युवा कवि विहाग वैभव की कविताओं में क्रांति, विद्रोह, विरोध, निषेध के तीखे स्वर हैं और वह प्रेम भी है जिसे संभव करने के लिए क्रांतियाँ की जाती रही हैं. एक नवोदित और प्रतिबद्ध कवि से यही अपेक्षा की जाती है. लेकिन विहाग की संवेदना में लोक-स्मृति गहरे बसी हुई है और यह एक खूबी उन्हें अपने समकालीनों या शहराती कवियों से कुछ अलग पहचान देती है. यह लोक संवेदना भी भावुकता या रूमान से नहीं, बल्कि साधारण जनों के श्रम और संघर्ष से उत्पन्न हुई है. एक कविता में वे कहते हैं: ‘जिस हवा को पिया अभी-अभी? उसी में आती रही मुझे पूर्वजों की पसीनाई गंध.’ एक अर्थ में वह लोक के प्रचलित और सामंती रूपों का भी अतिक्रमण करती है और ईश्वर को ‘सेनानायक, न्यायाधीश, राजा और ज्ञानी’ के पारपरिक अवतरणों का निषेध करती हुई कहती है: ‘ईश्वर को किसान की तरह होना चाहिए.’ किसान के रूप में ईश्वर की यह परिकल्पना जितनी रोमांचक है, आज किसानों की भीषण दुर्दशा और आत्महत्याओं के दौर में उतनी ही प्रासंगिक भी है और उसका एक जुझारू व्यक्तिव है: वह जेल में/ महल में/युध्द में/ जैसे बार बार/ लेता है अवतार/ वैसे ही उसे अबकी खेत में लेना चाहिए अवतार/ ऐसे कि/ चार हाथों वाले उस अवतारी की देह/ मिट्टी से सनी हो इस तरह कि/ पसीने से चिपककर उसके देह का हिस्सा हो गयी हो/ बमुश्किल से उसकी काली चमड़िया/ ढँक रही हों उसकी पसलियाँ/ और उस चार हाथों वाले ईश्वर के/ एक हाथ में फरसा/ दूसरे में हँसिया/ तीसरे में मुट्ठी भर अनाज/और चौथे में महाजन का दिया परचा हो.’
विहाग के कविता ‘सुलझे हुए’ चतुर लोगों को भी आलोचना का विषय बनाती है और कविता में बहुत अधिक तार्किकता को भी ख़ारिज करती है. सकी बजाय वह क्रांति और बदलाव के लिए मनुष्य के भीतर ]थोडा सा सनक, थोदा सा पागलपन’ को ज़रूरी मानती है. उनके निगाह में परिवर्तन महान विचारों से नहीं, बल्कि महान आकांक्षाओं से ही संभव हुए हैं. यह एक तरह से मध्यवर्गीय सतर्कता और चतुराई पर व्यंग्य भी है. सतही तौर पर लग सकता है की कवि तथ्य और वैज्ञानिकता का निषेध करते हुए एक कोरा रूमान रच रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है, वह सिर्फ उस संवेदनहीन कौशल और तर्क का विरोध कर रहा है जो मनुष्यता के किसी काम नहीं आते, उसके मददगार नहीं होते:‘जब मनुष्यता डूब रही हो तो/ नहीं चाहिए कोई तैराकी का कौशल-ज्ञान/साँसों को छाती के बीच रोक/नदी में लगाकर छलाँग/ डूबते हुए को बचा लेने के लिए/चाहिए तो बस/ एक आवाज की पुकार पर/ बेवजह डूब जाने का हुनर.’
लोक जीवन की मार्मिकता विहाग की कविता में संवेदनात्मक ज्ञान की तरह मौजूद है और यही खूबी रंगरेजिन जैसी कविता को एक समान्तर लोक-कथा का रूप देती है. इस संवेदना में जब प्रतिबद्ध राजनीतिक दृष्टि जुड़ जाती है तो कविता का एक मज़बूत व्यक्तित्व निर्मित होता है.
