रज्जब अली, हेमंत कुमार का पहला कहानी संग्रह है। इसमें कुल छः कहानियां हैं। इन सभी कहानियों की खासियत यह है, कि इसमें व्यवस्थागत प्रश्न को केंद्रीय विचार-तत्व बनाया है। और उसी के अनुकूल समाज के भीतर की वास्तविकता को कथानक का रूप दिया गया है। सभी कहानियां पॉलिमिकल हैं, बहस की मांग करती हैं। इस संग्रह की दूसरी खासियत यह है, कि कहानीकार जिस परिवेश से कहानी उठाता है, उसमें वह स्वयं रहता भी है। ऐसा अब नहीं दिखता कि कोई हिंदी का लेखक, गांव की कहानियां गांव में रहकर लिख रहा है। हेमंत कुमार ऐसे लेखक हैं। इसीलिए इनकी कहानियों के चरित्र बनावटी न होकर जीवंत और वास्तविक लगते हैं। चाहे, वह रज्जब अली हो या गुलइची, छोटे ठाकुर, रफीक, मिसिर बाबा, रजमतिया, ललसू राम।
हेमंत कुमार की इन कहानियों में 1990 के दशक में अपनाये गये उदारीकरण की नीतियों के सामाजिक-राजनीतिक परिणाम, ग्रामीण सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने में विघटन, पतनशील सामाजिक व्यवस्था की त्रासदियां दर्ज होती हैं। इस लिहाज से पहला कहानी संग्रह होते हुए भी विचार और रचना प्रक्रिया दोनों स्तरों पर यह परिपक्व है। नये कहानीकार प्रायः स्मृतियों से कहानी बुनते हैं, लेकिन हेमंत कुमार ठीक अपने समय और समाज के बीचोबीच खड़े होकर, सारे खतरे उठाते हुए कहानी बुनते- रचते हैं। ‘रज्जब अली’ और ‘गुलइची’ कहानियां इस रूप में अपने दौर की किसी भी कहानी से ज्यादा असरदार ढंग से समाज के सांस्कृतिक संकट को व्यक्त करती हैं। कुल मिलाकर इस कहानी-संग्रह को हिंदी समाज के स्वास्थ्य का पैरामीटर भी कहा जा सकता है। हेमंत कुमार से ऐसी और कहानियों की अपेक्षा हिंदी पाठक समुदाय को रहेगी!
रज्जब अली-हेमंत कुमार (कहानी-संग्रह), पृष्ठ 200, मूल्य ₹180, आधार प्रकाशन, पंचकूला, हरियाणा, फोन 0 172- 2 566 952
(रज्जब अली कहानी पर समकालीन जनमत पर जोरदार बहस चली थी, कई लेख इस क्रम में प्रकाशित हुए। पढ़ने के लिए नीचे के लिंक पर जायें)