भाकपा माले
सर्वोच्च न्यायालय ने 26 सितम्बर को दिये अपने निर्णय में आधार की संवैधानिक वैधता और जनकल्याण योजनाओं के लाभान्वितों को आधार से जोड़ने के सरकार के कदम को उचित ठहराया है. यह फैसला झारखण्ड में 11 वर्षीय बालिका संतोषी की उसका राशन कार्ड आधार से लिंक न होने के कारण हुई मौत के ठीक एक साल बाद आया है. अंतिम समय तक रो-रो कर भात मांगते हुए भूख से संतोषी की जान चली गई थी.
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लाखों लोगों को मायूस करने वाला है, क्योंकि देश के गरीबों को पीडीएस एवं मनरेगा जैसी जनकल्याण की योजनाओं से वंचित करने के लिए आधार का इस्तेमाल करने की वैधता प्रदान कर दी गई है. सर्वोच्च न्यायालय इस इस तथ्य को महसूस करने में असफल रहा है कि भोजन या रोजगार का हक़ ऐसे अधिकार हैं जिनसे किसी को भी, किसी भी आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता है. बड़े पैमाने पर मौजूद इस तथ्य को भी पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है कि आधार में एनरोलमेण्ट कराने को बाद भी 27 प्रतिशत गरीबों को जनकल्याण योजनाओं का लाभ नहीं दिया जा रहा है. कभी नेटवर्क की गड़बड़ी से, तो कभी उंगलियों के निशान या आंख की आइरिस आदि के बायोमेट्रिक सूचकों के न मिलने से – जो न होना मेहनतकशों, वृद्धों के लिए, एवं चोट आदि लगने से बिल्कुल स्वाभाविक है- आधार द्वारा सत्यापन नहीं किया जाता है. ऊपर से बायोमेट्रिक कमियों के चलते करोड़ों लोगों का आधार में एनरोलमेण्ट ही नहीं किया गया है, बल्कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.
हम जस्टिस चन्द्रचूड़ द्वारा बहुमत के निर्णय के साथ असहमति व्यक्त करके दिये गये निर्णय का स्वागत करते हैं. उन्होंने अपने निर्णय में कहा है कि ”समूचे आधार कार्यक्रम में 2009 से ही” ”संवैधानिक विसंगतियां मौजूद हैं और इससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है”.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आधार बिल को राज्य सभा में पेश करने से बचने के लिए सरकार द्वारा इसे मनी बिल के रूप में पारित कराये जाने को बहुमत निर्णय ने सही ठहराया है, जबकि विरोध दर्ज करते हुए जस्टिस चन्द्रचूड़ ने इसे ”संविधान के प्रति धोखाधड़ी” बिल्कुल ठीक कहा है.
यद्यपि बहुमत निर्णय में भी आधार एक्ट की कुछ धाराओं को खारिज किया गया है, परन्तु उन धाराओं के कारण अब तक हो चुके नुकसान की भरपायी हो, इस पर कुछ नहीं कहा गया. उदाहरण के लिए इस निर्णय के अनुसार धारा 57 को अब गैर संवैधानिक बता कर खत्म कर दिया गया है. यह धारा निजी कम्पनियों को आधार नम्बर मांगने का अधिकार देती थी. लेकिन जो करोड़ों आधार नम्बर इन कम्पनियों के पास चले गये हैं और उन्हें वे तरह तरह से लिंक करके अपने निजी मुनाफे के लिए इस्तेमाल कर रही हैं उसके बारे चुप्पी साध ली गई है. जिन योजनाओं में जनता का आधार डाटा पहले से ही बिना बताये ले लिया गया है, उनमें से अपना नम्बर हटवाने की अनुमति भी इस निर्णय में नहीं दी गई है. जिन मामलों में सरकार ने खुद ही अपने काम निजी कम्पनियों को आउटसोर्स कर दिये हैं उनके पास आधार का डाटा रहेगा, अर्थात यह खतरा भी बना रहेगा कि लोगों के निजी डाटा का कहीं गलत या व्यवसायिक इस्तेमाल तो नहीं हो रहा।
यूआईडीएआई ने सीआईए की करीबी एक अमेरिकी कम्पनी एल-1 आइडेन्टिटी सिस्टम्स के साथ एक व्यवसायिक समझौता किया है जो राष्ट्रीय सम्प्रभुता के लिए एक खतरा हो सकता है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने इस पर विचार नहीं किया है. इससे हमारा बायोमिट्रिक डाटा एल-1 सिस्टम्स के पास रहेगा क्योंकि उसके पास ही उसका ‘सुपरकोड’ है।
बहुमत निर्णय ने बैंक अकाउण्ट और फोन कनेक्शन को आधार से जोड़ने से मना किया है, लेकिन इन्कम टैक्स के पैन नम्बर से आधार को लिंक करना सही बता कर अपने की तर्क को विरोधाभासी बना दिया है.
आने वाला इतिहास असहमति वाले अल्पमत निर्णय को ही सही ठहरायेगा.
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