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पटना में किसान-मजदूर महापंचायत, 26 मार्च के भारत बंद को ऐतिहासिक बनाने की अपील

पटना। तीनों कृषि काूननों को रद्द करने, बिहार विधानसभा से उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित करने, एमएसपी को कानूनी दर्जा देने, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली और भूमिहीन व बटाईदार किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ प्रदान करने सहित अन्य मांगों पर आज पटना के गेट पब्लिक लाइब्रेरी में भाकपा-माले, अखिल भारतीय किसान महासभा व खेग्रामस के संयुक्त बैनर से आयोजित किसान-मजदूरों की महापंचायत में हजारों किसान-मजदूरों ने भागीदारी निभाई.
महापंचायत में मुख्य वक्ता माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार के किसानों के साथ भाजपा-जदयू ने सबसे बड़ा धोखा किया है.भाजपा-जदयू सरकार ने 2006 में ही एपीएमसी ऐक्ट को खत्म करके यहां के किसानों को दुर्दशा के चक्र में धकेल दिया था. उन्होंने कहा कि एमएसपी का सवाल केवल बड़े किसानों का नहीं है, बल्कि इसका खामियाजा छोटे किसानों को भुगतना होगा. यहां के किसानों को सबसे कम कीमत मिलती है. देश के हरेक हिस्से में किसानों को एमएसपी मिलनी चाहिए.
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा के लोग पंजाब और बिहार को एक दूसरे के विरोध में खड़ा करना चाहते हैं, लेकिन आज इस महापंचायत ने साफ संदेश दिया है कि बिहार के किसान भी आज मजबूती से खड़े हो चुके हैं. संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर 26 मार्च के भारत बंद को उन्होंने बिहार में एक ऐतिहासिक बंद में तब्दील कर देने का आह्वान किया. उन्होंने यह भी कहा कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह के पंजाब से उठ खड़ा किसान आंदोलन स्वामी सहजानंद सरस्वती-रामनरेश राम जैसे किसान नेताओं की सरजमीं बिहार में नया आवेग व विस्तार पा रहा है. आज की महापंचायत बिहार के घर-घर व गांव-गांव तक इस आंदोलन को फैला देने का आह्वान किया.
उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों में होेने वाले चुनावों में किसानों का ही मुद्दा प्रधान मुद्दा होगा. एक-एक वोट भाजपा के खिलाफ देने और उसे हराने की अपील की.
पंजाब से आए किसान नेता गुरनाम सिंह भक्खी ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा लगाए गए तमाम बंदिशों को ध्वस्त करते हुए हम 26-27 नवंबर से दिल्ली के बाॅर्डरों पर जमे हुए हैं. हम आपसे कहने आए हैं कि तीन कृषि कानून के खिलाफ लड़ाई केवल पंजाब-हरियाणा के किसानों की नहीं है. यदि हमारी खेती व हमारी जमीन काॅरपोरेटों के हवाले हो जाएगी, तो फिर हम खायेंगे क्या ? ये कानून पूरे देश में खाद्यान्न संकट पैदा करेंगे और गरीबों के मुंह से रोटी छीन जाएगी. इसलिए हमारे लिए यह जीने-मरने की लड़ाई है. आज वक्त है कि देश के सभी किसान एकजुट हो जायें. हम एमएसपी लेकर रहेंगे.
दिल्ली बाॅर्डर पर किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग करने वाली पत्रिका ट्राॅली टाइम्स की संपादक व युवा महिला नेता नवरिकण नत्थ ने कहा कि खेती में हम महिलाओं का प्रतिशत 50 के आसपास है. लेकिन जमीन में भागीदारी मात्र 2 प्रतिशत है. यह लड़ाई हम सबकी है, पेट भरने की है. पेट का कोई धर्म नहीं होता. जिस प्रकार से जीने के लिए रोज-रोज खेती करना है, उसी प्रकार अब हर दिन आंदोलन भी करना है. उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही दिल्ली के बाॅर्डरों पर बिहार से किसानों का जत्था पहुंचेगा.
