समकालीन जनमत
कविता

सत्यम तिवारी की कविताएँ व्यवस्था के दंभ से व्यक्ति के भीतर पनप रहे अन्तर्द्वंद को व्यक्त करती हैं

अनुराग यादव


सफलता की नयी-नयी मिसालें स्थापित करने के वर्तमान समय में एक व्यक्ति के भीतर बढ़‌ती बेचैनी को दर्शाने का सफ‌ल प्रयास सत्यम तिवारी की कविताओं में देखने को मिलता है। उनकी कविताएँ एक ऐसे व्यक्ति की बात करती हैं जो स्वयं में सम्पूर्ण क्षमताओं से युक्त है जो निम्न पँक्तियों द्वारा स्पष्ट होता है –

“और अगर वह अपनी बात का भरम रखे
तो वह आ भी सकता है
और समाप्त कर सकता है
अच्छाई और अंधेरे के बीच का वैमनस्य।”

परन्तु स्वयं की उपस्थिति को समाज के सम्मुख द‌‌र्ज कराया जाए या नहीं वह इस अन्तर्द्वन्द में फंसा है। जो ‘अहर्निश’ कविता की निम्न पंक्तियों द्वारा ज्ञात होता है-

“वह इतना चुप है
कि वही कोई कंकड़ फेंके
वही गिराए पत्ती
तो उसकी उपस्थिति का आभास हो।”

और इस अन्तर्द्वन्द का परिणाम यह होता है कि व्यक्ति आत्मालोचना का रास्ता अपनाता है जो  उसके भीतर पसर रहे अकर्मण्यता का विरोध करती है और  क्योंकि यह अकर्मण्यता न केवल उस व्यक्ति  के लिए बल्कि समाज के भी हानिकारक है। जिसको ‘अपरिचित’ कविता की निम्न पंक्तियां दर्शाती है –

“यही उसकी चोरी है
पकड़ा भी जाएगा 
तो सजा कटेगा कोई और।”

कवि  केवल एक स्थिति को ही दर्शा कर रुकता नहीं है बल्कि आत्मालोचना के बाद व्यक्ति में उत्पन्न हुई  यथास्थिति से  विरोध की भावना को भी उसकी कविता में देखा जा सकता है, जो समाज में व्याप्त उस अंधकार को समाप्त करने के लिए तत्पर होती है जिस अंधकार में ‘अहर्निश’ कविता का व्यक्ति छिपा हुआ है। अपने पाठक से संवाद करते हुए कवि अपने भीतर व्याप्त उस डर को भी उजागर करता है जब सब कुछ व्यवस्था के मकड़जाल में उलझ जाता है –

“सूरज के पानी में लुढ़‌कने से 
देश का सर का मानचित्र बनता था
यह प्रकृ‌ति पर‌ मुकद‌मे के शुरुआत थी
सिंदूरी रंग लाल होता था
पाक मंजर खाक होता था।”

इस मकड़‌जाल से निकलने के लिए वह माँग करता है एकजुटता की। ऐसी एकजुटता जो व्यक्ति को इतना विश्वास प्रदान करे कि अपने भीतर व्यवस्था के विरुद्ध चल रहे अंतर्द्वंदों को प्रकट करने के लिए उसे अंधेरे में छिपने की आवश्यकता न हो।

कवि ‘आंसू’ कविता के माध्यम से स्वीकारता है कि इस एकजुटता को बनाना  मुश्किल है पर एक बार यदि यह कार्य संभव हुआ हो वह स्वयं ही सबको अपने साथ चलने के लिए प्रेरित करने में सक्षम होगी।

“नमी ही जन्म देगी नमी को भागीरथ
ढूंढ लाओ एक बूंद कही से।”

कवि अपने कविधर्म के प्रति भी पूरी तरह सजग है वह अपनी कविता में कुछ भी ऐसा सम्मिलित करने को तैयार नहीं है जिसका अनुभव उसने न किया हो। ‘परिसीमन’ कविता ऐसे करने वाले कवियों पर एक एक व्यंग्य करती हुई पायी जाती है –

