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दिव्य कुंभ: कर्म कर फल की इच्छा मत रख,  मेहनत कर मेहनताने की इच्छा मत कर-‘सुंदरी’

19 फरवरी रविदास जयंती के दिन भी मैंने दलित संतों के अपमान की कथा कही थी और 23 फरवरी की रात भी अपने लेख में कहा था की कल जब प्रधानमंत्री आएंगे तो यह पाखंड अपने चरम पर होगा।
प्रधान जी आए, अपने दल बल सहित स्नान किया, पूजा की, चंदन टीका किया और सफाई कर्मियों के चरण पखारे, तौलिए से पोछा । महंत योगी महाराज उन्हें अगला भगीरथ घोषित कर रहे थे तो साध्वी उमा भारती ‘सफाई कर्मियों के घर स्वयं भगवान पधारेंगे’ इसका ज्ञान दे रही थीं । बड़ी-बड़ी घोषणाएं हो रही थीं । पंडाल तालियों से गूंज रहा था । जयकारे लग रहे थे लेकिन सफाई कर्मियों की हालत क्या है ? उनके बदहाल, आदमी से भी एक दर्जा कम, स्थाई नौकरी की कौन कहे दिहाड़ी भी नहीं मिल रही, यह सारे सवाल तालियों और जयकारों के शोर में दबा दिए गए।
अखबारों की बड़ी-बड़ी हेडलाइंस के बगल में जरूर इनके भविष्य की चिंता की कुछ खबरें छपी हैं । दलित संतों के वाल्मीकि अखाड़े ने धन्यवाद देते हुए प्रश्न भी उठाया कि सम्मान तो आपने किया पर इनके जीवन का दर्द दूर करने का भी कुछ करते तो शायद बात बनती । अगले दिन अमर उजाला के इलाहाबाद संस्करण में भी इनके मेहनताना न मिलने, इनकी जीवन स्थितियों पर खबरें छपी हैं, और वाल्मीकि अखाड़े का बयान भी ।
इन सफाई कर्मियों के लिए लगातार जिन लोगों ने, चाहे वह एक्टू के नेतागण डॉक्टर कमल, संतोष, राम सिया हों या कवि सामाजिक कार्यकर्ता अंशु मालवीय, संघर्ष किया उसके कारण इन्हें दिसंबर और जनवरी का पैसा मिल सका । हालांकि अभी तक सभी को नहीं मिला है ।
बस्ती
25, 26 और 27 को लगातार मैं इन बस्तियों के लोगों से मिलने, उनकी खोज खबर लेने गया कि अब इतनी बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बाद शायद कुछ सकारात्मक हुआ हो, अधिकारियों ठेकेदारों पर प्रधानमंत्री जी के ‘चरण पखारने’ का कोई प्रभाव पड़ा हो । लेकिन मेरे हाथ निराशा ही लगी। हां, यह जरूर हुआ कि 25 तारीख की शाम जहां वाल्मीकि अखाड़े में 25-30 सफाई कर्मी गए थे, वहीं 26 तारीख को करीब 200 से ऊपर सफाई कर्मी अपने संतों से मिलने गए । कार्ल मार्क्स की वह पंक्ति याद आ गई -‘धर्म पीड़ित मानवता की कराह है’।

कितना विश्वास जीत पाए हैं हम इन छले गए लोगों का

अभी यह कथा मैं लिख ही रहा था कि सेक्टर 15 की बस्ती से जगन्नाथ जी का फोन आता है, जिनके बैंक खाते की तस्वीर मैंने 23 फरवरी वाली खबर में डाली थी । उन्हें लग रहा था कि खाता नंबर जानने के बाद और उनके खाते में पैसा आ गया है यह सूचना देने के बाद मैं कहीं उसका बेजा इस्तेमाल तो नहीं करूंगा । उन्होंने मुझे थोड़ा धमकाने के अंदाज में कहा-‘देखो,उसमें कोई हेर फेर मत करना, वरना जहां होगे हम खोज लेंगे ।मेरे बात करने और विस्तार से समझाने पर वे आश्वस्त हुए ।कल मिलने का वादा भी है । अभी हम भी कितना विश्वास जीत पाए इन बार बार छले गए लोगों का।

