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एनएफ़एआई, सीएफ़एसआई, एनएफ़डीसी को बंद करना भारतीय फिल्म-इतिहास और धरोहर पर तुषारापात होगा

देश के प्रमुख फ़िल्मकारों द्वारा फिल्म प्रभाग और भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफ़एआइ) समेत कई फिल्म संस्थाओं का विलय/बंद किये जाने के सरकार के प्रयास के विरोध में जारी किये गए पत्र और हस्ताक्षर अभियान को पूरे देश में व्यापक समर्थन मिला है। पत्र के जारी होने के 24 घंटे में 900 से अधिक फिल्म निर्माताओं, शोधकर्ताओं, अध्यापकों, थिएटर से जुड़े लोगों, छात्रों, वकीलों, पूर्व सरकारी अधिकारियों आदि ने समर्थन दिया है।

फ़िल्मकारों ने मांग की है कि बिमल जुल्का के नेतृत्व में बनी उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट अविलंब सार्वजनिक किया जाय, सार्वजनिक धन से चलनेवाली संस्थाओं जैसे फिल्म प्रभाग, भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफ़एआई) और चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएफ़एसआई) का राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफ़डीसी) जैसे किसी निगम में विलय न किया जाय और इन्हें राष्ट्रीय विरासत घोषित किया जाय।

फ़िल्मकारों द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि जिस बिमल जुल्का सामिति की रिपोर्ट के आधार पर यह पुनरसंरचना की जा रही है उसे सर्वसुलभ होना चाहिए। इस पत्र में कहा गया है कि जनवरी 2021 में सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्रार्थनापत्र दिया जाने के बावजूद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है।

फिल्म निर्माताओं ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा मुलाकात करके कोई विचार-विमर्श न किए जाने पर असंतोष व्यक्त किया है। इस सवाल में आए दो संस्थानो में, विशेषतः फिल्म प्रभाग और एनएफ़एआई के अभिलेखागार भी शामिल हैं जिन में भारत की महानतम फ़िक्शन फिल्में और आज़ादी के पहले और बाद की अवधि की समाचार फिल्में और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों की जीवन गाथाओं पर आधारित दस्तावेजी फिल्में बनायी और संग्रहीत की जाती हैं। फिल्म निर्माताओं का कहना है कि इन अभिलेखागारों को बंद करना भारतीय फिल्म-इतिहास और धरोहर पर तुषारापात के समान होगा। इस समूह ने सरकार से यह भी मांग की है कि वह निकट भविष्य में इन संस्थानों के निजीकरण/ बिक्री को लेकर मीडिया में चल रही अटकलों पर शीघ्र ही स्पष्टीकरण देकर इनकी स्वायत्तता, सरकारी वित्तीय सहायता बढ़ाने और राष्ट्रीय फिल्मी विरासत के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दुहराये।

फ़िल्मकारों ने बिमल जुल्का के नेतृत्व में बनी उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट अविलंब सार्वजनिक करने, सार्वजनिक धन से चलनेवाली संस्थाओं जैसे फिल्म प्रभाग, भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफ़एआई) और चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएफ़एसआई) का राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफ़डीसी) जैसे किसी निगम में विलय न करने, विभिन्न हितग्राहियों की, पूर्ण स्वायत्तता, राज्य द्वारा उपलब्ध कराये गए और अधिक धन और उनके मूल नियमों/ आदेशों के अंतर्गत, फिल्म निर्माताओं और उनके कर्मचारियों समेत इन संस्थाओं से पारदर्शिता के साथ आमने-सामने की खुली बातचीत के माध्यम से विचार-विमर्श करने, सरकार सार्वजनिक धन से वित्त-पोषित और सार्वजनिक स्वामित्ववाले फिल्म प्रभाग, भारतीय राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार (एनएफ़एआई) और चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएफ़एसआई) के अभिलेखागारों को राष्ट्रीय विरासत घोषित करते हुए अभिलेखों के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध व्यक्त करते हुए मांग की है कि सरकार संसद में लिखित आश्वासन दे कि उन्हें अभी या भविष्य में कभी भी न तो बेचा जाएगा और न नीलाम किया जाएगा।

पत्र में इन सार्वजनिक संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारियों के मुद्दों और चिंताओं का अविलंब समाधान किये जाने की भी मांग की गई है।

पत्र पर हस्ताक्षर करनेवालों में बिना पॉल, नसीरुद्दीन शाह, निष्ठा जैन, बतुल मुख्तियार, सुरभि शर्मा, जबीन मर्चेन्ट, गीतांजली राव, नन्दिता दस, रमानी आर वी, अनुपमा श्रीनिवासन, रामचंद्रन पी एन, आनंद पटवर्धन, वरुण ग्रोवर, पुष्पेंद्र सिंह, सनल कुमार शशिधरन, पायल कपाड़िया, अनामिका हक्सर, समीरा जैन, सुबाश्री कृष्णन, क्रिस्टोफर रेगो, वाणी सुब्रमण्यन, रफीक इलियास, सुरेश राजमणि, सौरव सारंगी, मैथिली राव, हेमंती सरकार, अर्जुन गौरीसरिया, करन बाली, प्रिय सेन, नन्दन सक्सेना, गार्गी सेन, हाओबम पबन कुमार, अंजलि मोण्टेरियो, के पी जयसंकर, सुनन्दा भट, संजय काक, शिल्पी गुलाटी, प्रतीक वत्स, प्रिया थुवासरी, अमृत गांगर के नाम उल्लेखनीय है।

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