“पशु अगर‌ पेट से अधिक मुँह भर ले
और कवि अनुभव से अधिक कविता
दोनों को ही बाद में  
जुगाली करनी पड़ती है।”

सत्यम तिवारी की कविताएँ व्यवस्था के दंभ से व्यक्ति के भीतर पनप रहे अन्तर्द्वंद से निर्मित कविताएँ है जिसके द्वारा वे एक तरफ व्यक्ति के भीतर साहस भरने का कार्य करते हैं और दूसरी तरफ उसे एक‌जुटता के महत्व को समझाते हैं, इसके लिए भी ये कविताएँ महत्वपूर्ण है क्योंकि कवि केवल कविता लिखने की खानापूर्ति करने के लिए कविता नहीं लिखता बल्कि उसके अन्दर उबल रहा लावा जब बाहर निकलता है तो उसकी कविता की उत्पति होती है। जिससे वो एकांत में एकत्रित किए गए अपने अनुभव को एकजुटता स्थापित करने वाली कविता के रूप में पाठक के सम्मुख रखने में सक्षम हो पाता है।

सत्यम तिवारी की कविताएँ

 

1. अहर्निश

वह भरता है अंतर्विरोधों से
और नहीं करता भूल-चूक माफ़
ठोकर मारता है लगने से पहले
प्रतिक्रिया से अधिक
क्रिया में उसका भरोसा
निर्माण से पूर्व विध्वंस में

एक वही है जो
शुक्रिया अदा करता है
कर्जदार नहीं होता

वह इतना चुप है
सब अपनी ही बोली में
असहज हो जाते हैं

पर उसकी चुप्पी में
दूसरों की तरह अहं नहीं है
कोई वहम नहीं है श्रेष्ठता का

वह इतना चुप है
कि वही कोई कंकड़ फेंके
वही गिराए पत्ती
तो उसकी उपस्थिति का आभास हो

जबकि चीज़ें हैं कि घूमती हैं
उसी के चारो तरफ
लोग हैं कि उसे ही जल देते हैं

उसके हाथ प्रार्थना में नहीं
हाथों से जुड़ते हैं
उसका माथा देवालयों में नहीं
शर्मिंदगी में झुकता है

अंधेरे में गा सकता है वह आदमी
या आ सकती है उसकी तस्वीर
नहीं उसका चेहरा नहीं चमकदार
रौशनी नहीं खाती उससे मुंह बाए
नीम अंधेरे में है वह छुपा
जैसे खेतों में खरपतवार

और अगर वह अपनी बात का भरम रखे
तो वह आ भी सकता है
और समाप्त कर सकता है
अच्छाई और अंधेरे के बीच का वैमनस्य।

 

2. अपरिचित

यह अकर्मण्यता के दंश से जन्मा
नुक्कड़ों पर दुकान है
और सड़को पर रंगीनी

उसे जिनपर दया आती
क्या वह उनसे बेहतर था
उसे जिनपर गुस्सा आता
क्या वह उससे बेहतर थे

गोली खाकर नींद आना
और नींद गंवाकर गोली खाना
एक बात होती
तो उसे कब की नींद आ गई होती

यही उसकी चोरी है
पकड़ा भी जाएगा
तो सजा काटेगा कोई और

वही सबकी शुभकामना थी
यही सबका प्रलाप
कि प्रपात से गिरता था जल
एक पत्थर उसे चीर देता था

सूरज के पानी में लुढ़कने से
देश का सर कटा मानचित्र बनता था
यह प्रकृति पर मुकदमे के शुरुआत थी
सिंदूरी रंग लाल होता था
पाक मंज़र खाक होता था

तारपीन की महक में
जले हुए लाश की गंध सम्मिलित थी
पिता ने कितनी शिद्दत से
दरवाजे को रंगा था

दूर से ये क्या आ रही है
कातर कीर्तन की आवाज़
ठंड जिसे कंपकंपा रही है
जंग उसे भोथरा रही है
गले में फंस कर
रह गया है एक अपशब्द

बंधु, मैं इसी से डरता था
आग
मुझे आग चाहिए
आग जानते हो?