महापंचायत को राष्ट्रीय जनता दल के नेता व बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री उदयनारायण चौधरी, प्रख्यात साहित्यकार प्रेम कुमार मणि, सीपीआईएम के राज्य सचिव मंडल के सदस्य गणेश शंकर सिंह, किसान सभा-अजय भवन के नेता अशोक कुमार, पूर्व विधायक मंजू प्रकाश, भाकपा-माले के विधायक व खेग्रामस के सम्मानित बिहार राज्य अध्यक्ष सत्यदेव राम, विधायक व खेग्रामस नेता वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, तरारी से विधायक व अखिल भारतीय किसान महासभा के नेता सुदामा प्रसाद आदि नेताओं ने भी संबोधित किया.
मंच का संचालन अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव, पूर्व विधायक व अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बिहार-झारखंड के प्रभारी काॅ. राजाराम सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन बिहार के जाने-माने किसान नेता काॅ. केडी यादव ने दिया.
कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए राजाराम सिंह ने मंच पर माले के वरिष्ठ नेता काॅ. स्वदेश भट्टाचार्य, राज्य सचिव कुणाल, खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, शशि यादव, किसान महासभा के बिहार राज्य अध्यक्ष विशेश्वर प्र. यादव व सचिव रामाधार सिंह, विधायक दल के नेता महबूब आलम, संदीप सौरभ, मनोज मंजिल, महानंद सिंह सहित अन्य कई नेता उपस्थित थे.
कार्यक्रम की शुरूआत में किसान आंदोलन के तमाम शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई. हिरावल की टीम ने शहीद गान को प्रस्तुत किया. इसके पहले बिहार में संगठित किसान आंदोलन के नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण करके उन्हें श्रद्धांजलि दी गई.
किसान-मजदूर महापंचायत में 10 सूत्री राजनीतिक प्रस्ताव पारित कीयय गया जो इस प्रकार है –
1. मोदी सरकार द्वारा लाए गए किसान व देश विरोधी तीनों कृषि कानून न केवल हमारी खेती को काॅरपोरेटों का गुलाम बना देंगे बल्कि खाद्य सुरक्षा, जनवितरण प्रणाली, पोषाहार सरीखी योजनाओं को भी खत्म कर देंगे. इनकी भारी मार गरीबों-मजदूरों पर भी पड़ेगी. राज्य के कोने-कोने से आज हजारों की तादाद में पटना पहंुचे किसान-मजदूरों की यह महापंचायत इन तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने तथा बिहार विधानसभा से इनके खिलाफ प्रस्ताव पास करने की मांग करती है.
2. मोदी सरकार के क्रूरतम हमलों व किसान आंदोलन को सत्ता के द्वारा लगातार बदनाम करने की साजिशों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए देशव्यापी किसान आंदोलन ने चौथे महीने में प्रवेश कर लिया है. सरकार नहीं चाहती है कि गैर-खेतिहर नागरिक व किसानों के बीच कोई एकता निर्मित हो. किसान आंदोलन को अलगाव में डालने के इरादे से सरकार तमाम संवैधानिक कायदे-कानूनों का उल्लंघन करके किसानों के साथ-साथ उनके आंदोलन के समर्थन में उतर रहे नागरिक आंदोलनों के कार्यकर्ताओं के भी दमन पर तुली है. आज की महापंचायत मोदी सरकार के इस तानाशाही रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए किसान आंदोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों के और अधिक सक्रिय एकता के निर्माण का आह्वान करती है. महापंचायत किसान आंदोलन सहित न्याय व अधिकार के आंदोलन में जेल में बंद तमाम लोगों की रिहाई की मांग करती है.
3. यह महापंचायत संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर आगामी 26 मार्च को आयोजित भारत बंद का पुरजोर समर्थन करती है तथा उसे एक ऐतिहासिक बंद में तब्दील कर देने का आह्वान करती है. शहीद-ए-आजम भगत सिंह के पंजाब से उठ खड़ा किसान आंदोलन स्वामी सहजानंद सरस्वती-रामनरेश राम जैसे किसान नेताओं की सरजमीं बिहार में नया आवेग व विस्तार पा रहा है. आज की महापंचायत बिहार के घर-घर व गांव-गांव तक इस आंदोलन को फैला देने का आह्वान करती है.
