समकालीन जनमत
साहित्य-संस्कृति

सामाजिक संघर्ष व बदलाव की राजनीतिक चेतना पैदा करती है जन संस्कृति – जयप्रकाश नारायण

राजबली यादव की याद में ‘सत्ता संस्कृति बनाम जन संस्कृति’ पर परिचर्चा

फैजाबाद। स्वंतत्रता संग्राम सेनानी व जन संस्कृति के नायक कामरेड राजबली यादव के स्मृति दिवस व अगस्त क्रांति दिवस की पूर्व संध्या पर “सत्ता की संस्कृति बनाम जन संस्कृति” विषय पर प्रेस क्लब, फैजाबाद में परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसका आयोजन जसम, प्रलेस, जलेस, भाकपा, माकपा, भाकपा माले आदि ने संयुक्त रूप से किया।अध्यक्षता ‘जन संस्कृति के नायक राजबली यादव’ पुस्तक के लेखक अवधेश कुमार सिंह ने और संचालन किया भाकपा (माले) के जिला प्रभारी अतीक अहमद ने किया।

यह कार्यक्रम जसम द्वारा चलाए जा रहे फासीवाद विरोधी सांस्कृतिक अभियान के तहत आयोजित था।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष जय प्रकाश नारायण थे। उन्होंने कहा कि मनुष्य को मनुष्य बनाने में संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान होता है। जहां लोक संस्कृति सामाजिक पीड़ा को व्यक्त करती है वही जन संस्कृति इस पीड़ा के साथ सामाजिक संघर्ष व बदलाव की राजनीतिक चेतना भी पैदा करती है। जन संस्कृति के बल पर सत्ता के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सकता है।

जयप्रकाश नारायण का आगे कहना था कि आज सत्ता समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है। हमारे साम्राज्यवाद विरोध को सत्ता द्वारा बदल कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की तरफ ले जाया जा रहा है। ऐसी चेतना पैदा की जा रही है जिसमें गीता और वेदांत में स्वर्ण युग की तलाश है। समाज अतीतोन्मुखी हो जाए और उसे वर्तमान से काट दिया जाए, ऐसी कोशिश हो रही है । इस दौर में बुनियादी चीजों से लोगों का ध्यान हटाने कि कोशिश हो रही है।  लोग अपने आस पड़ोस में अपने शत्रु की तलाश करें। यह एक ऐसे राष्ट्रवाद की तरफ ले जाना है जिसकी प्रकृति नफरत और विभाजन है। ऐसे में हमें जन संस्कृति की चेतना को विकसित कर सत्ता की सच्चाई को सामने लाना होगा। जब भी अंधेरी की ताकतों ने देश और समाज पर कब्जा किया है, आंदोलनों के गर्भ से बदलाव की आकांक्षा पैदा हुई है। उम्मीद कभी खत्म नहीं होती। प्रतिरोध भी नये रूप ग्रहण करके सामने आता है। इस संबंध में उन्होंने शाहीनबाग और किसान आन्दोलन की विशेष रूप से चर्चा की।

जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने कामरेड राजबली यादव को याद करते हुए कहा कि उनका संघर्ष अतीत नहीं वर्तमान है। सामाजिक बदलाव में राजनीति के साथ संस्कृति की बड़ी भूमिका है। जन संस्कृति को जन संघर्षों से ऊर्जा मिलती है। कौशल किशोर ने आगे कहा कि हमें वर्तमान समय के यथार्थ को समझना होगा। इस फासीवादी दौर में आजादी और गुलामी को नये तरह से सामने लाया जा रहा है। एक समुदाय विशेष निशाने पर है। हमने सत्ता के दमन उत्पीड़न को देखा है। लेकिन पहले से फर्क है कि आज दमन, आतंक, हिंसा, विभाजन, नफरत आदि को मूल्य के रूप में स्थापित किया जा रहा है। वर्तमान में हत्या पर जश्न मनाया जा रहा है। बलात्कारियों को माला पहनाकर सम्मानित किया जा रहा है। ऐसे समय में बतौर नागरिक लेखकों और बुद्धिजीवियों की भूमिका बढ़ गई है।

लखनऊ से आए वरिष्ठ साहित्यकार भगवान स्वरूप कटियार ने परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए कहा कि राजबली यादव का व्यक्तित्व वर्तमान के लिए संघर्ष की प्रेरणा देता है। इस मौके पर उन्होंने राजबली यादव पर लिखी कविता सुनाई। भाकपा नेता सूर्यकांत पांडेय ने कहा कि राजबली जी के न रहने के बाद फैजाबाद में लड़ाई लड़ने का दौर कम हो गया।

परिचर्चा को डॉक्टर अनिल कुमार सिंह, स्वप्निल श्रीवास्तव, आर डी आनंद, वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह, राम भरोस, अशोक यादव, रवि यादव, अजय शर्मा आदि ने संबोधित किया तथा राजबली जी के भतीजे विजय यादव, नाती प्रवीण यादव, मयाराम वर्मा, उमाकांत विश्वकर्मा, विनोद सिंह, शैलेन्द्र प्रताप सिंह, राजेश वर्मा, पप्पू सोनकर, राम लौट, डाक्टर शकूर आलम, राम पाल यादव, डाक्टर मनोज आलम, शारदा आनंद, रमेश गौड़, मोहम्मद आरिफ, उर्मिला, शीला, बद्री प्रसाद यादव आदि प्रमुख रूप से उपस्थिति रहे।

सांस्कृतिक कर्मी व बिरहा गायक संग्राम यादव और बृजेश यादव ने अपने क्रान्तिकारी गीतों के जरिए उत्साह पैदा किया। अंत में भाकपा जिला सचिव अशोक कुमार तिवारी ने कार्यक्रम में आए हुए अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion