Any written work that is read, or is intended to be read, by a mass audience is Popular literature.
लोकप्रिय साहित्य में इस्तेमाल लोकप्रिय शब्द से ही इसके अर्थ को समझा जा सकता है अर्थात वह साहित्य जो लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर पढ़ा जाता हो, वही लोकप्रिय साहित्य कहलाता है. लोकप्रिय साहित्य के सही अर्थ को समझने के लिए जरुरी है कि यह समझा जाय कि कोई भी प्रकाशित साहित्य लोकप्रिय कैसे होता है. किसी साहित्य को लोकप्रिय होने की आवश्यक शर्त है कि उसका प्रकाशन बड़े पैमाने पर किया जाय. बड़े पैमाने पर किसी किताब के प्रकाशन के लिए जरुरी है कि प्रकाशन के उन्नत आधुनिक माध्यम उपलब्ध हों अर्थात प्रकाशन मशीनों की उपलब्धता इसके लिए अनिवार्य है. इसी में लोकप्रिय साहित्य के उद्भव और विकास की कहानी छुपी हुई है. आधुनिक मशीनों के अस्तित्व में आने से पहले भी साहित्य लोकप्रिय होता रहा होगा लेकिन लोकप्रियता की यह परिधि बहुत सिमित रही होगी. आधुनिक हिंदी साहित्य के पहले का साहित्य मौखिक परंपरा का साहित्य था, उसके प्रसार और उत्पादन में किसी मशीन का योगदान नहीं था. श्रवण की परंपरा ने ऐसे साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया और अपने स्तर पर वे लोकप्रिय भी हुए. लेकिन कथा साहित्य की मूल शैली गद्य है और गद्य का विकास आधुनिक काल की देन है. हालाँकि बहुत सारे विद्वान् यह मानते हैं कि गद्य की परंपरा आधुनिक काल के पहले से मौजूद है. लेकिन इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं. ऐसे में लोकप्रिय साहित्य जो मूलतः गद्य शैली में लिखा जाता , उसका विकास आधुनिक पूंजीवादी युग में ही हुआ.
लोकप्रियता को परिभाषित करना भी जरुरी है तभी यह बात भी समझ में आएगी कि कोई कृति या वास्तु कैसे लोकप्रिय होती है. लोकप्रियता क्या है? क्या यह ऐसी चीज है जो स्वतः आकार ले लेती है या इसके पीछे कोई शक्ति काम करती है. हमारे भारतीय वांगमय में बहुत सारे लोकप्रिय हिस्से हैं जिनको धार्मिक कथा या पारंपरिक कथा कहा जाता है. क्या वे स्वाभाविक रूप से लोकप्रिय हुए या उनको लोकप्रिय बनाने में किन्हीं शक्तियों का योगदान है. जाहिर है लोकप्रियता एक तरह की निर्मिती है और उसको किसी न किसी सामाजिक शक्ति द्वारा निर्मित किया जाता है. इसलिए साहित्य को भी लोकप्रिय बनाने वाली शक्तियाँ होती हैं. उनके अपने कुछ उद्देश्य होते हैं. इन उद्देश्यों में मूल्यों की स्थापना, मुनाफा और सामाजिक शक्ति संबंधों में वर्चस्व की स्थिति हासिल करना होता है.
लोकप्रिय साहित्य को परिभाषित करने के लिए कुछ सामान्य प्रश्नों के उत्तर तलाशने पड़ेंगे जैसे क्या वे पुस्तकें जो अधिक मात्रा में प्रकाशित होती हैं उनको लोकप्रिय साहित्य में शामिल किया जाता है? क्या जिन पुस्तकों की विषयवस्तु पाठक समुदाय के बड़े हिस्से को प्रभावित करती है उनको लोकप्रिय साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है. क्या किसी साहित्य के लोकप्रिय होने में बाजार के मुनाफे की प्रवृति की कोई भूमिका होती है? या ऐसा साहित्य जो पाठक की मूलभूत वृत्तियों को जागृत करने की क्षमता रखता है, उसे क्या हम लोकप्रिय साहित्य कह सकते हैं? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर में लोकप्रिय साहित्य की परिभाषा छुपी हुई है.