यह आवश्यक नहीं कि
मुझे ही किया जाए आमंत्रित
पर जिसे भी चुना जाए चुनने के लिए
वे मेरी तरह लाचार लोग न हो

आईना साज
चाहे तो वे लोग आए मेरे ही खिलाफ़
लेकिन मिलकर आएं।

 

3. मुर्दंगी का हुड़दंग

तुम्हारे समय में
हमारे समय की बात नहीं होती
समय चाहे जितना भी आकस्मिक हो
इतनी जल्द किसी का नहीं होता

कोई मरता है तो उसे भी
मरने की ऐसी फुर्सत नहीं होती
कि उसका मरना रोजमर्रा पर
धरना प्रदर्शन मान लिया जाए

किसी की हँसी रोके नहीं रुकती
कि साले के पास मरने के वक्त भी
सिर्फ़ एक कुत्ते के मौत की मिसाल
और एक अवैधानिक गल्प का सहारा भर था
तो कोई इसलिए रोता है
कि वह इस दुनिया में आने पर
हँस भी नहीं सकता

अगर त्योहार से पहले की मृत्यु
मृत्यु को त्योहार में तब्दील करे
तो घर लौटना न लौटना
कोई मसअला नहीं रह जाता
अब यह कोई मसवरा नहीं कि
घर वही है जिस आँख में है तुम्हारी ज़मीन

उतनी देर तक दिखो
जितनी देर तक
धुंध में कुंद नहीं होती दृष्टि
गाड़ियों की पीठ पर लिखा
आदि इत्यादि दिखता है
हवाई जहाज़ की बात अलग है
वह दिखता नहीं उड़ता है
रेलगाड़ी रुकती है आउटर पर
आदमी चेन खींच कर उतर भी नहीं पाता!

 

4. पोस्टमार्टम

अगर सारा जीवन एक दिन का होता
तो इलाज़ के ठीक एक दिन पहले
मैं ठीक होकर कहता
कि लो मैं ठीक हो गया

फिर सारा दिन कराहता
कि इन हरामजादों ने
कभी मेरा इलाज नहीं कराया
और समझता कि जीवन मिला भी
तो अधकचड़ा
वह भी पूरा भरा

भगवान नहीं डॉक्टर
तैराक नहीं
सिर्फ़ तुम चाहोगे तो
मैं बचूंगा

मैं सौ रुपए में सोने
और पचास रूपए में
खाने वाला आदमी
मुझे जान से जाने की
दुआ मत दो

मैं अगर मर गया
तो वह आऊंगा तुम्हारे पास
लेकर कौन सा मुंह!

तुम मरे हुए मुंह पर
एक जली हुई सिगरेट खिचोगे
तुम्हारी छुरी होगी
एक जिए हुए देह के आर-पार!

 

5. जो भी रख दो इस शहर का नाम

वह छत से लटकते पँखों का तीर्थस्थल था
और मेले में बिछड़े पितरों का जमवाड़ा

मैं जब तक वहाँ पहुँचा
हौसला जा चुका था
और हवा के नाम पर
फड़फड़ा रहे थे भगतों के पंख

दो क्रम संख्याओं के मध्य थी
ट्रेनों के गुजरने जितनी जगह
जब वहाँ रेलगाड़ियाँ नहीं थी
उनके गुज़र जाने का ख़तरा था

यहाँ आकर मैंने जाना
कैसे पाँच-पाँच मिनट में
कटता है पाँच मिनट

लिखी जाती है
खीझ पर एक कविता

जाओ जाओ इलाहाबाद
मैं तुममें से जाता हूँ
जाता हूँ और ऐसे जाता हूँ
जैसे जाने के बाद याद आऊँगा
याद के बाद क्या होगा?