कल शाम हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। बख्शी बांध होते हुए नागवासुकी मार्ग से जब आप सेक्टर 6 के लिए उतरते हैं तो बाएं हाथ पर नाले के किनारे इन मजदूरों की जर्जर पन्नियों से ढके दड़बेनुमा टेंट, अब जब भव्य अखाड़े उखड़ गए हैं, साफ-साफ नजर आते हैं ।
यहां मुझे बांदा जिले के लोग मिलते हैं । स्त्री-पुरुष मिलाकर कुल 28 कर्मचारी हैं इस जगह पर । मुन्नीलाल सिपाही और सुक्खन लाला इनके मेठ हैं । प्रत्येक के साथ 14-14 कर्मचारी हैं ।मुन्नीलाल ग्राम मकरी, थाना गिरांव, तहसील अतर्रा, बांदा के रहने वाले हैं । पूछने पर बताते हैं कि अभी सिर्फ दिसंबर का 14 दिन का पैसा मिला है । 1 जनवरी से 25 फरवरी तक हमारी 56 हाजिरी है लेकिन 27 फरवरी की शाम तक एक भी पैसा नहीं मिला है । ठेकेदार के बारे में पूछने पर पता लगा कि इनके ठेकेदार कुंभ मेले के लल्लू जी टेंट हाउस वाले हैं, जिन्हें हर बार वर्षों से माघ मेला, अर्धकुंभ, कुंभ में टेंट बांस बल्ली का अनवरत ठेका मिलता है।
मुन्नीलाल
उन्होंने अपने ठेके का एक हिस्सा बांदा के ठेकेदार नरेश को दिया । नरेश ने इलाहाबाद के संजय नगर निवासी लल्लू ठेकेदार को दे दिया ।अब यह लोग लल्लू ठेकेदार के अंतर्गत हैं । अब जब यह लोग लल्लू से पैसा मांगते हैं तो वह कहता है नरेश जाने, मैंने तो भर्ती नहीं की है तुम लोगों की । इस ठेकेदार के अंतर्गत 14 से 15 लोगों की लगभग 15 टीमें हैं जिन्हें अभी तक जनवरी का पैसा भी नहीं मिला है ।
मुन्नीलाल काफी आहत हैं और रोष से भर कर कहते हैं- ‘बहुत सेवा कर ली गंगा मैया की, अब हमसे नहीं होगी’।
इसी बस्ती में रह रही बांदा शहर के कंजनपुरवा मोहल्ले की सुंदरी कहती हैं कि हमारे घर में आटा दाल तक नहीं । यदि मेला में भंडारा ना चल रहा होता तो हम लोग भूखों मर जाते । मोदी जी का सम्मान करने की बाबत मैं पूछता हूं तो बोली- ‘चरण तो पखार रहे, कुछ पेट का इंतजाम तो कर देते। सम्मान से क्या होगा । हमारे पास में न तो जमीन है और न रोजगार । उस पर से दिहाड़ी भी नहीं मिल रही । पाखंड करने से क्या होगा । ‘
सुन्दरी
मुन्नी लाल जी से पूछा तो बोले-‘हमारा पैसा नहीं मिला तो कल से काम पर नहीं जाएंगे । हमारा पैसा दे दो, हमें अपने घर वापस जाने दो ।’ बगल में खड़ी एक बुजुर्ग महिला बोलती है कि अब अगर बारिश हो गई तो टेंट में रात कैसे कटेगी । यह लोग कहीं से लकड़ी जुटा कर लाए थे और उसी को जलाए आग के इर्द-गिर्द जमा हो रात काटने की जुगत किए हुए थे ।
बस्ती में आग तापते कर्मचारी
चुनाव का जिक्र होता है । सर्जिकल स्ट्राइक की बात आती है तो एक नौजवान सेना की प्रशंसा करता है । चुनाव के सवाल पर एक महिला गुस्से में बोलती है-‘जिन का सम्मान किए हैं वह दे तो दे, हम लोग न देंगे ।’
