के खिलाफ लड़ना होगा। ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ का नायक जनसमूह है। इस उपन्यास को बड़े धैर्य से रचा गया है। एक एक्टिविस्ट लेखक ही इस तरह जनजीवन की धड़कनों को व्यक्त कर सकता है।

युवा कवि अंचित ने कहा कि आज तंत्र की कार्यशैली तेजी से बदल‌ती रहती है। इन परिवर्तनों को उपन्यास अच्छी तरह दर्ज करता है। कई बार समस्याओं को अच्छी तरह समझना भी बदलाव की ओर ले जाता है।

कवि नवीन कुमार ने कहा कि ‘शालडुंगरी का घायल सपना’ ही एकमात्र राजनीतिक उपन्यास नहीं है। हिन्दी समेत विभिन्न भाषाओं में इस बीच 20-25 राजनैतिक उपन्यास आए हैं।

आलोचक सुधीर सुमन ने कहा कि यह जो आक्रामक पूंजीवादी विकास का रास्ता है, प्राकृतिक संसाधनों और मानव संसाधनों- दोनों की लूट और दोहन उसकी बुनियादी प्रवृत्ति है। सांप्रदायिक उन्माद, नफरत और हिंसा तथा तानाशाही की प्रवृत्ति उसके लिए सहयोगी है। इसे मनोज भक्त का उपन्यास बखूबी दिखाता है। यह झारखंड आंदोलन और व्यापक अर्थों में स्वतंत्रता आंदोलन के सपनों का भी घायल होना है। उपन्यास का आरंभ कारपोरेट कंपनी अर्था के प्रोजेक्ट के लिए मुख्यमंत्री भागवत राय द्वारा चौपाल लगाने होता है और अंत उस शालडुंगरी के मैदान को बचाने के लिए संघर्ष से होता है, जिस जमीन को सरकार अर्था को देना चाहती है। बीच में हाकी की कोच जेमा कुई का अपनी छात्रा विद्या के लिए न्याय की लड़ाई है, जो अंतत: व्यापक राजनैतिक प्रतिरोध का रूप ले लेती है। जेमा कुई की कथा को उपन्यास में बड़ी कुशलता से संयोजित किया गया है।

जसम बिहार के राज्य अध्यक्ष जितेंद्र कुमार ने कहा कि हमारे देश में संविधान के अनुसार सत्ता नहीं चल रही है। झारखंड में विस्थापन की बड़ी समस्या है।

परिचर्चा का संचालन जसम, पटना के सचिव राजेश कमल ने किया।

इस अवसर शिक्षाविद गालिब, पत्रकार पुष्पराज, कवि कौशलेन्द्र, पीयूष राज, कवयित्री गुंजन उपाध्याय पाठक, वरीष्ठ कवि रंजीत वर्मा, अनिल अंशुमन, प्रमोद यादव, का. अभ्युदय, का. कृष्णदेव यादव, पुनीत, राजन, समता, रुनझुन, रिया, प्रकाश, संजय आदि मौजूद थे।

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