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अन्याय का सामना करने का औजार है सिनेमा : मैक्सिन विलियम्सन

अडानी और आस्ट्रेलिया सरकार के खिलाफ जंग जारी रहेगी : फिल्मोत्सव में आस्टे्रलियन फिल्मकार ने कहा

11वें त्रिदिवसीय पटना फिल्मोत्सव का आगाज

पटना. ‘‘कलाकार की यह जिम्मेदारी है कि जिस दुनिया में वे रहते हैं उसे समझें, तहकीकात करे, चिंगारी जलाए, सवाल खड़े करंे.। वास्तव में हम कठिन समय में जी रहे हैं। हम पक्षपाती कानूनी व्यवहारों, झूठी पत्रकारिता, दमन, बेदखली, जब्ती, शरणार्थी संकट, देश निकाले, आक्रमण, बिना जुर्म की कैदों, राजनीतिक बंदियों, क्रूरता, उत्पीड़न और जबरन कन्फेशन, सैनिक आक्रमणों, घुसपैठों, निर्वासन, जन संहार, दुर्बलों, वृद्धों, कमजोरों, निर्धनों से दुर्व्यवहार, संपत्ति और साझा संसाधनों में असमानता की दुनिया में रह रहे हैं। ये इंसानों की बनाई हुई समस्याएँ हैं। नीतिसंगत, नैतिक और समावेशी मूल्यों की संरचना की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अन्याय का सामना करें और उनसे लड़ें उन औजारों के साथ जो हमारे पास हैं या हम उन्हें निर्मित करें। सिनेमा एक ऐसा ही औजार है।’’

पहली बार बिहार और पटना आईं विश्व सिनेमा की एक चर्चित हस्ती आस्ट्रेलिया की एक्टिविस्ट फिल्मकार मैक्सिन विलियम्सन ने मुख्य अतिथि के बतौर 11वें त्रिदिवसीय पटना फिल्मोत्सव का उद्घाटन करते हुए ये विचार व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि प्रतिरोध का मतलब है किसी चीज को मानने या उसका पालन करने से इनकार। प्रतिरोध का सिनेमा, पटना फिल्म फेस्टिवल सिनेमा की शक्तिशाली इसकी प्रासंगिकता स्वीकार करता है और सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का उद्देश्य रखता है। आम जनता के सशक्तिकरण को सामने लाने और हाशिए के लोगों की तरफ से आवाज उठाने जिससे कि उन्हें भी सुना जा सके, के लिए मशाल उठाए हुए है। मैं इस भावना के लिए इस फेस्टिवल की प्रशंसा करती हूँ।

फिल्म फेस्टिवल नागरिकों को शिक्षित और जागरूक बनाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। बिहार राज्य और इसके लोगों में तरक्कीपसंद नजरिए को आत्मसात करने की जरूरत के सन्दर्भ में पटना फिल्म फेस्टिवल खास तौर पर अमूल्य है। फेस्टिवल समुदायों को जोड़ते हैं, वार्तालाप और विमर्श के लिए एक रास्ता देते हैं। आज जब हमारी दुनिया में खुली हुई नागरिक जगहें तंग होती जा रही हैं, ये बात करने की सुरक्षित जगह हैं। इनमें दिखाई जाने वाली फिल्में लोगों के विचारों या नजरिए को एक समानुभूति के रास्ते पर ले जा सकती हैं।

