नई दिल्ली। वैज्ञानिक, कवि, लेखक गौहर रज़ा ने दिल्ली साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाकी पुलिस चार्जशीट में नाम शामिल किए जाने को हिंसा के वास्तविक अपराधियों को बचाने और दिल्ली में प्रतिरोध की सभी आवाज़ों को घोंट देने के लिए ।
बताया है।
गौहर रज़ा ने 27 सितम्बर को जारी एक बयान में कहा कि दिल्ली पुलिस, जो सीधे गृह मंत्रालय के तहत काम करती है, उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा (फरवरी 2020) के बारे में एक कहानी बना रही है, जो एक तरफ काल्पनिक उपन्यास के लिए बहुत अच्छी तरह से योग्य हो सकती है, और दूसरी ओर, भारत के सभी न्यायप्रिय लोगों की आँखें खोल देगी कि कैसे एक सत्तावादी शासन के तहत राज्य एजेंसियां प्रतिरोध के सभी स्वरों को कुचलने के लिए तथ्यों का निर्माण कर सकती हैं।
यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि दिल्ली के दंगों से संबंधित चार्जशीट ने एक ऐसी कहानी गढ़ी है जिसमें विपक्षी दलों के नेताओं, छात्रों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को शामिल किया गया है जो सीएए, एनआरसी और एनपीआर की आलोचना में मुखर रहे हैं। दिल्ली पुलिस स्पष्ट रूप से उन राजनीतिक नेताओं, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं जो वर्तमान शासन की जन-विरोधी नीतियों और कार्यक्रमों के आलोचक हैं उनको दोषी ठहराने की भरपूर कोशिश कर रही है ।
कई राजनीतिक दलों के नेता सीताराम येचुरी, वृंदा करात, कविता कृष्णन, सलमान खुर्शीद, एनी राजा, शिक्षाविद अपूर्वानंद, जयति घोष , सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण, अंजलि भारद्वाज, योगेंद्र यादव, हर्ष मंदर, और फिल्म निर्माताओं राहुल रॉय, सबा दीवान सहित को दिल्ली पुलिस ने एफआईआर 59/2020 में दर्ज आरोप पत्र में नामित किया है। उन्हें दिल्ली हिंसा के उत्तेजक और योजनाकारों के रूप में अलग-अलग तरीकों से दिखाया जा रहा है। यह दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली हिंसा के पीछे की साजिश का पता लगाने के लिए की गई तथागतित जाँच का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि मुझे मीडिया द्वारा सूचित किया गया है कि मेरा नाम भी अन्य लोगों के साथ चार्जशीट में शामिल किया गया है.
यह मूल रूप से दो उद्देश्यों को पूरा करता है – एक हिंसा के वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए और दूसरा यह सुनिश्चित करने के लिए कि दिल्ली में प्रतिरोध की सभी आवाज़ों को घोंट देने के लिए। यह पुलिस द्वारा कहानी इसलिए गढ़ी जा रही है कि उन लोगों से बदला लिया जा सके जो सरकार से असहमत होने और भेदभावपूर्ण और संविधान विरोधी सीएए का विरोध करने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर रहे थे ।
गौहर रज़ा ने कहा कि 2014 में सत्ता में आने के बाद से फासीवादी ताकतें बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों, कार्यकर्ताओं को निशाना बना रही हैं। उन्हें बदनाम करने के लिए मीडिया का प्रभावी इस्तेमाल किया है। अब वह एक क़दम और आगे बढ़ रहे हैं और उनको दिल्ली दंगो में फसाने की कोशिश कर रहे हैं।
मैं सरकार की नीतियों से असहमति रखता हूं और असंतोष एक संवैधानिक अधिकार है। मैंने हमेशा अन्याय के खिलाफ और सीएए, एनआरसी और एनपीआर सहित जनविरोधी नीतियों और जन विरोधी कानूनों का विरोध किया है और मैं उन सभी मुद्दों के खिलाफ जो मुझे लोकतंत्र विरोधी और जनविरोधी लगते हैं अपनी आवाज उठाता रहूंगा। एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण का यह ही तकाज़ा है।
मैं मांग करता हूं कि सरकार प्रतिरोध का अपराधीकरण बंद करे।