प्रगतिशील लेखक संघ एवं जन संस्कृति मंच के संयुक्त तत्वाधान में 16 जून 2024 को डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान (टीआरआई), रांची के सभागार में विनय सौरभ के काव्य संग्रह ‘बख्तियारपुर’ एवं सुधीर सुमन के काव्य संग्रह ‘ सपना और सच ’ का लोकार्पण और कृतियों पर चर्चा का आयोजन किया गया।
चर्चा का आरंभ करते हुए कथाकार रणेन्द्र ने कहा कि विनय सौरभ और सुधीर सुमन दोनों का पहला कविता संग्रह आया है, पर दोनों के स्वर भिन्न हैं। विनय की कविताओं में स्मृतियों का जैसा प्रयोग हुआ है, वह दुर्लभ है। इनमें गांव-कस्बों और अपनों से बिछड़ने की दर्द भरी स्मृतियां हैं। मुकेश के गानों की तरह ये कविताएं गूंजती हैं। संवेदना, भावुकता और यादों से ही इन कविताओं का फार्मेट बना है, जो इनकी विशेषता भी है और सीमा भी है। सुधीर सुमन की कविताओं पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इनकी पृष्ठभूमि अलग है। इनकी कविताओं में भोजपुर के खेत-खलिहानों की आग, ज्वाला, राख और धुंआ है। वैचारिकता की धार स्पष्ट है। हालांकि प्रेम कविताएं ज्यादा खूबसूरत हैं। कुछ कविताओं में विचारों का अतिरेक भी है।
वरिष्ठ आलोचक रविभूषण ने कहा कि दोनों कवियों के काव्य-संग्रह में नब्बे के दशक के आरंभ से लेकर अब तक लिखी गयी कविताएं हैं। दोनों अपने वर्तमान से चिंतित और परेशान हैं, दोनों में वर्गीय दृष्टि है, दोनों मुक्ति के आकांक्षी है। संवेदना और विचार दोनों में घनीभूत है। इन दोनों में हड़बड़िया कवि कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि विनय सौरभ अतीतजीवी या स्मृतिजीवी कवि नहीं हैं, वे स्मृति, संबंध और स्थान के कवि हैं। लेकिन उनकी कविता में स्मृति का संबंध वर्तमान से है। दरअसल दोनों कवि वर्तमान के कवि हैं। सुधीर सुमन की कविता में भविष्य का स्वप्न है और वर्तमान का सच है। विनय सौरभ साइलेंट प्रोटेस्ट के कवि हैं, जबकि सुधीर सुमन वर्तमान के संघर्षों को लेकर स्टैंड लेते हैं। उनका सपना दुनिया बदलने के लिए है। दुनिया बदलने की चाहत दोनों कवियों में है। हमारा समय और समाज तथा हमारी समस्याएं और चिंताएं इनकी कविताओं में है। आज स्मृतियों और सपनों दोनों का महत्त्व है। दोनों कवि डिजिटल इंडिया के कवि नहीं है, बल्कि सेव इंडिया के कवि हैं।
गिरिडीह से आए कवि-आलोचक बलभद्र ने कहा कि विनय जहां रहते हैं वहां की कविता लिखते हैं। हम अपनी स्मृतियों से कटकर नहीं जी सकते। वर्तमान हो या भविष्य उससे कटकर नहीं हो सकता। विनय की कविताओं में स्मृतियों का पुर्नआविष्कार और पुनर्सृजन भी है। इनकी कविताओं में स्मृतियों और वर्तमान के बीच आवाजाही है। जहां तक सुधीर सुमन की बात है, ये मूलतः आलोचक हैं। अपनी कविताओं में ये शोषितों और शोषकों के बीच फर्क करते हैं। इनके पास ऐसी कविताएं भी हैं, जिनमें रूमानियत, आवारगी और वस्तुपरकता एक साथ है। यह आश्चर्य है कि इनकी कविताओं में भोजपुरी के शब्द नहीं मिलते।
इस अवसर पर आसनसोल से आए ‘देवीशंकर अवस्थी सम्मान’ प्राप्त युवा कवि निशांत ने कहा कि दोनों कवियों का अपना स्टाइल और सिग्नेचर है। सुधीर सुमन अपनी बातों को कविता में सपाट-सीधे ढंग से थ्रो करते हैं। ऐसा इसलिए है कि वे जल्दी से दुनिया को बदल देना चाहते हैं। वे सच को सच की तरह दिखाते हैं। उनकी कविताएं प्रश्न करती हैं, जो कि जरूरी चीज है। वैसे कविता के लिए कई बार अभ्यास की जरूरत होती हैै, इस पर उन्हें ध्यान देना चाहिए। विनय सौरभ के बारे में उन्होंने कहा कि वे नास्टेल्जिक कवि हैं। अतीत से कच्ची सामग्री लाते हैं। कविता में संबंधों को बचाने की वकालत करते हैं।
डॉ. मिथिलेश सिंह ने इन कविता संग्रहों पर अपने विचार रखते हुए कहा कि विनय सौरभ की कविताएँ मानव जीवन में लुप्त होते रागों की तलाश करती है तो सुधीर सुमन अपनी कविताओं में बेहतर समाज के निर्माण का सपना संजोते नजर आते हैं। दोनों विशफूल थिंकिंग के कवि हैं। इंसानियत की बेहतरी के लिए लिखते हैं। शब्दों के मामले में दोनों कवि थोड़े कंजूस हैं। थोड़ा कहकर ज्यादा समझने की अपील करते हैं।
