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‘ अंधास्था, उन्माद, पाखण्ड के महिमामंडन से समाज पर खतरनाक प्रभाव होता है ’

तहबरपुर (आज़मगढ़)। नवापुरा विद्यालय पर भगत सिंह और उनके साथियों के शहादत दिवस पर 23 मार्च को गोष्ठी और सांस्कृतिक सन्ध्या का आयोजन किया गया। यह आयोजन जन संस्कृति मंच और शहीदेआज़म भगत सिंह लाइब्रेरी, तहबरपुर ने संयुक्त रूप से किया था।

गोष्ठी का विषय ‘विज्ञान और आस्था तथा भगत सिंह’ था। इस विषय पर बातचीत की शुरुआत कामरेड ओमप्रकाश सिंह ने अपने विचारों से की। उन्होंने आस्था के नाम पर सत्ता द्वारा धार्मिक अंधविश्वास, वाह्याडम्बर, पाखण्ड को पोषित करने और वैज्ञानिक चेतना को कमजोर करने की कोशिशों के बीच भगत सिंह के विचारों को याद करने पर जोर दिया। इस क्रम में उन्होंने भगत सिंह के लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ की चर्चा की।

गोष्ठी में बोलते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयप्रकाश नारायण ने कहा कि आस्थाएं  कई हो सकती हैं। किसी व्यक्ति या विचार में किसी की आस्था हो सकती है, लेकिन धार्मिक आस्था भिन्न होती है। धार्मिक आस्था विज्ञान की खोजों को खारिज करती है। विज्ञान किसी चीज को ‘कैसे है’ के सवाल से शुरू करके तथ्य, सत्य के विश्लेषण, प्रयोग और परिणाम से ज्ञान तक पहुंचता है। तथ्य और सत्य की नयी खोज के बाद विज्ञान भी अपने निष्कर्ष बदलता है, लेकिन धार्मिक आस्था में इसके लिए जगह नहीं। आस्था ‘क्या है’ के सवाल के जवाब में जन्म लेती है। लेकिन वहां कोई तर्क नहीं है, विश्लेषण नहीं है।

उन्होंने कहा कि धार्मिक आस्था व्यक्तिगत हो सकती है, लेकिन जब सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग अंधास्था, उन्माद, पाखण्ड को महिमामंडित करने लगते हैं, तो समाज पर इसके खतरनाक प्रभाव दिखने शुरू हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुम्भ में आस्था के मंथन से महरा जैसा माफिया निकलता है और मुख्यमंत्री उसे उपलब्धि बताता है, तो इस आस्था पर बात करनी होगी। ऐसी आस्था एक पतित, बन्द समाज का निर्माण करेगी, जिसे सड़ जाने में, हिंसक हो जाने में देर नहीं लगेगी। भगत सिंह ने भी 1920-30 के दशक में ऐसी बातों के सापेक्ष ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ जैसा लेख लिखा। आर्य समाजी विश्वास से शुरू कर नास्तिक होने तक की भगत सिंह की वह यात्रा आज भी प्रासंगिक है। भगत सिंह ने अपने समय की राजनीति, समाज, धर्म आदि के गतिविज्ञान से अपने निष्कर्ष निकाले थे। हमें भी आज चल रही आस्था की राजनीति, उसके बाजार के गतिविज्ञान को समझना होगा।

गोष्ठी में डा. विनय कुमार सिंह यादव, अजय गौतम, अरुण मौर्य, हरिगेन मास्टर, दिनेश यादव, राजनाथ यादव ने भी अपने विचार रखे। संचालन दुर्गा सिंह ने किया। आभार कल्पनाथ यादव ने ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम में बौद्धिक लोगों के साथ आम ग्रामीण जन भी उपस्थित थे।

गोष्ठी के बाद सांस्कृतिक सत्र में बृजेश यादव और साथियों ने जनगीतों की प्रस्तुति दी।

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