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अभ्रक की राजधानी कोडरमा :  लोकसभा चुनाव में टूटता भाजपा का तिलिस्म

कोडरमा जिले की एक,  गिरिडीह की चार और हजारीबाग जिले की एक विधानसभा में फैली कोडरमा लोकसभा सीट अतीत में भी और पिछले दो बार से (आजादी के बाद से 10 बार) लगातार भाजपा के पास है, लेकिन दिल्ली की संसद के भीतर कोडरमा के संकट को लेकर कभी किसी सवाल पर इसके सांसदों की कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ी। जबकि यहीं से झारखंड में विधानसभा से लेकर सड़क तक आंदोलन की जो नई आवाजें थीं, चाहे झारखंड आंदोलन के दिशोम गुरु शिबू सोरेन हों या वामपंथ की सबसे युवा आवाज भाकपा माले के शहीद नेता व विधायक महेंद्र सिंह रहे हों।

पिछले दो दशक से लगातार बगोदर के विधायक कॉमरेड विनोद सिंह की गिरिडीह जिले से लेकर राज्य में जहां भी जनता के सवाल हों, उनका आंदोलन हो, वहां के संघर्षों में नेतृत्व करने से लेकर जेल जाने और विधानसभा के भीतर उनके सवालों को लेकर जूझने वाले नेता के बतौर उनकी स्थापित पहचान है। इस बार उन्हें इसके लिए झारखंड के उत्कृष्ट विधायक का सम्मान भी दिया गया।

जब इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी के बतौर विनोद सिंह चुनाव लड़ रहे हैं तो भाजपा के उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम  केशव मौर्या, छत्तीसगढ़ के चीफ मिनिस्टर से लेकर प्रधानमंत्री तक बनारस में नामांकन के बाद सीधे चुनावी सभा करने यहां पहुंचते हैं और प्रधानमंत्री वामपंथ पर निशाना साधते हैं। उनकी प्रत्याशी निवर्तमान सांसद और केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी हैं‌। जो 2019 के चुनाव से पहले राजद की प्रदेश अध्यक्ष थीं और यादव जाति से आती हैं। इसी लोकसभा की एक विधानसभा गांडेय के उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी हैं। इसलिए इस बार कोडरमा का चुनाव दोनों गठबंधनों के लिए झारखंड में महत्वपूर्ण हो गया है ।

यहां, जहां भाजपा के बड़े महारथियों ने चुनाव सभाएं कीं तो दूसरी तरफ भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, बिहार के उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव, कांग्रेस के राज्य अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने सभाएं कीं । और झामुमो सांसद सरफराज अहमद तथा कल्पना मुर्मू लगातार यहां सभाएं और जनसंपर्क अभियान चलाए हुए हैं।

चुनाव के मुद्दे

इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी पिछले एक महीने से जनसंपर्क अभियान चलाए हुए हैं और पूरे लोकसभा के सारे प्रखंडों से लेकर पंचायत तक नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं। उन्होंने अपने चुनाव का मुख्य एजेण्डा कोडरमा- गिरीडीह, जिसे कभी अभ्रक की राजधानी कहा जाता था और पूरे देश के अभ्रक उत्पादन में लगभग 40% हिस्सा था, अभ्रक के अवशेष जिसे स्थानीय भाषा में ढिबरा कहते हैं, उसे चुनने वाले मजदूरों की बेरोजगारी, इस उद्योग के तबाही और उसे जुड़े लोगों के जीवन के संकट, स्टोन क्रेशर बंदी जो जंगल की सीमा से भी बाहर हैं उनके नवीनीकरण, झारखंड में सर्वाधिक प्रवासी मजदूरों के लिए मुंबई, गुजरात, दक्षिण भारत के राज्यों के लिए एक भी सीधी ट्रेन न होने, केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री के रहते पूरे क्षेत्र में 5 साल में एक भी सामान्य या मेडिकल, तकनीकी शिक्षण संस्थान नहीं खुलने और केंद्र द्वारा प्रधानमंत्री आवास की राशि हो या मनरेगा में देश में सबसे कम मजदूरी या फिर प्रधानमंत्री सड़क योजना का इस क्षेत्र में कोई कार्य न होने को बना रखा है।