कथाकार पंकज मित्र ने कहा कि सुधीर सुमन के कविता संग्र्रह ने उन्हें चौंकाया, क्योंकि वे तो प्रायः अपने वैचारिक लेखों और समीक्षाओं के लिए जाने जाते रहे हैं। इनके भीतर एक संवेदनशील कवि है। लेकिन इनकी कविताओं में विचारों के गवाछ के जरिए ही प्रवेश किया जा सकता है। वे समानधर्मा साथियों और आंदोलनधर्मी लोगों को अनुप्रेरित करते हैं। जबकि विनय सौरभ नोनीहाट कस्बे के कवि हैं और उन्होंने अपने कस्बे को पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया है। अपनी स्थानिकता के प्रति ऐसा मोह बहुत कम कवियों में दिखाई देता है। उनकी कविताओं में स्मृतियों को बचाए रखने की जिद मिलती है। ये स्मृतियों को मिटा देने की हर कोशिश का प्रतिकार हैं। स्मृतिहीनता के विरुद्ध वे कविता को हथियार बनाकर लड़ते हैं। उनकी राजनीति लाउड और क्लियर है। वे समय के अंतर्विरोधों और विडंबनाओं का भी चित्रण करते हैं।
डॉ. प्रज्ञा गुप्ता ने कहा कि विनय सौरभ की कविताएँ कथा-सी बुनावट लिए हुए हैं और हमारी करुणा को जगाती हैं। सुधीर सुमन की छोटी कविताएं संरचनात्मक रूप से अधिक कसी हुई हैं। इनकी कविताओं में यथार्थ को सुंदर बनाने का आग्रह है।
कथाकार रश्मि शर्मा ने कहा कि जिस समय स्मृतियों का क्षरण हो रहा है, उस समय उनका संरक्षण एक किस्म का प्रतिरोध है। विनय की कविता में नोनीहाट की तरह पिता भी बार-बार आते हैं। इनमें कहानी का अवयव है। इनमें समकालीन राजनीति का अंधेरा भी है, बाजार, विज्ञापन, उपभोक्तावाद भी है। हालांकि एक कविता में पुरुष-दृष्टि का असर भी है। इनकी प्रेम कविताएं पुरानी बाइनरी को नहीं तोड़ती। सुधीर सुमन अपनी कविताओं में वर्तमान की खुरदरी जमीन को तोड़ते हैं। इनकी कविताओं में यथार्थ और स्वप्न के बीच भावनात्मक संघर्ष है। ये नई और ईमानदार रोशनी लेकर आती हैं। ये गहरे आत्मसाक्षात्कार और आत्मसमीक्षा की कविताएं है। हालांकि यथार्थपरक सामाजिक सरोकारों के कारण काव्य-तत्वों की कुछ कमी भी है।
दूरदर्शन के पूर्व निदेशक प्रमोद कुमार झा ने 200 साल पूर्व अमेरिका के औद्योगीकरण का जिक्र करते हुए कहा कि आज वैसा ही प्रभाव भारत में नजर आ रहा है। हालांकि उत्तर भारत और दक्षिण भारत की पृष्ठभूमि में फर्क है। उत्तर भारत में लोग गांवों से पलायन करके शहरों में आए हैं। आज की कविताओं को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
कवि प्रकाश देवकुलिश ने विनय सौरभ की कविताओं- ‘बख्तियारपुर’ और ‘खान साहब बहुरूपिया’ की खास तौर पर चर्चा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि स्मृतियों को विचार और दर्शन के साथ इस तरह कला में बांधा जा सकता है, यह विनय सौरभ का अद्भुत काव्य-कौशल है। उन्होंने यह भी कहा कि सुधीर सुमन की कविताओं में भोजपुरी समाज का सीधा और दोटूक लहजा नजर आता है। उन्होंने कहा कि कविताओं की पहले कविता होना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन चेतन कश्यप ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. निशि प्रभा ने किया।
इस अवसर पर विनय सौरभ ने ‘छूटता हुआ घर’ और सुधीर सुमन ने ‘एक दिन आऊंगा’ शीर्षक कविता का पाठ किया। सुधीर सुमन ने कहा कि विनय की स्मृतियाँ हम सबकी स्मृतियाँ हैं। उसमें हमारे छूटते घर, माँ-पिता, संबंधियों और लोगों की यादें हैं, इसलिए वे सीधे हमारे हृदय को छूती है। अपनी कविता के बारे में उन्होंने कहा कि उनमें कुछ भी काल्पनिक नहीं है, सपने भी, कि उन्होंने जो देखा है, वही लिखा है।
कार्यक्रम में डॉ. उर्वशी, राजेश करमहे, डॉ. किरण, डॉ. नरेंद्र झा, किरण तिवारी, गीता कुमारी, डॉ. भारती, वीणा श्रीवास्तव, सारिका भूषण, डॉ. नियति कल्प, रंगकर्मी सुधेंदु पांडेय, ममता कुमारी वाड़ा, श्वेता जायसवाल, शिव कुमार भगत आदि भी उपस्थित थे।
( प्रस्तुति- प्रज्ञा गुप्ता )