विहाग वैभव की कविताएँ –
1• खुल रहे ग्रहों के दरवाजे
_________________________
मैंने जिस मेज पर रखा अपना स्पर्श
उसी से आने लगी दो खरगोशों के सिसकने की आवाज़
हाथ से होकर शिराओं में दौड़ने लगी गिलहरियाँ
मैंने जिस भी कमरे में किया प्रवेश
उसी से आयी
कामगार पिताओं वाले बच्चों की जर्जर खिलखिलाहट
जिस हवा को पिया मैंने अभी कभी
उसी में आती रही मुझे पूर्वजों की पसिनाई गंध
होंठ के रंग को करते हुए कत्थई से लाल
जिस भी चुम्बन को जिया मैंने
उसी में बिलखती रही भगत सिंह की प्रेमिका
जिस भी फूल को चुना मैंने
तुम्हारे गर्वीले जूड़े में टाँकने के लिए
वही पकड़कर हाथ मेरा पहुँच गए मुर्दाघर
मैंने जिस भी शब्द को चुना
किसी से लड़ने के लिए
वही जुड़े हाथ कहने लगे मुझसे
क्षमा ! क्षमा ! क्षमा !
2. लड़ने के लिए चाहिए
______________________
लड़ने के लिए चाहिए
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक आवाज को बुलंद करते हुए
मुफ्त में मर जाने का हुनर
बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग
नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई
नहीं कर सकते कोई क्रांति
जब घर मे लगी हो भीषण आग
आग की जद में हों बहनें और बेटियाँ
तो आग के सीने पर पाँव रखकर
बढ़कर आगे उन्हें बचा लेने के लिए
नहीं चाहिए कोई दर्शन या कोई महान विचार
चाहिए तो बस
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक खिलखिलाहट को बचाते हुए
बेवजह झुलस जाने का हुनर
जब मनुष्यता डूब रही हो
बहुत काली आत्माओं के पाटों के बीच बहने वाली नदी , तो
नहीं चाहिए कोई तैराकी का कौशल-ज्ञान
साँसों को छाती के बीच रोक
नदी में लगाकर छलाँग
डूबते हुए को बचा लेने के लिए
चाहिए तो बस
थोड़ी सी सनक , थोड़ा सा पागलपन
और एक आवाज की पुकार पर
बेवजह डूब जाने का हुनर ।
बहुत समझदार और सुलझे हुए लोग
नहीं सोख सकते कोई नदी
नहीं हर सकते कोई आग
नहीं लड़ सकते कोई लड़ाई ।
3. मृत्यु और सृजन के बीच एक प्रेम-कथा
_________________________________
रे रंगरेजिन रे
छू ले कर दे चंदन ये तन
सुन ले कर दे रूई सा मन
रे रंगरेजिन रे
कहते हैं जब वह सफेद हिरन
उस गुलाबी हिरनी को सौंपकर अपना घुटना
आवाज में आँखों की पूरी आर्द्रता घोलकर
गाता था यह गीत तो
राजा का सिंहासन थरथराने लगता था
कानों में रेंगने लगते थे मगरगोह
अँगुलियाँ गलकर गिरने लगती थीं मोम सी
बदन को चाटने लगते थे काले साँप
आखिरश एक दिन राजा के सैनिक
भालों और बर्छियों पर टाँगकर उठा लाए हिरनी को
हिरनी की आत्मा भूनकर खा गए मंत्रीगण
और हिरन को डुबोकर मारा जंगल की नदी में
सुनने वाले कहते हैं
साँस की आखिरी छोर तक गाया था हिरन वह गीत
रे रंगरेजिन रे
छू…….चंदन..तन
सुन ले …रूई…मन
हिरन की देह को तो खा गयीं स्मृति की मछलियाँ
पर उसका हृदय पानी मे घुल गया
नदी का पूरा पानी हो गया हल्का गुलाबी
नदी का पानी जंगल के और जन पीते रहे कुछ दिन
पर अचानक यूँ ही एक रोज
एक खरगोश ने गाया एक बाघ के लिए वह गीत
फिर तो , भेड़िये मेमनों के लिए
मोर साँपों के लिए
शेर जिराफों के लिए
सबकुछ भूलकर गाने लगे वह गीत
रे रंगरेजिन रे …..
