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चित्रकला

शैलेन्द्र कुमार के छाया चित्र और समय की गति

कला, संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार सरकार तथा ललित कला अकादमी पटना के संयुक्त तत्वावधान में होने वाले महत्वाकांक्षी आयोजन, कला मंगल श्रृंखला के तहत, इस बार 22 से 27 जनवरी 2019 तक वरिष्ठ छायाकार शैलेन्द्र कुमार के छाया चित्रों की एकल प्रदर्शनी, ललित कला अकादमी पटना के कला दीर्घा में आयोजित है।

शैलेन्द्र कुमार कला जगत में प्रतिष्ठित छायाकार के रुप में स्थापित हैं। 1985 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय से ललित कला में स्नातक करने के बाद फोटोग्राफी को कैरियर के रुप में अपनाने के साथ ही इन्होंने छायाकारी को कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बना दिया। इस जूनून में उन्होंने धूर देहात से लेकर प्रसिद्ध स्थलों तक का सफर किया और उसे अपने कैमरे में कैद किया। उनके छाया चित्रों में जनजातीय, लोक, पारम्परिक, जन जीवन के तमाम महत्वपूर्ण क्षण, अपने पूरे आबोहवा के साथ मौजूद हैं। मिट्टी के बनें दीवार के खुरदरे टेक्सचर से लेकर मनुष्यों के चेहरे पर फैली हुई जीवंत जिजीविषा तक, रोजमर्रे की मसरूफीयत, अवकाश, कौतूहल, अभाव, निराशा और उम्मीद उमंग सब।

पाषाण शिल्पों के छायाकारी में शैलेन्द्र कुमार की छायाकारी कलात्मक उत्कर्ष को प्राप्त करती है। समय के प्रभाव से खंडित होती छीजती , यथा वायु दाब, जलधारा से शनैः शनैः घिसने, क्षरित होने के निशान से लेकर राजनैतिक सामाजिक बेदखली और बदलाव के खरोंच और जख्म तक को छाया – प्रकाश की सही उपस्थिति में कलात्मक दक्षता से कैमरे के फोकस में लेना अद्भुत है। छायाकारी के बाद संयोजित कर उसकी उत्कृष्ट प्रस्तुति उनकी छायाकारी को और भी खास बना देती है । छाया प्रकाश के नर्तन और सतह के खूरदरेपन के साथ मनुष्यों की क्रियात्मक उपस्थिती को उदेश्यपरक दृष्टिकोण से देखना और उस दृश्य की समुचित दृष्टिक्रम में अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति देना उनकी छायाकारी की विशेषता है। यानी कम शब्दों में कहा जाए तो, छायाकारी को कलाकारी बना देना शैलेन्द्र कुमार को खास बनाती है।

लोकपर्व में लोकमानस में बसी प्रसिद्ध पर्व स्थलों पर अपार जनसमूह एकत्रित होती है। उस विशाल समूह में मौजूद उमंग कामना प्रार्थना के भाव को कैमरे में कैद कर लेना साधारण दक्षता नहीं है मगर शैलेन्द्र कुमार ने इसे भी पूरी भंगिमा के साथ कैमरे में उतारा है। जहाँ अग्रभूमि से लेकर पृष्ठभूमि तक अराधना के तमाम भाव एकाकार हो गए हैं । यहां प्रदर्शित एक छाया चित्र में श्रमिकों के श्रमशक्ति को क्रियात्मक रुप में रूपायित किया गया है। पृष्ठभूमि में सतह के खूरदरेपन और अग्रभूमि में श्रम की सामूहिक सृजनशीलता को दिखाया गया है। इस यादगार प्रदर्शनी को देखना मेरे लिए शायद इस साल की बड़ी उपलब्धि है। कला प्रेमियों के लिए इस प्रदर्शनी देखना सुखद अनुभव सिद्ध होगा।

इस प्रदर्शनी के अवसर पर एक खुबसूरत विवरणिका प्रकाशित की गई है। जिसमें शैलेन्द्र कुमार के प्रतिनिधि छाया चित्र, उनके जीवन की महत्वपूर्ण उपलब्धि के साथ , सिद्ध कला समीक्षक विनय कुमार द्वारा, शैलेन्द्र कुमार के छायाकारी पर सारगर्भित आलेख भी है। लगभग बारह सौ शब्दों में विनय कुमार ने, छायाकार के हर कलात्मक पहलू को, जीवंत रुप में व्याख्यायित किया है। जिससे यह विवरणिका संग्रहणीय हो उठी है। इस प्रतिष्ठित प्रदर्शनी के लिए कला संस्कृति एवं युवा विभाग बिहार तथा ललित कला अकादमी पटना के साथ ही छायाकार शैलेन्द्र कुमार को बधाई और शुभकामनाएं।

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