तुम्हारा ठठेरपन छोड़कर मैं जाता हूँ
मैं जाता हूँ थेथर होने के बावजूद भी
तुम्हारी ऊब से मैं भोथरा गया

अब जिसे जाना हो वह जाए प्रयागराज।

 

6. आंसू

जितनी रात है
जलने पर ही ख़त्म होगी
जितनी बात है
कहने पर ही खत्म होगी

दीया जलेगा
बातों का कुँआ चुक जाएगा

नमी ही जन्म देगी नमी को भागीरथ
ढूंढ लाओ एक बूंद कहीं से।

 

7. कथेतर

कठिन है भरना
कागज़ का कोरापन
रेलगाड़ी में कोयला
उससे भी कठिन

फिर भी
पा ही गया मैं
उमीद का उस्तरा
पैंट भर घुटना

फिर भी
आ ही गया मैं
दरीचे से दरकिनार
बगीचे से बदस्तूर

यह तो हुई कथा की बात
अब नाव में अतिरिक्त है
जो भी समान
उसे समंदर में फेंक दो ।

 

8. इति

यहाँ पहुँचकर भी तो
पूरा होता है यात्रा का एक पड़ाव
खुलता है तिलिस्म का प्रवेशद्वार

पहुँचते ही पकड़ता है कोई
अप्रत्याशित अशक्त
खिंचता है बहुप्रतीक्षित भवितव्यत

यहीं जकड़ती है हमें अधीरता
स्पर्श चिंगारी को ईंधन देता है
यहीं टूटता है सदियों पुराना श्राप
राख के पुतले जलते हैं
और भाप की रेलगाड़ियाँ चलती हैं

यहीं हैं वक़्त काटने की सबसे ऐच्छिक जगहें
सभी विकल्पों में सबसे वैकल्पिक
दैनिक सहनशीलता पर टिका है इनका अस्तित्व

जाने-अनजाने कितनी अनहोनियाँ
यहाँ टलतीं हैं एक साथ
कोई निरखेगा तो बिलखेगा
कोई सोचेगा तो सिहरेगा।

 

9.परिसीमन

मकड़ी अगर शहद भी बनाना चाहे
तो बनता जाला ही है
पेड़ अगर कदम भी बढ़ाना चाहे
तो रहता है जड़ ही

पशु अगर पेट से अधिक मुँह भर ले
और कवि अनुभव से अधिक कविता
दोनों को ही बाद में
जुगाली करनी पड़ती है।

 

10. ख़ालीपन का सोनोग्राफ

फिर वही गीत नहीं
फिर वह कितना भी पसंद हो

कोई और गीत क्यों चाहिए?
और कोई गीत क्यों नहीं?

लावा जो उबल रहा है
सतह के नीचे
वह किसी खाली जगह से
बाहर आएगा

चीज़ों में बढ़ती जा रही है
जगह लेने की होड़
जबकि खाली हुई जगहें
छोड़ी हुई जगहें नहीं हैं।


कवि सत्यम तिवारी, जन्म : 2003
निवास: गढ़वा, झारखंड
शिक्षा: राजनीति विज्ञान (स्नातक), इलाहाबाद विश्विद्यालय
वर्तमान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय संबंध, परास्नातक का छात्र।
प्रकाशन: कई पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।

नई धारा “युवा कवि” पुरस्कार 2023

 

टिप्पणीकार अनुराग यादव, जन्मतिथि 26 सितंबर 2001 है। अनुराग, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हैं। कविताएँ लिखते हैं। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामनगर और बाराबंकी से पूर्ण की है। इनका स्नातक हंसराज कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी से वर्ष 2022 में पूर्ण किया तथा 2024 में हिंदू कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी से परास्नातक की शिक्षा पूर्ण की है ।

सम्पर्क: 6386080963

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