4. 2006 में सत्ता में आते ही नीतीश सरकार ने एपीएमसी ऐक्ट को खत्म कर बिहार के किसानों से सरकारी मंडियां छीनकर उन्हें बाजार के हवाले कर दिया. यदि सरकारी मंडियों को खत्म कर देने से किसानों का भला होता तो आज सबसे अच्छी स्थिति में बिहार के किसान होते, लेकिन हालत ठीक उलटी है. अपने राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान अथवा अन्य फसलों की खरीददारी बेमानी है. यहां के किसान 900-1000 रु. प्रति क्विंटल की दर से धान बिचैलियों व व्यापारियों के हाथों बेचने को मजबूर हैं. किसानी की बुरी हालत के कारण राज्य से गरीबों का पलायन बदस्तूर जारी है. धीरे-धीरे करके व्यापार मंडल, एफसीआई, एसएफसी आदि सभी संस्थाएं निष्क्रिय व कमजोर कर दी गई हैं. आज की महापंचायत न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने, कृषि बाजार समितियों को पुनर्जीवित करने तथा एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली की मांग करती है.
5. किसान आंदोलन में फूट डालने के इरादे से मोदी सरकार आज भूमिहीन-बटाईदार किसानों के बीच भ्रामक प्रचार फैलाकर उनकी हितैषी होने का स्वांग कर रही है. लेकिन हम सब जानते हैं कि किसानों के इस तबके की सबसे बड़ी विरोधी भाजपा है. भूमिहीन-बटाईदार किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का कोई लाभ नहीं मिलता. बिहार की भाजपा-जदयू सरकार बहुत पहले बटाईदारों को न्यूनतम कानूनी अधिकार देने से भाग खड़ी हुई है. आज की महापंचायत भूमिहीन-बटाईदार किसानों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का लाभ देने तथा बटाईदारों के निबंधन की प्रक्रिया आरंभ करने की मांग करती है.
6. रेलवे, हवाई जहाज, बीमा, कृषि के साथ-साथ सरकार अब सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण का खेल खेल रही है. निजीकरण की प्रक्रिया हमारे रोजगार के अवसरों व सामाजिक सुरक्षा पर एक बड़ा हमला है. देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण से किसानों, छात्र-नौजवानों, गरीबों को मिलने वाले सारे कर्जे बंद हो जाएंगे और वे निजी मालिकों के अधीन हो जाएंगे. आज की महापंचायत से हम निजीकरण की प्रक्रिया पर रोक लगाने तथा सार्वजनिक संस्थाओं के तंत्र को और भी चुस्त-दुरूस्त करने की मांग करते हैं.
7. आज की महापंचायत युवाओं के लिए सम्मानजनक रोजगार तथा आशा-आंगनबाड़ी-रसोइया-शिक्षक अर्थात सभी स्कीम वर्करों के लिए ठेका प्रथा व आउटसोर्सिंग खत्म कर स्थायी रोजगार देने की मांग करते हुए उनके आंदोलन का समर्थन करती है तथा श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी किए गए संशोधनों को वापस लेने की मांग करते हुए सभी संघर्षशील ताकतों के बीच एक बड़ी एकता के निर्माण का आह्वान करती है.
8. भूख से लगातार होती मौतें बेहद चिंताजनक हैं. सुपौल में आर्थिक तंगी के कारण एक ही परिवार के 5 लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशों की सूची में 103 वें स्थान पर होने के बावजूद मोदी सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों से इथेनाॅल जैसे अखाद्य पदार्थों का निर्माण भूख से जूझती देश की जनता को मार देने की साजिश के अलावा कुछ नहीं है. बिहार सरकार भी खद्य पदार्थों से इथेनाॅल बनाने का फैसला ले चुकी है.महापंचायत बिहार सरकार से ऐसे गरीब विरोधी व भूख के दायरे को बढ़ाने वाले निर्णयों को राज्य में लागू नहीं करने की मांग करती है.
9. बिहार सरकार द्वारा सोशल मीडिया को नियंत्रित करने, आंदोलनों में शामिल समूहों को सरकारी नौकरी व ठेका न देने के फरमान और राजधानी पटना सहित पूर राज्य में प्रतिवाद के न्यूनतम अधिकारों को कुचलने की साजिशों का पुरजोर विरोध करती है.
10. ड्रैकोनियन शराबबंदी कानून के असली माफिया खुद सरकार में बैठे हैं, लेकिन गरीबों को फांसी की सजा दी जा रही है. आज की महापंचायत शराब के कारोबार में लिप्त मंत्री रामसूरत राय को बर्खास्त करने और शराबबंदी कानून के नाम पर जेलों में बंद हजारों गरीबों की तत्काल रिहाई की मांग करती है.

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