भारतीय रिजर्व बैंक के 19 स्थानीय शाखाओं में 13 अक्टूबर को भी दो हजार रुपये के नोट बदलने के लिए लम्बी लम्बी कतारें लगी हुयी हैं। ये कतारें हैरान करती हैं कि आखिर 7 अक्टूबर की मियाद ख़त्म होने के बाद इतने लोग नोट बदलने से कैसे वंचित रह गये। वहीं आरबीआई द्वारा अपने 19 स्थानीय शाखाओं के इशूज डिपार्टमेंट के लिए ज़ारी 30 सितम्बर के आदेश में स्पष्ट कहा है कि 8 अक्टूबर 2023 से व्यक्तिगत या संस्थागत तौर पर 2000 रुपये के नोट आरबीआई के स्थानीय शाखाओं से बदल सकते हैं। जबकि संस्थानों को अपने 2000 रुपये के नोट बदलने के लिए इन्हें अपने बैंक खातों में जमा करवाना है, उनके पास नगद बदलने का विकल्प नहीं है। जबकि व्यक्तियों के लिए अपने बैंक खातों में जमा करवाने और नगद बदलने के विकल्प हैं। नगद बदलने की स्थिति में एक बार में दो हजार रुपये के मात्र 10 नोट ही बदले जा रहे हैं।
एक कर्मचारी ने पहचान नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया कि आरबीआई की शाखाओं में नोट बदलने आने वाले अधिकांश लोग अपने 2000 रुपये के नोट को नगद में ही बदल रहे हैं। वो इन नोटों को अपने बैंक खातों में नहीं जमा करवा रहे हैं। ताज़्ज़ुब की बात यह है कि हर किसी के पास बदलने के लिए 10 नोट ही हैं, 11 नोट नहीं है। किसी के पास 9 नोट, 8 नोट, 7 नोट भी नहीं है। यह कैसे हो सकता है कि वहां सबके पास बदलने के लिए 10 ही नोट है, न कम न ज़्यादा। आरबीआई द्वारा अधिकतम 10 नोट बदलने की सीमा अधिक नोट बदलने की सीमा से रोकती है लेकिन कम नोट बदलने की सीमा से तो नहीं रोकती है ना।
वो आगे बताते हैं कि दरअसल व्यक्तिगत तौर पर ग्राहक के पास 2000 रुपये के नोट को अपने खाते में जमा कराने का विकल्प है, और नगद में बदलवाने का विकल्प है। नगद में केवल 10 नोट ही बदलना है। दरअसल नगद बदलने का कोई हिसाब नहीं होता है। न ही इसका कोई कंप्युटराइज सेंट्रल डेटा नहीं तैयार होता है। नोट बदलवाने आने वाले ग्राहक का नाम रजिस्टर में लिखा, उसकी आधारकार्ड की फोटोकॉपी लिया और नोट बदल दिया।
एक बैंक में लम्बे समय तक शाखा प्रबंधक रहे एक कर्मचारी आरबीआई के इस बिना शर्त और बेमियादी नोट बदलने की प्रक्रिया पर ही सवाल उठाते हैं। वो कहते हैं कि यदि 96% नोट वापिस आ गया है तो बचे हुए चार प्रतिशत नोट को रद्दी घोषित कर देना चाहिए। वो दलील देते हैं कि एक बार नोट ज़ारी होने के बाद कभी भी शत प्रतिशत मूल्य के नोट वापिस नहीं आते। शत प्रतिशत मूल्य के नोट तभी वापिस आते हैं जब फेक करेंसी मार्केट में होती है। यानि कि नोटबंदी के बाद आपने तयशुदा मूल्य से अधिक मूल्य के 2000 रुपये के नोट छापे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की मंशा पर सवाल उठाते हुए वो आगे कहते हैं कि अपने स्थानीय शाखाओं को ज़ारी आरबीआई के आदेश में न तो कोई आखिरी तारीख दर्ज़ है, न ही जमाकर्ता से इस देरी का कोई वाजिब कारण बताने के लिए कहा गया है कि वो अब तक कहां था, क्या परेशानी थी उसे जो कि 24 मई से 7 अक्टूबर तक साढ़े चार महीने की लम्बी मियाद में भी वो अपने नोटों को बदलने के लिए नज़दीकी बैंक शाखा में नहीं जा सका। यानि आप (आरबीआई) बे-शर्त नोट बदल रहे हो तो प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है कि आपकी मंशा क्या है? क्या आप किसी को फायदा पहुंचाना चाहते हैं? आखिर किसके पॉकेट में दबे पड़े थे ये नोट। जो अब आरबीआई के स्थानीय शाखाओं में बदले जा रहे हैं। क्योंकि जो आम आदमी के जेब के 2000 रुपये के नोट थे वो तो वापिस आ गये हैं। आम आदमी तो बैंकों में ही लाइन लगाकर पहली मियाद खत्म होने से पहले ही अपने नोट बदल चुका है या खाते में जमा कर चुका है। फिर वो कौन लोग हैं जिनके नोट दो दो मियादें खत्म होने के बाद भी बची रह गयी हैं?