जैसे-जैसे गीत के स्वर जंगल के बाहर आये
राजा की साँसे फूलीं और वह मर गया
सिंहासन तड़ताड़कर टूट गया खण्ड कई
किले की मेहराबें बालू की तरह ढह गयीं
दफ़्न हो गए सभी सिपहसालार
मरघट हो गया पूरा का पूरा राज्य
सुनने में आता है कि उस तारीख़
देर रात तक जंगल से आती रही एक गीली आवाज
जैसे अपने पूरे वजूद को रोककर कण्ठ अपने
जीभ पर रखकर प्रेमिका की लाश
भरभराये स्वरों में फफकते हुए
गाता रहा कोई विरही अगले भोर तक
रे रंगरेजिन रे
छू ले कर दे चंदन ये तन
सुन ले कर दे रूई सा मन
रे रंगरेजिन रे …
4. इस देश की नागरिकता की नयी अहर्ताएँ
__________________________________
अपनी आत्मा को खूब सुखा दो पहले
फिर अपनी रीढ़ की हड्डी निकालकर सौंप आओ
हत्यारों ,आतताइयों और धार्मिक उन्मादियों के हाथ
अपने मस्तिष्क में धर्म का धुआँ भर लो इस कदर कि
तुम अपनी बेटियों , पत्नियों और माँओं के लिए
कुतिया , रंडी , और छिनाल जैसे सम्बोधनों का समर्थन कर सको
और सोच सको कि
मेरा प्रधानमंत्री इसके समर्थन में है
तो अवश्य ही अपूर्व गौरव की बात है
अपने हृदय को
फूल से बच्चों की जली लाश की राख से लीप लो
कर लो बिल्कुल मृत्यु सा काले रंग में
और इन बच्चों की हड्डियों में
वह रंग विशेष का झण्डा लहराकर
पूरे हृदय से भारत माता को करो याद
अपने कानों में ठूँस लो हत्या समर्थन के सभी तर्क-पुराण
और उन गला सुजाकर रोती माँओं की चीख को
भजन या राष्ट्रगान की तरह सुनो
जिनके ईश्वर जैसे बच्चे
स्कूल और अस्पताल से नहीं लौटे आज की शाम
जुबान को काटकर रख आओ सत्ता के पैरों पर
आँखों का पानी बेच आओ सम्प्रदाय की दुकान में
आने के पहले थोड़ा लाश हो जाओ
थोड़ा-थोड़ा हो जाओ पत्थर
फिर तो स्वागत है तुम्हारा इस देश में
एक देशभक्त और सम्मानित नागरिक की तरह ।
5. पार्श्व में नगाड़े बजते हैं
________________________
यह लोहार की भट्ठियों में काम कहाँ से आया
यह शमशीरों के खनकने की आवाज कैसी है
जो बूढ़े किसान सरकार की गोली खाकर मरे
आखिर कहाँ गए एकसाथ उनके जवान लड़के
वह अधेड़ आदमी
अपनी बूढ़ी बन्दूक को तेल क्यों पिला रहा
प्रदर्शन के लिए रखी तोपों का बदन
आखिर टूटता है क्योंकर
तीरों पर लगा जंग क्यों छूटता है आज की शाम
ये कुछ औरतें क्यों खरीद रही हैं एकसाथ
कफ़न और शौर्य की सामानें
जाने तो क्या हुआ है आज कि
सभी हलों के फार
पिघल कर खंजरों में ढल रहे हैं
इस दौर में मैं एकसाथ
उत्साह और भय से भरा हुआ हूँ
कोई बतायेगा
सभी हिनहिनाते हुए घोड़ो का मुँह
देश की राजधानी की तरफ क्यों है ?