लोकप्रिय साहित्य को हिंदी जगत में लुगदी साहित्य, सड़क छाप साहित्य, घासलेटी साहित्य, अश्लील साहित्य, असभ्य साहित्य के रूप में जाना जाता है.
हिंदी साहित्य में इस विषय के अध्ययन को लेकर कमो-बेश एक नैतिकतावादी रुख अख्तियार किया जाता है. लेकिन इसके अध्ययन का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि लोकप्रिय साहित्य के द्वारा उत्पादित मूल्यों को आत्मसात किया जाय भले ही साहित्य का उद्देश्य मानव चेतना को परिष्कृत करना और उन्नत करना है. फिर भी इसके अध्ययन की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि अगर साहित्य का कोई रूप स्थापित साहित्यिक रूपों की तुलना में जन मानस को अत्यधिक प्रभावित करता है तो इस घटना की समाज-मनोवैज्ञानिक कारणों की पड़ताल करना, उसका मूल्यांकन करना जरुरी है. तभी हम अपने छात्रों को साहित्य के एक ऐसे क्षेत्र से परिचित करा सकते हैं, जिसका उत्पादन, प्रसार और बिक्री ‘साहित्यिक’ कृतियों के मुकाबले कहीं अधिक है. आलोचनात्मक दृष्टिकोण से ऐसे साहित्य का मूल्यांकन जरुरी और चुनौतीपूर्ण है. इसके अध्ययन से इस स्थापित धारणा की सच्चाई का भी पता लग सकता है कि यह पाठकों की अभिरुचियों या सौन्दर्यबोध का निर्माण नहीं करता. कोई भी साहित्य जिसका प्रसार बड़ी संख्या में हो रहा हो तो ऐसा विश्वास करना मुश्किल हो जाता है कि वह किसी भी तरह का सौन्दर्यबोध निर्मित ही न करे . यह जरुर है कि इससे निर्मित सौन्दर्यबोध जनमानस के मन में बैठे परंपरागत सौन्दर्यबोध को ही पल्लवित-पुष्पित करे. यह अनायास नहीं है कि आधुनिकावादी लेखकों, चिंतकों ने इसी नुक्ते के कारण इस साहित्य की आलोचना की.
ब्रिटानिका शब्दकोष के अनुसार- लोकप्रिय साहित्य उस साहित्य को कहते हैं जिसको बड़े पैमाने पर पढ़ा जाता है या उसके पढ़े जाने की इच्छा होती है. व्यापक अर्थों में बड़ी संख्या में छपने वाली पुस्तके, अधिक संख्या में प्रसारित होने वाली पत्रिकाएँ और डिजिटल संस्करण भी लोकप्रिय साहित्य में शामिल होते हैं. प्रायः यह शब्द उस गल्प साहित्य के लिए प्रयोग किया जाता है जो उच्च साहित्य, कला साहित्य या सामान्य साहित्य से भिन्न होता है. बीसवीं शताब्दी के अंत तक प्रायः लोकप्रिय गल्प को गल्प विधा में रखा जाता था और बाकी साहित्य को साहित्यिक गल्प की श्रेणी में रखा जाता था.
लोकप्रिय साहित्य की विशेषताएँ : लोकप्रिय साहित्य की श्रेणीगत विशेषता निश्चित नहीं है. समय के साथ इसकी श्रेणीगत विशेषता बदलती रहती है. जबकि वे पुस्तके जो बड़ी संख्या में प्रकाशित होती हैं और उनको बेस्ट सेलर का दर्जा मिलता है उनको सिर्फ इसी पैमाने पर लोकप्रिय साहित्य के रूप में परिभाषित किया जाता है लेकिन किसी पुस्तक के लोकप्रिय होने का केवल यही एक मात्र पैमाना नहीं हो सकता है. बहुत सारे साहित्यिक गल्प बेस्ट सेलर की सूची में शामिल होते हैं जबकि गल्प विधा के रूप में प्रकाशित बहुत सारी पुस्तकों को पाठक ही नहीं मिल पाते हैं. इसके विपरीत वह साहित्य जो अपने प्रकाशन काल से ही लम्बे समय तक प्रासंगिक और मूल्यवान बना रहता है उसे साहित्यिक कृति का दर्जा मिलता है. लेकिन इस तरह के मूल्याङ्कन के लिए लम्बी अवधि तक उसको इसी पैमाने पर बने रहना होता है. इसके बिना इस तरह का मूल्यांकन संभव नहीं हो सकता. उदाहरण के लिए विलियम सेक्सपियर के नाटकों को उनके अपने समय में लोकप्रिय साहित्य की श्रेणी में रखा जाता था लेकिन बाद के दिनों में उनको साहित्यिक कृति के रूप में मान्यता हासिल हो गयी.