गौरतलब है 30 सितम्बर को ज़ारी अपने आदेश में भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया है कि 19 मई 2023 तक कुल 3.56 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 2000 रुपये के नोट चलन में थे। नोटबंदी-2 के बाद 29 सितम्बर 2023 कुल 3.42 लाख करोड़ रुपये मूल्य के तक 2000 रुपये के नोट भारतीय रिजर्व बैंक के पास वापिस आ गये। केवल 0.14 लाख करोड़ रुपये मूल्य के दो हजार रुपये के नोट ही रह गये थे। इन्हीं बाक़ी 0.24 लाख करोड़ रुपये के मूल्य को दो हजार रुपयों के नोटों की वापसी के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने नोट विनिमय की अवधि और 2000 रुपयों के नोटों की वैधता मियाद एक सप्ताह बढ़ाकर आखिरी तारीख 7 अक्टूबर 2023 कर दी थी। इस संबंध में एक प्रेस विज्ञप्ति ज़ारी करते हुए आरबीआई ने कहा था कि 8 अक्टूबर 2023 से बैंक 2000 रुपये के नोट स्वीकारना बंद कर देंगे और केवल 19 स्थानीय आरबीआई शाखाओं में ही नोट बदले जाएंगे।
इससे पहले 19 मई को भारतीय रिजर्व बैंक ने 2 हजार रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने का फरमान ज़ारी किया था। 23 मई 2023 से देश के तमाम बैंकों में नोटों को बदलने का सिलसिला शुरु होकर 7 अक्टूबर 2023 तक चला।
नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद 2000 रुपये के नोटों को भारतीय बाज़ारों में उतारा गया था। हालांकि साल 2018-19 से ही 2000 रुपये को नोटों की छपाई भारतीय रिजर्व बैंक ने बंद कर दी थी।
आरबीआई के स्थानीय शाखाओं के आस पास चाय पान की दुकान लगाने वालों और स्थानीय लोगों का कहना है कि सुबह से ही आरबीआई के स्थानीय कार्यालयों में लम्बी लम्बी कतारें लग जाती हैं। कई बार सुरक्षाकर्मी लोगों को इधर उधर हटा देते हैं यह कहकर कि भीड़ न लगाओ, बारी बारी से आओ। साथ ही मीडिया कवरेज न हो इसको लेकर एहतियात बरता जा रहा है। अगर नोट बदलने वाले सामान्य लोग होते तब तो कोई दिक्कत ही नहीं होती। पर ये सामान्य लोग नहीं हैं। ये स्थानीय बिल्डर, ठेकेदार और प्रॉपर्टी डीलर हैं जो बड़ी और महँगी गाड़ियों में बैठकर आते हैं इनके साथ गाड़ियों में कई लोग होते हैं, कई बार महिलाएं और बच्चे भी होते हैं। ये सभी लोग गाड़ी से निकलकर बैंक की लाइन में लगते हैं।
एक चायवाला बताता है कि 13 अक्टूबर की सुबह अपना दल (एस) का झंडा लगी एक गाड़ी आकर आरबीआई के दफ़्तर के सामने रुकी इसमें से आधा दर्जन लोग निकले और कतार में जाकर खड़े हो गये। इसी तरह दिन में कई गाड़िया आकर रुकती हैं जिस पर मुख्य सत्ताधारी दल का झंडा लगा होता है। इन गाड़ियों से एक साथ कई लोग उतरते हैं और कतारों में जाकर खड़े हो जाते हैं। कई बार बिना राजनीतिक झंडे वाली गाड़ियों से भी कई लोग उतरते हैं और वो नोट बदलने के बाद जब बाहर निकलते हैं तो वहीं आरबीआई कार्यालयों में ही पेड़ के पास बैठे पार्टी विशेष के व्यक्ति के पास जाकर उसे फंड देते हैं। आरबीआई कार्यालयों में 2000 रुपये के नोट बदलने के साथ ही पार्टी फंडिंग भी हो रही है शायद। इस तरह कर चोरी, भ्रष्टाचार, जैसे तमाम अवैध जरियों से अर्जित अवैध कमाई को वैध बनाया जा रहा है। साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव के मद्द-ए-नज़र पार्टी विशेष को आर्थिक मदद किया जा रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव की आर्थिक तैयारियों और चुनावी समय के ध्यान में रखते हुए ही नोटबंदी-2 का फैसला लिया गया प्रतीत होता है।