6• जिन लड़कियों के प्रेमी मर जाते हैं
_____________________________
पहले तो उन्हें इस खबर पर विश्वास नहीं होता
कि धरती को किसी अजगर ने निगल लिया है
सूरज आज काम पर नहीं लौटेगा
आज की रात एक साल की होगी
फिर जैसे तैसे घर के किसी कोने में दफ़्न हो जाती हैं
और अपनी ही कब्र में
बिलखकर रोती हैं
मुँह बिसोरकर रोती हैं
तड़पकर रोती हैं
तब तक रोती हैं कि होश जाता नहीं रहता
और गले के भीतरी हिस्से
कोई गहरा घाव नहीं बन जाता
उन्हें बहुत कुछ याद आता है बिलखते बखत
इतना कुछ कि किसी कविता में दर्ज कर पाने की कोशिश
अनेक स्मृतियों की हत्या का अपराध होगा
जैसा कि हर बार रो लेने के बाद
या कोई भारी दुख झेलने के बाद
हम तनिक अधिक कठोर मनुष्य हो जाते हैं
ऐसे ही वे लड़कियाँ महीनों बाद
देह से मृत्यु का भय झाड़कर निकलतीं हैं घर से बाहर
एक बार फिर , पहली बार जैसी
हर दृश्य को देखतीं हैं नवजात आंखों से
वे लड़कियाँ फिर से हँसना सीखती हैं
और उनके कमरे का अंधेरा आत्महत्या कर लेता है ।
तरोताजा हो जाती है दीवारों की महक
जैसा कि मुनासिब भी है
वे लड़कियाँ एक बार फिर
शुरू से करती हैं शुरुआत
( यह एक आंदोलनकारी घटना होती है )
ऐसी लड़कियाँ
अपनी आत्मा के पवित्र कोने में रख देती हैं
पहले प्रेमी के साथ का मौसम
और संभावनाओं से भरे इस विशाल दुनियाँ में से
फिर से चुनती हैं एक प्रेमी
इस बार भी वही पवित्र भावनाएँ जन्मती हैं
उनके दिल के गर्भ से
वही बारिश से धुले आकाश सा होता है मन
जिन लड़कियों के प्रेमी मर जाते हैं
वे लड़कियाँ
दुबारा प्रेम करके भी बदचलन नहीं होतीं ।
7. मोर्चे पर विदागीत
________________________
उसके होंठ चूमना छोड़ते हुए
उसके चेहरे को भर लिया अँजुरियों में
और उसकी आँखों को पीते हुए मैंने कहा
मैं मिलूँगा तुमसे
तुम मुझे भूल मत जाना
दिन , महीने , साल लाँघकर
आऊँगा एक रोज अचानक
तुम्हें गोदी में उठा लूँगा
तब तुम्हारा चेहरा यकीनन
किसी पहाड़ी फूल सा ताजा और चमकदार हो जायेगा
वह मुझे पनियाई आँख से देखती रही बस
जैसे किसी को आखिरी बार देखा जाता है
मैंनें उसे अपनी देह से छुड़ाते हुए सच कहा –
मैं जा रहा हूँ उस युद्ध में
जिसकी घोषणा किसी मौसम ने नहीं की
जिसके बारे में कोई पीढ़ी नही सुनाएगी कहानियाँ
जिसकी वीरता के किस्से सिर्फ शहीद हुए सिपाही कहेंगें और सुनेंगें
यह युद्ध मेरे और मेरे राजा के बीच है
मेरा उन्मादी राजा
दुनियाँ की हर खूबसूरत चीज को
नेस्तनाबूद कर देने की योजनाओं में व्यस्त है
हर प्रकार की स्वतंत्रता को वह चबा लेना चाहता है
मनुष्यों को धर्म मे बदल देना चाहता है
लोगों के सिर से उनका मस्तिष्क ऐसे निकाल ले रहा है कि
खुद उन्हीं को कोई खबर नहीं हो रही
राजा जिस भी रास्ते से गुजर रहा है
उधर की हवाओं में वही दुर्गंध फैल जा रही है
जो लाखों-लाख इंसानों की लाशों के एकसाथ जलने से आती है
राजा ने एक ऐसे जानवर को गोद ले रखा है
जो अपने अपूजकों की हत्या
अपने स्पर्श भर से कर देने की काबिलियत के लिए मशहूर हो रही है
इतना ही नहीं
मेरा क्रूर राजा
तुम जैसी बेकसूर प्रेमिकाओं को
कैद करके
किसी अनन्त अंधेरे में फेंक भी देना चाहता है सदियों सदियों के लिए