इसके बावजूद लोकप्रिय साहित्य की कुछ सामान्य विशेषताओं के आधार पर इसको परिभाषित किया गया है. इसकी पहली विशेषता है कि यह पाठकों के मनोरंजन को ध्यान में रखकर लिखा जाता है क्योंकि मनोरजन एक ऐसा गुण है जो पाठकों को आकर्षित करता है. आनंददायक पठनीयता के अनुभव को बढ़ावा देने के लिए इसको आसान और सीधी-सादी शैली में लिखा जाता है. इसमें चरित्र प्रधान न होकर विषयवस्तु या कथा-क्षेत्र महत्त्वपूर्ण होता है और घटनाक्रम का वर्णन या कथा कहने का ढंग आसान होता है. इस तरह के साहित्य का कोई गहरा प्रभाव नहीं होता या ऐसा साहित्य पाठक की अभिरुचि/सौन्दर्यबोध का विकास नहीं कर पाता, इसको पाठक अगंभीर ढंग से सरसरी तौर पर पढ़ते हैं. ऐसी पुस्तकें जो अपनी तकनीकी और पठनीयता की विशिष्टता के कारण पाठक को लगातार पढने के लिए बाध्य करती हैं उन्हें उत्तेजक साहित्य कहा जाता है.
साहित्यिक गल्प दैनंदिन जीवन के यथार्थ में गहरे धंसे होते हैं जबकि लोकप्रिय साहित्य में पलायन की प्रवृति दिखाई देती है. इस तरह की विधा को विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- रोमांस, रहस्य, थ्रिलर, विज्ञान गल्प या हारर. यद्यपि कि इस विधा की उपविधाओं में भी उनकी सृजनात्मकता की अलग-अलग सीमाएं भी दिख सकती हैं. इनका निर्धारण उनके वर्णन के तरीके से होता है. अमेरिकी सिद्धान्तकार फ्रेडरिक जेम्सन के अनुसार- “विधायें/ शैलियाँ वास्तव में लेखक और उसके बीच समझौते की तरह होती हैं.” क्योंकि वे पाठकों की आकाँक्षाओं को सृजित करते हैं.
लोकप्रिय साहित्य की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसका सम्बन्ध गहरे रूप से व्यवसायिक शक्तियों से होता है. कोई भी कृति पाठकों को तब तक आकर्षित नहीं कर सकती जब तक वह पाठकों को आसानी से उपलब्द्ध न हो. यह आसान और सुलभ होना चाहिए. लोकप्रिय साहित्य प्रकाशन उद्योग की थोक उत्पादन की प्रक्रिया,विपणन, वितरण पर अधिक निर्भर होता है. प्रकाशन उद्योगों की बाजारवादी प्रवृत्ति का प्रभाव लेखक के लेखन के ऊपर भी पड़ता है, वह लगातार इस बात का प्रयास करता है कि वह साहित्य का उत्पादन बाजार की मांग के अनुरूप करे और उसकी अंतर्वस्तु के माध्यम से पाठकों को संतुष्ट करता रहे.
लोकप्रिय साहित्य के उत्पादन के दौरान बहुत सारे लेखक साहित्य के शास्त्रीय पैमानों को ध्यान में नहीं रखते इसकी बजाय वे उत्पादन पर जोर देते हैं. लोकप्रिय साहित्य के बहुत सारे लेखक अकल्पनीय ढंग से अधिक संख्या में पुस्तकें लिखते हैं, वे वर्ष में एक या एक से अधिक किताबें लिखकर अपने प्रतिबद्ध पाठकों की संख्या को बरक़रार रखते हैं और उनकी संख्या का विस्तार भी करते हैं. लोकप्रिय पुस्तकों की फिल्म, टेलिविज़न और पत्रकारिता के लिए स्वीकृति के माध्यम से उनका व्यावसायिक मूल्य उत्पन्न होता है. इसी से उनकी ब्रांडिंग की क्षमता और उनकी बिक्री तय होती है. वास्तव में लोकप्रिय साहित्य लोकप्रिय संस्कृति के ही दायरे की चीज माना जाता है, केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि अंतरपाठीय संबंधों के कारण भी यह लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा माना जाता है.
