Friday, September 29, 2023
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ज़ु लिज़ी की कविताएँ पाठक वर्ग के बीच अपनी समझ को डी-क्लास करने की मांग करती हैं

तनुज 


समाजवाद के उत्तर-संक्रांति काल के दौरान विश्व बाज़ार से प्रभावित होकर चीन की बदली आर्थिक नीतियाँ और पूंजीवादी दक्षिणपंथी भटकाव ने देश की भीतरी मीमांसा को जिस तरह प्रभावित किया है, ” ज़ु लिज़ी” जैसे कवि निःसंदेह एक बेहतरीन उदाहरण है, उस विद्रूप भटकाव की मानस-अवस्थिति की केंद्र-पड़ताल के लिए।

संशाधनों की पूर्ति की तमाम कोशिशों के बावजूद भी चीन में भारी आर्थिक विभेद उस अस्तित्ववादी मनःस्थिति का जड़ कारण है, जिसे वर्गीय- आधार पर बनने वाली आलोचना दृष्टि से समझा जा सकता है।

ज़ु लिज़ी की कविताएँ पाठक वर्ग के बीच अपनी समझ को डी-क्लास करने के साथ-साथ, अतियथार्थवाद के द्वंद्वात्मक पहलू के घोर अध्ययन की मांग करती है, जों कविता में प्रयुक्त बिम्ब, प्रतीक, एवं रूपकों के उत्पादन के साथ होने वाले जटिल संघर्ष के जुड़ाव महसूसने और उस सिद्धान्तपरख रोचक काव्यात्मक-काव्येतर संस्करण से हमारा परिचय करवाती हैं।

फिर वहीं हमें उस पूंजीवादी उत्तर-आधुनिक चीनी समाज की समीक्षा का दारुण आलोक मौजूद दिखता है।

 

ज़ु लिज़ी की कविताएँ

1. प्रतिकूल

वे सब मानते हैं,
महज़ कुछ शब्दों के आधार पर
टिका  हुआ है मेरा अस्तित्व

मैं इस बात से इनकार भी नहीं करता

लेकिन बात यह है कि,
अब मैं कुछ भी बोलू

या रहूं चुप

मुझे मालूम है-
मैं इस समाज के लिए

सदा रहूंगा
प्रतिकूल

2. किराए का कमरा

लगभग दस वर्ग मीटर का
यह तंग और गीला कमरा

साल भर कोई धूप नहीं.

यहीं सोता हूँ,
खाता हूं,
मल-मूत्र त्यागता हूं,

 खांसता हूँ–

 यहीं पर उठता है सिरदर्द…

यहीं होता हूँ बूढ़ा,
और बीमार पड़ता हूँ.

हल्की पीली रौशनी के भीतर
सतब्ध होकर ताकते रहता हूँ,

कुड़कुड़ाता हूं हरवक्त-
किसी चूतिये की तरह

नरमी से गाता हुआ,
कविता लिखता हुआ,

मैं धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हूं
कुछ दूर आगे,

फिर हट जाता हूँ पीछे…

 हमेशा जब भी खोलता हूँ मैं
अपने कमरे की खिड़की
या इसका कमज़ोर दरवाजा,

 मुझमें दिखता है
एक मुर्दा-
जो खोल रहा है धीरे-धीरे
अपने ताबूत का ढक्कन…

3. एक पेच गिरा है धरती के ऊपर

अँधेरी रात के इस ओवर-टाइम में
एक पेच गिरा है इस धरती के ऊपर

सीधा घूमता हुआ,

बेहद हल्की आवाज़ के साथ.

(इसलिए कभी किसी का ध्यान

उस आवाज़ की तरफ़ गया भी नहीं )

ठीक पिछली रात की तरह
जब-

कोई गिर गया था धरती के ऊपर

4. मैं लोहे का एक चाँद निगल गया

मैं लोहे का एक चाँद निगल गया।

वे सब संबोधित करते थे
उसे  ठुका हुआ कील

मैं निगल गया था वह औद्योगिक मल,
वे बेरोजगारी के दस्तावेज़

जवानी थम जाती है जहां
इन मशीनों के आगे,
और मर जाती है,
यह अपने समय से पूर्व-

मैं निगल गया था यहां ऊधम और बेकसी
मैं निगल गया था पैदल चला जाने लायक पुल,
और जंग खाया हुआ जीवन

और वह सब कुछ जो मैं निगल चुका था,
वे सब निकल रहे थे बाहर,

 मेरी कंठनाली से—

“मानो एक आपत्तिजनक कविता के भीतर
समेटी जा रही थी,मेरे पूर्वजों की भूमि..”

कविताओं का अनुवाद और प्रस्तुति तनुज 

 

आत्म-हत्या के द्वारा देह-त्यागने वाले कवियों में शुमार ज़ु का जन्म जिएयांग ( चीन ) 1990 ई• में हुआ था और 2014 में इनकी असमय मृत्यु हो गई । बेहद यंत्रणापूर्ण जीवन जीते हुए बेहद कम उम्र में गंभीर अवसाद की चपेट में आकर इस कवि ने दुनिया से  विदा ले ली ।

ज्ञात हो, भाषा के कवि होने के साथ-साथ ज़ु कारखाने के कर्मचारी थे। ज़ु ने फॉक्सकॉन के लिए काम किया था और उनकी आत्महत्या के बाद मीडिया का ध्यान उनकी तरफ़ आकर्षित हुआ, जिसके बाद उनके दोस्तों ने उनकी कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया।

उनकी कविताएँ चुआंग 1 (“डेड जेनरेशन”) में चित्रित की गई हैं, जो किसी क्षेत्रीय प्रेस द्वारा प्रकाशित निबंधों का एक प्रतिरोध संग्रह है, जिसे कम्युनिस्टों द्वारा ही बरता गया था।

मूल कविताओं के लिए दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://libcom.org/blog/xulizhi-foxconn-suicide-poetry

 

 

अनुवादक तनुज विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन से हिंदी में स्नातक कर रहे हैं। उनसे tanujkumar5399@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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