उन्होंने बताया कि वे तुर्की के इस्तांबुल से आ रही हैं, जहां अपराध और दंड विषय पर आयोजित फिल्म फेस्टिवल की जूरी की वे सदस्य थीं। उन्होंने कहा कि हाशिये के लोगों के पक्ष में सिनेमा उनकी राजनीतिक पसंद है। वे चाहती हैं कि हाशिये के लोगों की आवाजें सुनी जाएं। उन्होने बताया कि 10 सालों तक एशिया पेसिफिक स्क्रीन अवार्ड्स की डायरेक्टर के तौर पर काम करते हुए उन्हें इस बात को सुनिश्चित करने का खयाल था कि सारे पंथों, संस्कृतियों और नस्लों का प्रतिनिधित्व हो सके और उन्हें सुना जा सके। आर्ट प्रैक्टिसनर के रूप में यह हमारा फर्ज है कि जो दुनिया में हमारे आस-पास घटित हो रहा है हम उसके बारे में सजग रहें. उन्होंने बताया कि पहली बार ऑस्ट्रेलियन दर्शकों के लिए उन्होंने इरान, तुर्की, इराकी खुर्दिस्तान और सीरिया के सिनेमा के कार्यक्रम को आयोजित किया. उन्हें इराकी कुर्द यजीदी की बदहाली, आर्मीनियन कहानी, रूस और चीन के याकूत लोगों के सिनेमा साथ साथ पूर्वी तुर्किस्तान के मुस्लिम लोगों- उत्पीड़ित ऊग्य्घूर जनता, और तिब्बती और फिलिस्तीनी बदहाली के बारे में पता चला। छोटी कहानी या हाशिए के लोगों के लिए लड़ना उनके स्वभाव में है. एक औरत के तौर पर, उन्हें हाशिए पर रखा गया है। यह लेंस जिसका इस्तेमाल वे अपने चयन और निर्णयों में करती हैं, उस अनुचित शक्ति-संतुलन, जिसे हम सिनेमा के रूप में देख रहे हैं, के खिलाफ प्रतिरोध का एक प्रकार है।

मैक्सिन विल्यिम्सन ने नवउदारवादी व्यवस्था की बुराइयों के बारे में विस्तार से अपनी बात रखी और आदिवासियों, मूलनिवासियों, शरणार्थियों, स्त्रियों, पर्यावरण, लोकतंत्र, स्वतंत्र प्रेस के प्रति ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों की सत्ता के विनाशकारी रवैये की चर्चा की। उन्होंने पत्रकार जूलियन असान्जे और ग्रेटा थनबर्ग को अन्यायपूर्ण समय का योद्धा करार दिया और जाने-माने विचारक नोम चोम्स्की को उधृत करते हुए कहा कि “जूलियन असान्जे की एक ग्रैंड जूरी सुनवाई नहीं करनी चाहिए, उनको पदक देना चाहिए, वे प्रजातन्त्र में योगदान कर रहे हैं.” मेरा खयाल है, जुलियन असान्जे हम सब के लिए एक प्रकाश स्तम्भ की तरह हैं, हमें प्रजातंत्र के लिए मुखबिरों की जरूरत है। फिर भी वे एक सेल में सड़ रहे हैं अपनी कमजोर सेहत के साथ जबकि उनके स्वास्थ्य के बारे में चिंतित 60 यू के के डॉक्टरों ने आवेदन पर दस्तखत किया है जबकि ऑस्ट्रेलिया अपने नागरिकों, जिनके लिए उसकी जिम्मेदारी है, धीरे धीरे मरते हुए देख रहा है। यह अमेरिका द्वारा संचालित और ऑस्ट्रेलिया द्वारा समर्थित राजनीतिक बदले की एक असाधारण घटना है।

उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में दक्षिणपंथी मीडिया ने पर्यावरण आतंकवादियों के रूप में प्रचारित किया गया। वहां नए कानून के अनुसार सेना को विरोध प्रदर्शनों को तोड़ने के काम में लगाया जा सकता है। कोयला ऑस्ट्रेलिया में एक बड़ा लड़ाई का मुद्दा है जो निहित स्वार्थ वाले कुछ लोगों के द्वारा नियंत्रित है और सारे रास्ते वापस सरकार, मीडिया मैगनेट और उनके पास जाते हैं जिनका ऑस्ट्रेलिया के कोयला उद्योग में बहुत बड़ा हिस्सा है. यही कुछ लोग जलवायु परिवर्तन को नकारने वाले अभियानों को करोड़ों रूपए दे रहे हैं और पानी की आपूर्ति को खरीद रहे हैं। हमने अपनी व्यवस्थाओं में विश्वास खो दिया है और निरंकुश सरकार हमारी आवाजों को नहीं सुन रही है।

