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हिमांचली बच्चों के बीच सिनेमा के जरिये देश दुनिया की खबर

कांगड़ा (हिमांचल) 11 दिसंबर. कानपुर, फरीदाबाद, वाराणसी, दिल्ली, बैंगलोर, जयपुर जैसे शहरों में हवा और पानी दिनोदिन ख़राब होता जा रहा है इसके अलावा शहरी जीवनशैली के अपने नफे नुकसान है जिसमें अकेलापन और उबाऊ दिनचर्या भी शामिल है जो आपके बैचेन और परेशान होने का कारण हो सकता है. इसके लिए जरुरी है कि आप कहीं पहाड़ों में जाकर शुद्ध हवा और पानी का सेवन करें जो आपके मन को शांत और तरोताज़ा करें। हिमाचल के पालमपुर तहसील में स्थित कंडबाड़ी भी ऐसी ही जगह है जहाँ आप साफ हवा ले सकते है,  सुकून भरे पल का मजा ले सकते, पानी को बिना फ़िल्टर किये पी सकते है. इसके अलावा रात को खुले आसमान में तारे भी देख सकते है. पारम्परिक तरीकों से की जाने वाली सिचाई और जल-प्रबंधन की ‘कूल’ व्यवस्था को भी आप समझ सकते है।

10 दिसंबर, सोमवार को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कंडबाड़ी में सिनेमा, उसके रूप और उसकी भाषा को समझने के लिए प्रतिरोध का सिनेमा द्वारा एक सिनेमा कार्यशाला का आयोजन किया गया. यह कक्षा 6 से 8 तक के बच्चो के लिए थी.

फ़ोटो : धर्मराज जोशी

स्कूल में जब पहुंचे तो स्क्रीन के लिए हमें एक चादर मिली जिसमें बहुत सलवटें थी लेकिन फिर भी हमने टेप का उपयोग कर इसे स्क्रीन में बदल ही दिया। शुरुआती सेशन मे नार्मन मेक्लेरन की लघु फ़िल्म ‘चेयरी टेल’ दिखा कर सिनेमा की भाषा पर बात की गयी और सिनेमा के जरुरी कारक ऑडियो-विजुअल इफेक्ट को समझाया गया. नार्मन मेक्लेरन की ही ‘द नेबर्स’ दिखा कर पडोसी के साथ आपसी रिश्तों और बर्ट हान्स्त्रा की ‘ज़ू’ देखकर बच्चों ने खूब ठहाके लगाए।

ये तीन ऐसी फ़िल्में है जिनको  दिखाकर सिनेमा की भाषा के साथ-साथ बच्चों को संवेदनशील बनाया जा सकता है और सिनेमा को एक टूल की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा सिनेमा कोई भी कहानी कहने का अच्छा माध्यम है और ये तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम हाशिये के लोगों की कहानी को पर्दे पर लेकर आयें.  इसके लिए किरन खटीक की ‘अवर लाइफ विद गोट्स’ दिखाई गयी. बच्चो को छोटे जीवों की दुनिया की सैर कराने के लिए ‘माइक्रोकोसमस’ भी परदे पर दिखाई गयी . चूँकि म्यूजिक वीडियो भी एक तरह का सिनेमा है तो बच्चों को शुभदीप मित्र द्वारा निर्मित ‘एक देश बड़ा कब होता है’ और के पी ससी के ‘गाँव छोड़ब नाही’ से अंत किया गया. डेढ़ घंटे की वर्कशॉप होने के कारण बच्चो का खुल कर नहीं बोलना एक बड़ी चुनौती थी जिसे ‘गाँव छोड़ब नाही’ वीडियो में दिखाए गए द्रश्यों और बोल पर बच्चों से सवाल करके एक नया प्रयोग किया गया. इस प्रयोग के तहत वीडियो में दिखे विभिन्न मसलों और प्राकृतिक संसाधनों की सूची बनाकर यह समझाने की कोशिश की गयी कि एक छोटा म्यूजिक वीडियो भी कैसे बहुत सी सूचनाओं को अपने में समेटे रहता है.

इस आयोजन में स्थानीय संस्था आविष्कार का सहयोग था. कार्यशाला की समाप्ति बच्चों द्वारा एक हिमांचली लोकगीत से हुई. कार्यशाला को संजय जोशी और धर्मराज ने संचालित किया .

( प्रस्तुति : धर्मराज जोशी, प्रतिरोध का सिनेमा अभियान से जुड़ने के लिए thegroup.jsm@gmail.com और  9811577426, 8130568120, 9680329251 पर संपर्क कर सकते हैं )

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