लखनऊ, 9 सितंबर। मार्क्सवादी चिन्तक और जन संस्कृति मंच (जसम) के राज्य पार्षद तथा लखनऊ इकाई के उपाध्यक्ष आर के सिन्हा का विगत 27 अगस्त को मुजफ्फरपुर, बिहार में उनके पैतृक आवास पर दिल का दौरा पड़ने से आकस्मिक निधन हो गया। वे आगामी अक्टूबर में 76 वर्ष पूरा करने वाले थे। वे सिंचाई विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुए थे।. जीवन के प्रारंभिक दिनों से ही वामपंथ की ओर उनका झुकाव हो गया था। इससे मार्क्सवाद के गहरे अध्ययन की ओर उन्मुख हुए। इसी प्रक्रिया में भाकपा माले से जुड़े तथा नौजवानों और मजदूरों के बीच लगातार उन्होंने शिक्षण-प्रशिक्षण का काम किया।
आर के सिन्हा की स्मृति में लखनऊ के नरही स्थिति लोहिया भवन में ‘आर के सिन्हा स्मरण सभा’ का आयोजन जन संस्कृति मंच की ओर से किया गया। इसकी अध्यक्षता कवि और जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने की। उन्हें याद करते हुए कहा कि वे वैचारिक स्कूल थे। नौजवानों को शिक्षित करने का महत्वपूर्ण काम किया। तमाम उतार-चढ़ाव भरे दौर में भी उनकी वैचारिक अडिगता बहुत मजबूत थी। इसी प्रक्रिया में उन्होंने अपने को डीक्लस-डीकॉस्ट किया। उनके जाने से जो वैचारिक गैप पैदा हुआ है, उसे भरना आसान नहीं होगा। वे जसम के आधार स्तंभ थे। हमेशा पीछे रह कर आगे की भूमिका को अंजाम देते थे।
यह बात उभर कर आई कि आर के सिन्हा युवाओं और छात्रों के अच्छे दोस्त थे। उनसे बहुत खुल कर बात करते थे। वे एक तरह से शिक्षक की तरह बात करते थे और वैचारिक विमर्श के दौरान तमाम बड़े दार्शनिकों और विचारकों की किताबों और उनके उद्धरण कोट करते थे। उनका निजी पुस्तकालय किसी प्रोफेसर या गंभीर अध्येयता के पुस्तकालय की तरह था। वे क्वानटम फिजिक्स के विशेषज्ञ थे और उसके मानविकी पर प्रभाव को बड़ी खूबसूरती से बयां करते थे। उनके जाने से हमने एक बड़ा मार्क्सवादी विचारक, दोस्त और वामपंथी संस्कृतिकर्मी खो दिया जिसकी अभी हम सबको बहुत जरूरत थी। यह उनके जाने की उम्र नहीं थी। आर के सिन्हा एक वैचारिक शक्ति के रूप में सदैव हमारे साथ रहेंगे।
स्मृति सभा का संचालन लखनऊ इकाई के सचिव कथाकार फरजाना महदी ने किया। इस अवसर पर अनेक लेखकों, संस्कृति कर्मियों, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने उनके साथ की यादों तथा सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलनों में योगदान को साझा किया। सिन्हा जी के सहकर्मी रामायण प्रकाश ने उन्हें याद करते हुए कहा कि सिन्हा जी का जाना हम सबके लिए गहरा अघात है। उनका दोस्ताना व्यवहार और विचारशीलता को हम कभी नहीं भूलेंगे। कवि व उत्तर प्रदेश जन संस्कृति मंच के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भगवान स्वरूप कटियार ने उनको अपने तमाम संस्मरणों के जरिये अपना एक सच्चा वैचारिक मित्र बताया। वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर राय ने अनिल सिन्हा के साथ के दिनों जिनमें आर के सिन्हा की वैचारिक भागीदारी होती थी को याद किया और कहा कि वे गंभीर अध्येता थे। उनके पास विश्लेषण की वैज्ञानिक पद्धति थी।
जसम लखनऊ के अध्यक्ष, कवि-आलोचक चन्द्रेश्वर ने आर के सिन्हा के दार्शनिक रूप को याद किया। उन्होंने वामपंथी आलोचक डॉ चन्द्रभूषण तिवारी का संदर्भ देते हुए कहा कि सिन्हा जी के विचार जिस तरह बहस-विमर्श में आते थे, यदि उनका लिखित रूप आता तो उन विचारों को दूर तक पहुंचाने में मदद मिलती। सीपीआई एम एल लखनऊ के प्रभारी कामरेड रमेश सेंगर ने उन्हें एक सच्चा मार्क्सवादी बताते हुए कहा कि उनका आकस्मिक निधन पार्टी की अपूर्णीय क्षति है। चाहे जैसा भी समय रहा हो, वे जिस मजबूती के साथ कम्ययुनिस्ट आंदोलन और पार्टी के साथ खड़ रहे हैं, वह बेमिसाल है।
स्कूटर्स इंडिया के आर बी सिंह ने मजदूरों के बीच चलाए उनके शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यों को याद किया और कहा कि हम जैसों को वैचारिक रूप से उन्होंने तैयार किया। इसी योगदान की चर्चा आइसा के नीतीन राज तथा सुधांशु वाजपेई, जिन्होंने शुरुआत आइसा से की थी, ने की । कवयित्री विमल किशोर ने उन्हें शिक्षक के बतौर याद किया तो एपवा की मीना सिंह ने उन्हें वैचारिक अभिभावक बताया। इन दोनों ने कहा कि हर कठिन और उलझे समय में सिन्हा जी राह दिखाते थे। इस मौके पर आईपीएफ के दिनकर कपूर, आल इंडिया वर्कर्स कौंसिल के ओ पी सिन्हा, नागरिक परिषद के के के शुक्ला व वीरेन्द्र त्रिपाठी, रेलवे के अनिल कुमार, जसम के कलीम इकबााल, राकेश सैनी व प्रमोद प्रसाद, कवयित्री इंदू पाण्डेय, एपवा की कमला गौतम, जयप्रकाश जी आदि ने आर के सिन्हा के बहुआयामी व्यक्तित्व को याद करते हुए उनकी विचारशीलता और सक्रियता को प्रेरणास्रोत बताया। सभी ने कहा कि उनके आदर्शों को आगे ले जाना ही सच्ची श्रध्दांजली होगी। उपस्थित सभी ने आर के सिन्हा की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए दो मिनट का मौन रखा।