हालांकि जिनका सम्मान हुआ उनमें मुरादाबाद के होरी लाल सपरिवार सफाई में जुटे हैं, चिंता उन्हें भी सता रही है कि 10 दिन बाद जब बेरोजगारी सर पर आएगी तब अपने 3 बच्चों के साथ जीवन कैसे चलेगा । उनकी पत्नी कहती है कि सम्मान तो ठीक पर जीवन के गुजर बसर का कुछ इंतजाम कर देते तो ठीक होता ।
 इसी सिलसिले में जब मैं नाविकों के बीच गया तो वहां एक नौजवान जिनका नाम प्रदीप है, तथा एक अधेड़ से मुलाकात हुई  । नौजवान प्रदीप काफी उत्साहित लग रहे थे मेले की व्यवस्था पर ।  बातचीत के दौरान प्रदीप ने कहा कि  हम बहुत खुश हैं सम्मान मिलने से । इस बार अर्ध कुंभ में मोदी-योगी जी ने बहुत शानदार व्यवस्था की है । इस बार गुंडाराज नहीं है । सपा और बसपा के समय में तो गुंडाराज था  । अब हम मुक्त होकर अपना काम कर पा रहे हैं । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने मोदी को समर्थन करने की बात भी कही ।
नाविक प्रदीप और वे अधेड़ जिनकी चुप्पी बहुत कुछ बयान कर रही थी
लेकिन जो अधेड़ व्यक्ति थे, जो न तो कैमरे पर आना चाहते थे और ना ही अपना नाम बताया, वह लगातार चुप्पी साधे रहे । उनके चेहरे के भाव एक तरह के सवालिया निशान की तरह थे नाविकों की स्थिति के बारे में । बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि- ‘बहुत मेहनत पड़ रही है, सुबह 5 बजे से लगा हूं और 8 बजे नाव बांध रहा हूं । बहुत मेहनत पड़ती है ।  क्या मिलता है ?’इस पूरी बातचीत का आखिरी वाक्य ‘क्या मिलता है?’ नाविकों की स्थिति को बयान करने के लिए पर्याप्त है ।
मछुआरों के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी हालत इस बार बहुत खराब है ।  उनके तो जीवन का संकट बढ़ गया है ।
मेले में आए मेरे मित्र रवि प्रकाश (पूर्व महामंत्री, जेएनयू छात्रसंघ) से कल रात मेले में किन्नर अखाड़ा के सामने मेरी मुलाकात होने पर उसने एक घटना का वर्णन किया जो किन्नर अखाड़ा में घटी । वाल्मीकि अखाड़े  से निकलकर सफाईकर्मी किन्नर अखाड़े में जादू देखने चले गए । उनके मंच पर एक जादूगर जादू दिखा रहा था । उसने मंच पर लोगों को बुलाया । एक सफाई कर्मी उठ कर गए । जादूगर ने कहा जो चाहो मांगो, हां, अब हवाई जहाज मत मांग लेना । उन्होंने कहा-‘सम्मान’। जादूगर बोला-अरे! यह क्या यह कोई देने की चीज है, कुछ और मांगो । उसने फिर कहा-‘सम्मान’। जादूगर की हैसियत नहीं थी । खैर सुना है 4 मार्च के बाद इस दिव्य विज्ञापन कुंभ का बाकायदा समापन समारोह होगा, जिसमें देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह आने वाले हैं । क्या इन अनसुनी आवाजों के लिए उनके कान का कोई छिद्र खुला होगा?

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