स्मृति दिवस (15 फरवरी)
कॉमरेड सी बी सिंह का निधन पिछले साल आज के दिन 15 फरवरी को हुआ था। वे ‘समाज के, समाज के लिए और समाज के द्वारा’ निर्मित अग्रणी साथी रहे हैं। यह शोषित, पीड़ित, दलित, उपेक्षित, अवहेलित श्रमिक समाज है जिसे चेतनशील और जागरूक बनाए जाने तथा क्रान्तिकारी बदलाव के लिए तैयार करने की जरूरत है। सीबी सिंह ऐसे ही व्यक्ति रहे हैं जिन्होंने इस समाज की मुक्ति के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। इसीलिए उनके जाने से जो अन्तराल पैदा हुआ है, उसे भर पाना आसान नहीं है। उन्हें हम हमेशा महसूस करेंगे। वे शरीर से भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपनी सामाजिक भूमिका से वे हमेशा जिंदा हैं और रहेंगे। उनकी वैचारिक उपस्थिति हमेशा बनी हुई है, जो बदलाव की लड़ाई को प्रेरित करती है।
कामरेड सीबी सिंह मूलतः बलिया के रहने वाले थे। यह जिला अपने विद्रोही चरित्र के कारण स्वाधीनता आंदोलन के दौरान काफी चर्चित रहा है। इसी जमीन और क्रान्तिकारी धारा की वे पैदाइश थे। बीसवीं सदी फ्रांस में छात्रों नौजवानों का जो संघर्ष छिड़ा, उसका असर यह देखने में आया कि राष्ट्रपति देगाल को देश छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा। यही समय है जब अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ वियतनामी जनता का मुक्ति संघर्ष जोरों पर था और हमारे देश में भी नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह के रूप में जन असंतोष की अभिव्यक्ति हो रही थी। इस विद्रोह ने छात्र नौजवानों को प्रभावित-प्रेरित किया था। राजनीतिक बदलाव के संघर्ष में अनेकानेक नौजवान शामिल हुए। इन्हीं सब स्थितियों-परिस्थितियों ने कामरेड सीबी सिंह को प्रभावित किया। उनके अन्दर भी एक नए भारत का स्वप्न आलोड़ित हो रहा था। इसी दौर में वे बलिया से लखनऊ आए। यही उनकी कर्मभूमि बन गई।
सी बी सिंह नक्सलबाड़ी किसान आंदोलन से प्रेरित थे। इसने सामाजिक बदलाव और क्रांति की उर्जा से उन्हें दीप्त किया। आगे अपने संपूर्ण जीवन को इसी दिशा में उन्होंने समर्पित कर दिया। बुर्जुआ राजनीत ने उन्हें कभी आकर्षित नहीं किया। इमरजेंसी के दौरान उनसे हम जैसे साथियों का संपर्क हुआ। उस वक्त वे छात्र युवा क्रांतिकारी मोर्चा जैसे संगठन के मुख्य कर्ताधर्ता थे। जेपी आंदोलन को उत्तर प्रदेश में फैलाने, बढ़ाने में उनकी अग्रणी भूमिका थी। छात्र युवा नेता के रूप में उनकी पहचान थी।
1980 के दशक में जब लखनऊ में नवचेतना सांस्कृतिक संगठन का गठन हुआ, सीबी सिंह का कार्यालय संगठन की बैठकों, गोष्ठियों तथा नाटकों के रिहर्सल का केंद्र बना। इन सब में उनकी दिलचस्पी हुआ करती थी। उनकी राय सबके लिए बहुमूल्य होते थे। ” जनता पागल हो गयी है ”, ” इंकलाब जिंदाबाद” जैसे नुक्कड़ नाटकों का रिहर्सल यहीं हुआ जो उन दिनों के चर्चित कार्यक्रम थे।
पिछले दिनों जन संस्कृति मंच की ओर से कई कार्यक्रम जहांगीराबाद मैंशन में आयोजित किए गए जिनमें कामरेड सीबी सिंह की सक्रिय उपस्थिति थी। अनिल सिन्हा की स्मृति तथा ‘वह औरत नहीं महानदी थी’ कविता संग्रह पर संगोष्ठी आदि ऐसे ही आयोजन थे। ‘वह औरत नहीं महानद थी’ पर हुई गोष्ठी की अध्यक्षता उन्होंने की। राजनीति व समााज की ही नहीं साहित्य की भी उनके पास गहरी समझ थी। मेरी कविताओं पर उनका कहना था कि ये जन आंदोलन की उपज है तथा ऐसी कविताएं लिखना सामाजिक-सांस्कृतिक काम है। जनता के पक्ष में लिखे जा रहे साहित्य को जनता तक कैसे पहुंचाया जाए, यह हमारी चिंता में हो।
वे तमाम जनवादी और प्रगतिशील संगठनों के स्वयं केंद्रक थे और जहांगीराबाद मेंशन को इसका केंद्र बना रखा था। ऑल इंडिया वर्कर्स कौंसिल, नागरिक परिषद, पीपुल्स यूनिटी फोरम आदि अनेक संगठनों से न सिर्फ उनका रिश्ता था बल्कि इनको जीवन्त और कारगर बनाने में उनकी भूमिका थी। कामरेड सीबी सिंह के लिए यह कहना ज्यादा सही है कि वे किसी एक संस्था या संगठन के ना होकर प्रगतिशील, जनवादी, वामपंथी जन आंदोलन के साथी रहे हैं और इसीलिए वे सबके प्रिय व जरूरी थे। आज जब जनता पर फासीवादी हमले बढ़े हैं, उनका ना होना एक बड़ी क्षति है । वे बहुत याद आते हैं और याद आते रहेंगे। कामरेड सी बी सिंह जैसे साथी आसानी से तैयार नहीं होते। आंदोलनों की आंच में तप और पक कर निखरते और चमकते हैं। उनके लिए ये दो पंक्तियां समर्पित हैं:
मिलेंगे हमेशा वर्तमान में
लड़ते हुए और यह कहते हुए
स्वप्न अभी अधूरा है, स्वप्न अभी अधूरा है।’