इसके अलावा 10 साल में भाजपा की वादाखिलाफी, झारखंड का केंद्र पर बकाया 46 हजार करोड़ रुपया के साथ अपने क्षेत्र में हुए राज्य के स्तर से होने वाले काम चाहे वह अबुआ आवास हो या पेंशन जो महिलाओं को 50 की उम्र में और पुरूषों को 60 की उम्र में मिलती है। और पूरे इलाके के सवालों पर किए गए संघर्षो की याद दिलाते हुए भाजपा जो संविधान के साथ छेड़छाड़ कर रही और आदिवासियों, दलितों के हक छीन रही एवं अल्पसंख्यक समुदायों पर उसके हमलों को, मुद्दा बनाया है।

तो दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री और भाजपा प्रत्याशी अन्नपूर्णा देवी मजबूत प्रधानमंत्री, राम मंदिर , 80 करोड़ को 5 किलो राशन और पूरे देश में भाजपा ने विकास किया है, विदेश में हमारा मान बढ़ा है इन सबको देखकर अपने लिए वोट मांग रही है । हालांकि उनकाे क्षेत्र में लोगों के असंतोष को भी झेलना पड़ रहा है। उनकी आशा जातीय गोलबंदी और मोदी मैजिक पर आकर टिक गई है।

 

चोपनारी की सुशीला देवी ( मुंह पर गमछा लगाए )

लोगों की जुबानी 

गाँवा ब्लॉक के 45 वर्षीय सुनील दास बताते हैं कि उन्होंने संविदा पर 4 साल नौकरी की और फिर निकाल दिए गए, अब बेरोजगार हैं । वह बताते हैं कि एक बार अपने तमाम साथियों को लेकर मंत्री जी यानी अन्नपूर्णा जी से दिल्ली आवास पर मिले भी थे और गांवा- तिसरी इलाके में, जहां लगभग 100 किलोमीटर तक कोई डिग्री कॉलेज नहीं है, उसकी मांग की थी। लेकिन 5 साल में हमारे लोगों के लिए एक कॉलेज नहीं मिला ।

सुनील दलित जाति से आते हैं और शिक्षा से वंचित होने का मतलब समुदाय को रोकने की साजिश मानते हैं।

तिसरी के सरयू यादव कहते हैं कि हमारे इलाके में अभ्रक और क्रेशर बंद होने से भयानक बेरोजगारी है, महंगाई बहुत बढ़ गई है । पूरे इलाके की जो थोड़ी बहुत खेती है वह एक फसली है और पूरी तरह बारिश पर निर्भर है। विनोद सिंह संसद में जाएंगे तो हमारे सवाल उठेंगे। यह पूछने पर कि उन्हें क्यों विश्वास है, वह कहते हैं कि बगोदर विधायक रहते धनवार में बिजली को लेकर हुए आंदोलन में हुई पुलिस फायरिंग, जिसमें लोग गोली से घायल भी हुए, उसके बीच वह आए और रोका फिर बिजली मिली।

ढिबरा मजदूरों के लिए संघर्ष करते हुए जेल जाने और विधानसभा में ढिबरा मजदूरों को कानून बनवाकर वैध घोषित करवाने के कारण वह विनोद सिंह पर विश्वास करते हैं ।

बरकट्ठा विधानसभा के चोपनारी गाँव की सुशीला देवी बताती हैं कि पिछली बार उन्होंने भाजपा को वोट दिया था और पूरे गांव ने दिया था लेकिन इस बार नहीं देंगे। चार बच्चों को पेट काटकर पढ़ाया लेकिन कोई रोजगार नहीं है। 5 किलो अनाज पर वह कहती हैं कि इससे पेट नहीं भरता। महंगाई इतनी ज्यादा है, खाली सिलेंडर भरवाने का पैसा नहीं है। लड़कियों की शादी कैसे करेंगे।

अटका बाजार के वार्ड 2 में अनीता जी बताती हैं कि ना हम लोगों को राशन मिलता है न आवास मिला है । मंत्री तो हैं लेकिन उनको देखा नहीं आज तक।

इसी बाजार में हलवाई की दुकान चलाने वाले साहू जी कहते हैं कि विधायक विनोद सिंह तो अच्छे हैं लेकिन दिल्ली के लिए मोदी जी को वोट देंगे। कैंडिडेट को देखकर नहीं जबकि यह सच है कि उन्होंने क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया।

तिसरी के गांधी मैदान में सभा में कल्पना सोरेन मुर्मू और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी विनोद सिंह

धनवार के रविदास बस्ती के अर्जुन दास कहते हैं कि महंगाई, बेरोजगारी तो है लेकिन इस चुनाव में बाबा साहब के संविधान पर ही संकट है। भाजपा के लोग उनके बनाए संविधान को पुराना बताकर बदलने की बात कर रहे हैं। जिसका मतलब है दलित और आदिवासियों को संविधान में मिला आरक्षण और अधिकार को खत्म करना।

