आइसा द्वारा आयोजित शिक्षा अधिकार कन्वेंशन में जाति गणना के आलोक में एक समान शिक्षा नीति की उठी मांग
पटना। छात्र संगठन आइसा के 15 वें बिहार राज्य सम्मेलन के अवसर पर आज पटना के आइएमए हॉल में शिक्षा अधिकार कन्वेंशन का आयोजन किया गया. जिसे देश के प्रख्यात इतिहासकार प्रो. ओ पी जायसवाल, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डी एम दिवाकर, पटना विवि इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. भारती एस. कुमार, एनआईटी के पूर्व शिक्षक प्रो. संतोष कुमार, दिल्ली विवि से हाल ही में निकाल बाहर कर दिए गए प्रो. लक्ष्मण यादव, माले के पालीगंज से विधायक संदीप सौरभ, आइसा के महासचिव प्रसेनजीत कुमार आदि ने संबोधित किया।
इसके पूर्व आइसा की ओर से कन्वेंशन का राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसमें मोदी सरकार के दस साल के शासन काल में सार्वजनिक शिक्षा व शिक्षण संस्थानों को बर्बाद करने और युवाओं को सम्मानजनक रोजगार से वंचित करने की साजिशों का भंडाफोड़ किया गया।
कन्वेंशन में बोलते हुए लक्ष्मण यादव ने कहा कि आज कलम पर प्रतिबंध है। जो आरएसएस का नहीं है, उन शिक्षकों से कक्षाएं छीन ली जा रही हैं। उन्हें बाहर का रास्ता दिखलाया जा रहा है। तमाम नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए आरएसएस के लोगों को शिक्षण संस्थानों में बैठाया जा रहा है। दलित-वंचित समुदाय के बच्चों के हाथों से शिक्षा छीनकर मोदी सरकार उन्हें भीड़तंत्र का हिस्सा बना देना चाहती है। ऐसे में यह हम सब का कार्यभार है कि शिक्षा व संविधान को बचाने की मुहिम में एक बड़ी एकजुटता का निर्माण करें। उन्होंने कहा कि आज देश तानाशाही दौर से गुजर रहा है। प्रश्न पूछने पर सांसदों को बाहर कर दिया जाता है और न्याय मांग रही कुश्ती की खिलाड़ियों को कुश्ती छोड़ देने पर बाध्य कर दिया जाता है।
प्रो. डीएम दिवाकर ने कहा कि गैरबराबरी के समाज में एक समान शिक्षा कैसे संभव है. लेकिन संविधान निर्माताओं ने एक समान शिक्षा के जरिए समाज में गैरबराबरी कम करने का सपना देखा था।आज ठीक उलटा हो रहा है, केंद्र में बैठी मोदी सरकार कॉरपोरेट के पक्ष में संविधान बदल रही है और हमारे अधिकार छीन ले रही है। नई शिक्षा नीति 2020 देखने में लुभावना है, लेकिन जमीन पर यह आमलोगों के खिलाफ है। ऑनलाइन एजुकेशन की बात होती है लेकिन न तो इंटरनेट की सुविधा है न लैपटॉप। यह बिना शिक्षक के क्लास चलाना है ताकि आने वाली पीढी प्रश्न पूछने लायक न रहे। यह हमारे सामने गंभीर चुनौती है। उन्होंने कहा कि रोहित वेमुला की शहादत के बाद अब तक हमारे कैंपसों में 35 हजार से ज्यादा आत्महत्याओं की खबर है। यह आत्महत्या नहीं बल्कि नीतिगत हत्या है।
प्रो. ओपी जायसवाल ने कहा कि शोषितों को भाजपा सरकार कोई भी अधिकार नहीं देना चाहती है। वह जानती है कि शिक्षित हो जाने पर युवक रोजगार और अपना अधिकार मांगेगे. इसलिए वह उन्हें शिक्षा के दायरे से ही बाहर कर देना चाहती है। प्रो. संतोष कुमार ने कहा कि जो हमारे नीति निर्धारण करने वाले लोग हैं, उनसे यह पूछना चाहिए कि उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ने जाते ? शिक्षा सुधार की तमाम बातों के बावजूद एक तरफ गरीब बच्चों के लिए आधारभूत संरचनाओं से विमुख सरकारी स्कूल हैं और दूसरी ओर महंगे प्राइवेट स्कूल। यह दोहरी शिक्षा नीति कहीं से उचित नहीं है। प्रो. भारती एस कुमार ने भी उच्च शिक्षा में लगातार गिरती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि अब समाज के सभी लोगों को एक साथ मिलकर लड़ना होगा। उन्होंने शिक्षा में वैज्ञानिकता व तार्किकता को सरकार द्वारा लगातार खत्म किए जाने की नीतियों की आलोचना की और कहा कि इस पर अविलंब रोक लगनी चाहिए।
विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि राज्यपाल की कुर्सी आज आरएसएस के इशारे पर काम करने वाली कुर्सी हो गई है। बिहार के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की हुई नियुक्ति में आरएसएस के लोगों को बैठाया गया और उसमें भारी धांधली हुई। हम बिहार सरकार से मांग करेंगे कि वह विधानमंडल से प्रस्ताव लेकर शिक्षा की जिम्मेवारी अपने हाथों में ले। उन्होंने एक तरफ जहां महागठबंधन सरकार द्वारा शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया का स्वागत किया, वहीं शिक्षा विभाग के अलोकतांत्रिक फैसलों की कड़ी आलोचना भी की। उन्होंने बिहार सरकार के सामाजिक-आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बिहार में एक समान शिक्षा नीति की मांग की।
उन्होंने कहा कि आज देश के विश्वविद्यालयों में प्रतिरोध की जगह नहीं बची है. नई शिक्षा नीति ने सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के तमाम प्रयासों को उलट दिया है. कैंपस में दलित छात्रों-महिलाओं पर हमले हो रहे हैं.
इस कन्वेंशन का संचालन आइसा के बिहार राज्य सचिव सबीर कुमार ने की. आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष विकास यादव व प्रीति कुमारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।