लखनऊ। सीएए-एनआरसी के खिलाफ पर्चा वितरित कर रहे प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डा. संदीप पांडेय और उनके नौ अन्य सहयोगियों को आज दोपहर लखनऊ पुलिस ने रूमी गेट के पास गिरफ्तार कर लिया। पांच घंटे बाद डा. पांडेय और उनके सभी सहयोगियों को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया।
डा. संदीप पांडेय आज दोहपर 12 बजे घंटाघर से अपने नौ सहयोगियों के साथ सीएए और एनआरसी के खिलाफ पर्चा वितरित करते हुए निकले। घंटाघटा के पास तैनात पुलिस ने उन्हें रोका और कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पर्चा नहीं बांट सकते। डा, पांडेय ने कहा कि संविधान उन्हें अधिकार देता है कि वे अपनी बात को कहने के लिए पर्चें को जनता के बीच वितरित कर सकते हैं। सुप्रीप कोर्ट ने भी कई बार असहमति के अधिकार पर बंदिश लागने की मनाही की है। कुछ देर की बहस के बाद पुलिस कर्मियों ने संदीप पाडेय को जाने दिया।
डा0 पांडेय अभी रूमी गेट तक पहुचे थे कि पुलिस बल के साथ पहुंचे एसीपी ने उन्हें रोक लिया और पर्चा वितरित करने से मना किया संदीप पांडेय जब अपने आंदोलन को जारी करने पर अडे रहे तो उन्हें शाति भंग की आशांका में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें और अन्य नौ लोगों को थाने ले जाया गया। कुछ देर बाद पुलिस संदीप पांडेय को जाने देने की बात करने लगी लेकिन उन्होंने कहा वह अपने साथियों के साथ ही रिहा होेंगे या सभी के साथ जेल जाएंगे। आखिरकार पुलिस को झुकना पड़ा और शाम पांच बजे सभी को निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया।
भाकपा (माले) ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ पर्चा बांटने पर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता डॉ. संदीप पांडेय व नौ अन्य को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिये जाने की कड़ी निंदा की है। पाटी ने कहा कि कहा कि सीएए का विरोध पर्चे बांट कर करना कानूनन जुर्म नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक विरोध के संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत है। दिल्ली में शाहीनबाग में महिलाओं के सीएए-विरोधी धरने पर सर्वोच्च न्यायालय में चल रही सुनवाई में शीर्ष अदालत ने भी नागरिकों के शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को कानूनी तौर पर जायज माना है। लिहाजा लखनऊ में डॉ. पांडेय द्वारा सीएए के विरोध में पर्चा बांटने पर शांति भंग करने का पुलिस द्वारा लगाया गया आरोप (धारा 151) बेतुका और आधारहीन है। योगी सरकार के इशारे पर उत्तर प्रदेश पुलिस विरोध और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले कर रही है।