लोकप्रिय साहित्य का इतिहास : प्रिंटिंग प्रेस के विकास के बाद ही इस तरह के साहित्य का उत्पादन संभव हो सका जिसका लिखित रूप लोकप्रियता का महत्त्वपूर्ण पैमाना हासिल कर सके. यूरोप में सबसे पुराना उदाहरण पंद्रहवीं शताब्दी में छपने वाली लोककथाएं, मौखिक परम्पराएँ जैसे कि ब्रोडसाइड बैलेड्स और चुटकुलों की किताबें, रूमानी कहानियाँ और अल्मानेक हैं. यद्यपि कि विश्व भर में निम्न साक्षरता के कारण इन पुस्तकों की लोकप्रियता बहुत कम थी. सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक इंग्लैंड, फ़्रांस और उतर-पश्चिम यूरोप के अनेक हिस्सों में साक्षरता बढ़ गयी थी. जिससे प्रकाशकों ने शहर-दर-शहर बेचने के लिए चैप बुक जैसी ढेरों सस्ती किताबें छापना शुरू किया.
18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान, मध्यम और निम्न वर्गों के लिए प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के कारण पढ़ने वालों की संख्या में इजाफा हुआ . इसके अतिरिक्त, औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रौद्योगिकियों के विकास और परिवहन और संचार की बेहतर प्रणालियों के माध्यम से प्रकाशित कार्यों को अधिक व्यापक रूप से सुलभ बना दिया । इस समय के दौरान, साहित्यिक परिदृश्य में कथा साहित्य तेजी से महत्वपूर्ण हो गया। इसके साथ ही उपन्यास एक लोकप्रिय विधा के रूप में उभरा, विशेष रूप से मध्यम वर्ग के पाठकों के लिए, जिन्होंने शहरी बुकस्टॉलों और परिसंचारी पुस्तकालयों से किताबें खरीदना शुरू किया। अखबारों और पत्रिकाओं में भी कथा साहित्य को धारावाहिक छापा गया, जिसके कारण इनका तेजी से प्रसार हुआ। 19वीं सदी के अंत में, युवा कामकाजी वर्ग के पाठकों ने अपराध और रोमांच की सनसनीखेज कहानियाँ पढ़ीं।ग्रेट ब्रिटेन में पेनी ड्रेडफुल्स और संयुक्त राज्य अमेरिका में डाइम उपन्यास खूब पढ़े गए.
20वीं सदी के अंत तक विकसित हो चुकी कई विधाएँ हैं जिनके आधार पर अब लोकप्रिय कथा साहित्य को वर्गीकृत किया जाता है । सदी के मध्य तक, शैली लेबल को प्रकाशन उद्योग द्वारा एक विपणन उपकरण के रूप में संहिताबद्ध किया गया था, जिसका उदाहरण किताबों की दुकानों के भीतर विभाजित अनुभाग हैं। मुद्रण में प्रगति के कारण लोकप्रिय कथा साहित्य की बिक्री एक लाभदायक व्यापार बन गया था। जैसे-जैसे नई मीडिया प्रौद्योगिकियों ने मनोरंजन उद्योग के विकास को बढ़ावा दिया, सबसे अधिक बिकने वाली किताबें फिल्म और टेलीविजन रूपांतरण के लिए स्रोत सामग्री बन गयीं । यही वह समय है जब लोकप्रिय कथा साहित्य और साहित्यिक कथा साहित्य के बीच अंतर स्पष्ट होने लगा । आधुनिकतावादी लेखकों और उनके अनुयायियों ने स्वयं को सचेत रूप से सामूहिक रुचि से दूर कर लिया और अकादमिक जगत के भीतर साहित्य के बढ़ते अध्ययन ने साहित्यिक सिद्धांतों के गठन के माध्यम से इसके स्तरीकरण को मजबूत कर दिया। अर्थात जिस साहित्य को संस्थागत ढंग से पढ़ा और पढाया जाता है उसको अकादमिक साहित्य की मान्यता हासिल होती है।
(इसकी अगली श्रंखला अगले अंक में …..)