लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) ने लखनऊ विश्वविद्यालय की सहायक आचार्य डॉ. मद्री काकोटी के खिलाफ जारी किए गए कारण बताओ नोटिस और दर्ज की गई झूठी एफआईआर तथा प्रसिद्ध लोक गायिका नेहा सिंह राठौर पर हजरतगंज कोतवाली (लखनऊ) में रविवार को केस दर्ज करने की निंदा की है। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के लोकतांत्रिक अधिकार पर फासीवादी हमला है। जसम ने विभिन्न धाराओं में दर्ज फर्जी केस को निरस्त करने की मांग की है।
जसम का कहना है कि सरकार और प्रशासन ने पहलगाम त्रासदी के बाद उठी जनता की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए असहमति की आवाज़ों पर हमला बोला है। यह कार्रवाई न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास है, बल्कि सरकार की अपनी सुरक्षा विफलताओं से ध्यान भटकाने की एक सोची-समझी साजिश भी है।
पहलगाम में जो त्रासद पूर्ण हमला हुआ, वह सरकार की सुरक्षा व्यवस्था की बड़ी चूक थी। इस चूक की जांच और जवाबदेही तय करने के बजाय, सत्ता ने इसे सांप्रदायिक नफरत फैलाने और असहमति करने वालों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया है। सरकार ने त्रासदी को रोका नहीं — अब उसे राजनीतिक हथियार बनाकर विरोध के हर स्वर को दबाने में लगी है।
डॉ. मद्री काकोटी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था कि धर्म पूछकर गोली मारना, धर्म पूछकर लिंच करना, धर्म पूछकर नौकरी से निकालना और धर्म पूछकर बुलडोज करना — यह सब बर्बरता और आतंकवाद है, और असली आतंकियों को पहचानने की ज़रूरत है। उनके इस पोस्ट का मकसद नफ़रत के माहौल के खिलाफ बोलना और असली समस्याओं को उजागर करना था। लेकिन इस लोकतांत्रिक आवाज़ को चुप कराने के लिए उनके खिलाफ बीएनएस की कठोर धाराओं के तहत झूठे मुकदमे दर्ज कर दिए गए।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि डॉ. मद्री काकोटी ‘डा मेडुसा’ के नाम से सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, जहाँ उनके हजारों फॉलोअर्स हैं। उनकी बेबाकी, स्वतंत्रता और जनता के बीच बढ़ती पैठ सत्ता को असहज कर रही थी — और इसी वजह से उन्हें निशाना बनाया गया है।
एबीवीपी द्वारा कराया गया विरोध प्रदर्शन भी स्वतन्त्र छात्र आंदोलन नहीं था। दुर्भाग्यपूर्ण है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति का स्वयं बाहर आकर ज्ञापन लेना — जो सामान्यतः नहीं होता — इस मिलीभगत का प्रमाण है। यह दिखाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन भी सत्ता के दबाव में आकर असहमति को कुचलने की साजिश में भागीदार बन गया है।
जन संस्कृति मंच द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि सरकार की सुरक्षा विफलताओं पर सवाल उठाने की बजाय असहमति करने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। त्रासदी का इस्तेमाल जनता को गुमराह करने और नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है। बीएनएस जैसे नए दमनकारी कानूनों का दुरुपयोग कर शिक्षकों, कलाकारों और नागरिकों को डराया जा रहा है।
जसम ने साहित्यकारों, कलाकारों, शिक्षकों, छात्रों, पत्रकारों और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले सभी नागरिकों से अपील की है कि वे डॉ. मद्री काकोटी के खिलाफ दर्ज एफआईआर और अनुशासनात्मक नोटिस तथा लोक गायिका नेहा सिंह राठौर पर दर्ज एफआईआर निरस्त करने की मांग करें और इनके साथ एकजुटता जाहिर करें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार की रक्षा के लिए हमारा संगठित होना जरूरी है। सरकार द्वारा त्रासदी का राजनीतिक उपयोग कर जनता को गुमराह करने की इस साजिश का पर्दाफाश किया जाए।
यह चुप रहने का नहीं दमन के विरुद्ध सच, न्याय और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े होने का समय है। अगर आज हम चुप रहेंगे, तो कल हर स्वतंत्र आवाज़ को इसी तरह कुचला जाएगा।