फिलहाल यहां 20 तारीख को चुनाव है और इन सब मुद्दों के साथ सामाजिक समीकरणों को लेकर भी गोलबंदियों के दावे तेज हो गए हैं।
पिपचो बाजार में मिले साहब अंसारी बताते हैं कि 2019 के चुनाव में जब दलित, यादव और पिछड़ी जातियों का भारी हिस्सा सवर्णों के साथ-साथ अन्नपूर्णा जी को वोट किया था, तो भी उनके खिलाफ लगभग साढ़े चार लाख वोट ऐसा था जो उस समय भी बीजेपी को नहीं मिला था।

सामाजिक समीकरण

20 लाख से ऊपर मतदाता वाले इस क्षेत्र में अनुमानित तौर पर सबसे बड़ी संख्या एक जाति के रूप में यादवों की चार से पांच लाख है। लगभग इतने ही सभी सवर्ण जातियों को मिलाकर हैं और यदि दलित समुदाय को एक यूनिट मान लें, जिनमें यहाँ की एक घटवार जाति भी शामिल है, तो इनकी संख्या भी चार लाख के आसपास ठहरती है। तीन लाख से ऊपर मुस्लिम मतदाता और 3 लाख के करीब कुर्मी और कुशवाहा और एक लाख से ऊपर आदिवासी समुदाय है।

सबके अपने-अपने दावे हैं लेकिन यादवों के गढ़ कोडरमा और बरकट्ठा विधानसभा में उनके भीतर दो खेमों में टूट साफ देखी जा सकती है। गांडेय आदिवासी और मुस्लिम बहुल विधानसभा है, जहां से शिबू सोरेन ने अपनी राजनीति शुरू की थी। इस बार कल्पना सोरेन इसी विधानसभा से चुनाव लड़ रही हैं।

जमुआ सुरक्षित सीट है। यहां पर दलित और मुस्लिम के अलावा भूमिहार और कुशवाहा अच्छी संख्या में है। इस बार विधानसभा में यहां भाजपा जीती है लेकिन कांग्रेस दूसरे पर और माले तीसरे नंबर थी।

बगोदर में किसी एक जाति का वर्चस्व नहीं है । यहां सभी जातियां हैं लेकिन कोई एक अकेले निर्णायक भूमिका में नहीं है। हां, मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं। राजधनवार में भूमिहार, यादव, मुस्लिम, दलित के बाद कुर्मी व कुशवाहा जातियों की आबादी आती है।

इस बीच अन्नपूर्णा देवी के भाजपा में जाने के बाद राजद ने खुद को फिर से संगठित किया है। राजद जिला अध्यक्ष कोडरमा में जिला परिषद अध्यक्ष और बरकट्ठा के पूर्व विधायक जानकी यादव झामुमो में हैं, जमुआ, धनवार और बगोदर में भाकपा माले का संगठन नीचे तक फैला है। यहां सभाओं में इंडिया गठबंधन की जमीनी स्तर पर एकता दिखाई देती है। इस लोकसभा सीट से इस इलाके के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार रीत लाल वर्मा, जो पांच बार सांसद रहे, उनके भतीजे जय प्रकाश वर्मा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में  खड़े हैं और कुशवाहा जाति से आते हैं । विश्लेषकों का मानना है कि वह कुशवाहा समुदाय के एक बड़े हिस्से का वोट हासिल करेंगे। जिसका मतलब हुआ भाजपा को जो वोट पिछली बार मिले थे उसे सीधा नुकसान होगा।

भाजपा की केंद्रीय मंत्री और यादव जाति से होने के बावजूद चाहे समीकरणों का मामला हो, चाहे इंडिया गठबंधन के हिंदी बेल्ट में सर्वाधिक चर्चित वामपंथ के उम्मीदवार की काम करने वाले, जुझारू और तीन बार विधायक रहते ईमानदार और किसी खास जाति के नहीं बल्कि सभी जातियों के नेता की जो तस्वीर उभरी है, यह छवि भी भाजपा प्रत्याशी पर भारी पड़ती दिख रही है । फिलहाल इंडिया गठबंधन की बढ़त दिख रही।

बाकी तो चुनाव है, जब परिणाम आएंगे तभी तय होगा कि तीन तारों वाला झंडा बगोदर (राजधनवार विधानसभा, जहाँ से भाकपा माले के राजकुमार यादव ने मुख्यमंत्री रहे और अब भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी को हराया था और 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर थे) इस बार आगे बढ़कर पूरे कोडरमा पर लहराएगा या बीजेपी कोडरमा लोकसभा बचा पाएगी।

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