कि प्रेम कोई जघन्य अपराध हो
मेरी बातों से वह और भी उदास हो गयी
उसका गला रुँधने लगा
और उसकी खूबसूरत आँखे भरभरा गयीं
वह समझ गयी कि मैं न लौटने के लिए माफी माँग रहा हूँ
जब मैं कह रहा हूँ –
मैं मिलूँगा तुमसे
मैंनें उसे हिम्मत बँधाया
नहीं, वे मेरी हड्डियों में बारूद भर देंगें
निकाल लेंगें मेरी आँखें
कानों में उबलता तेल डालेंगें
मेरे नाखूनों में कील ठोंककर तुम्हारा नाम पूछेंगें
उस आखिरी घड़ी में मैं तुम्हें याद करूँगा
हृदय की असीम पवित्रता की दीवाल पर तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर देखकर
वे बार – बार पूछेंगें नाम तुम्हारा
और मैं मर जाऊँगा पर नहीं बताऊँगा
तब वे जान जायेंगें
यह अन्त नहीं है
मेरा जैसा दूसरा आयेगा
तीसरा , चौथा , पाँचवा और न जाने कितने आयेंगें
जो अपनी प्रेमिका के लिए
अपनी कल्पनाओं जितनी खूबसूरत दुनियाँ चाहते हैं
वह अब फफक उठी और धम्म से मुझसे चिपक गयी
मैंने मुस्कुराते हुए
अपनी कलम उठायी
किताबों को पहना
और कविताओं को पीठ पर लाद
कस्बा छोड़ने के पहले कहा –
मैं नहीं भी लौटा तो मेरे जैसा दूसरा लौटेगा
तुम उसे मेरे जितना ही प्यार करना
वह उसका हकदार होगा
यूँ तो
मैं मिलूँगा तुमसे
साथियों ! मेरा विदागीत यहीं खत्म होता है
इस पेड़ को शुक्रिया कहो और चलो उठो
हमें राजा को उसकी हवशी योजनाओं समेत दफ़्न कर देना है
और समय रहते लौटना भी तो है
अपनी – अपनी प्रेमिका की बाहों में
यह इतना कठिन भी नहीं है ।
8. ईश्वर को किसान होना चाहिए
__________________________
ईश्वर सेनानायक की तरह आया
न्यायाधीश की तरह आया
राजा की तरह आया
ज्ञानी की तरह आया
और भी कई – कई तरह से आया ईश्वर
पर जब इस समय की फसल में
किसान होने की चुनौतियाँ
मामा घास और करेम की तरह
ऐसे फैल गयी है कि
उनकी जिजीविषा को जकड़ रही है चहुंओर
और उनका जीवित रह जाना
एक बहादुर सफलता की तरह है
तो ऐसे में
ईश्वर को किसान होकर आना चाहिए
( मुझे लगता है ईश्वर किसान होने से डरता है )
वह जेल में
महल में
युध्द में
जैसे बार बार
लेता है अवतार
वैसे ही उसे
अबकी खेत में लेना चाहिए अवतार
ऐसे कि
चार हाथों वाले उस अवतारी की देह
मिट्टी से सनी हो इस तरह कि
पसीने से चिपककर उसके देह का हिस्सा हो गयी हो
बमुश्किल से उसकी काली चमड़िया
ढँक रही हों उसकी पसलियाँ
और उस चार हाथों वाले ईश्वर के
एक हाथ में फरसा
दूसरे में हँसिया
तीसरे में मुट्ठी भर अनाज
और चौथे में महाजन का दिया परचा हो
( कितना रोमांचक होगा ईश्वर को ऐसे देखना )
मुझे यकीन है ईश्वर महाजन का दिया परचा
किसी दिव्य ज्ञान के स्रोत की तरह नहीं पढ़ेगा
वह उसे पढ़कर उदास हो जायेगा
फिर वह महसूस करेगा कि
इस देश में ईश्वर होना
किसान होने से कई गुना आसान है
सृष्टि के किसी कोने
सचमुच ईश्वर कहीं है
और वह अपने अस्तित्व को लेकर सचेत भी है
तो फिर अब समय आ गया है कि
उसे अनाज बोना चाहिए
काटना चाहिए , रोना चाहिए
ईश्वर को किसान की तरह होना चाहिए ।
(कवि विहाग वैभव बीएचयू से ग्रेजुएशन करने के बाद हिंदी से एम.ए. कर रहे हैं. टिप्पणीकार मंगलेश डबराल समकालीन कविता के जाने-माने कवि और लेखक हैं. )
2 comments
Comments are closed.