भारत में मोदी सरकार के प्रिय उद्योगपति अडानी का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ग्रेट बैरियर रीफ उसी क्वींसलैंड राज्य में है जहाँ से वे हैं।. वह दुनिया के सात आश्चर्यों में एक और विश्व धरोहर के रूप में सूचीबद्ध है, और सामुद्रिक तापमान वृद्धि (ओशन वार्मिंग) के कारण कोरल ब्लीचिंग से पहले से ही बुरी तरह से प्रभावित है. राज्य सरकार ने वैज्ञानिको और पर्यावरणविदों को नजर अंदाज करते हुए गुप्त रूप से जल्दी-जल्दी में पर्यावरणीय और आर्थिक अनुमोदन प्राप्त कर लिया और अडानी माइंस परियोजना को हरी झंडी दिखला दी. खुदाई शुरू करने का अनुमोदन जून में दिया गया. सरकार और अदानी के बीच रॉयल्टी समझौते को गुप्त रूप से कर लिया गया। अदानी ने पहले ही ऑस्ट्रेलिया में बिना अनुमोदन भूतल जल की बोरिंग करके कार्य का उल्लंघन किया है। अदानी 2017 की साइक्लोन डेबी के दौरान अपने एबट पॉइंट कोल टर्मिनल पर 800ः की सीमा से आगे चला गया जिससे कि बैरियर रीफ विश्व धरोहर क्षेत्र और राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण वेटलैंड में अत्यधिक प्रदूषित, कोयला मिश्रित पानी का उत्सर्जन हुआ.
उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई अडानी और आस्ट्रेलिया सरकार के खिलाफ है, क्योंकि जब विश्व जलवायु परिवर्तन से निपट रहा है, कोयला की खदानों को अनुदानित कर देना बहुत ही बुरा है, जिससे ग्रेट आर्टिजियन बेसिन (भूजल टेबल) को खतरे में डालना, ग्रेट बैरियर रीफ को खतरे में डालना बहुत ही बुरा है।

उन्होंने बताया कि हेड साइंस ब्यूरो की चिंता को नजरअंदाज किया गया। अगस्त में क्वींसलैंड सरकार अडानी कोयला खदान के लिए रास्ता बनाने की खातिर मूल निवासी भूमि पर आदिवासी अधिकार को समाप्त कर दिया. उन्होंने इस निर्णय के बिना किसी जन ऐलान के 14 हेक्टेअर के वंगन और जगालिनगो के गाँवों को क्वींसलैंड के गलीली बेसिन में प्रस्तावित अदानी कोयला खदान के लिए मिटा दिया। यह सब उनके लिए बहुत हृदय विदारक है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अडानी के खिलाफ वे अपनी लड़ाई जारी रखेंगी.

मैक्सिन ने मानवीय हित, प्रजातंत्र और समानता के लिए दी गई कुर्बानियों को याद किया। उन्होंने कहा कि आज हमें अवश्य उन सरकारों का प्रतिरोध करना होगा जिनकी ख्वाहिश हमें चुप कर देने की है। उन्होंने कहा कि हमें आवश्यक रूप से संपत्ति और शक्ति की असमानता के विरुद्ध प्रतिरोध करना चाहिए। इस उत्तर-औपनिवेशिक विश्व में संस्कृति 21वीं सदी के महानतम संघर्षों में एक है। आज मैं इतना ही कह सकती हूँ कि शक्ति जनता में निहित है और एक समरूप समान प्रकार और विकसित समाज के लिए प्रतिरोध अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह जरूरी है कि 21 वीं सदी के सबसे प्यारे कला रूप (आर्ट फॉर्म) सिनेमा के माध्यम से भी हम प्रभाव डालें, एकजुट हों, ज्ञान को बढ़ाएँ और परिवर्तन लाएँ। उन्होंने बुद्ध और भारत की अहिंसा, दया, प्रेम और करुणा की परंपराओं की जरूरत पर भी जोर दिया।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए संजय कुमार कुंदन ने कहा कि प्रतिरोध का सिनेमा अन्याय और शोषण की सत्ता को बदलने के उद्देश्य से संचालित है। इसके पहले जसम के राज्य सचिव सुधीर सुमन ने कहा कि इस बार का फिल्मोत्सव एकाधिकारीवादी हिंसक उन्माद की संस्कृति के खिलाफ जनता के जीवन की विविधताओं और उसके लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में है। संचालन फिल्मोत्सव की संयोजिका प्रीति प्रभा ने किया।

इसी दौरान मैक्सिन विलियम्सन, बलाका घोष, अभिनेत्री नूतन सिन्हा, संजय कुमार कुंदन और सुधीर सुमन ने फिल्मोत्सव की स्मारिका का लोकार्पण किया जिसमें मैक्सिन विलियम्सन का पूरा वक्तव्य प्रकाशित है।

फिल्मोत्सव का पर्दा सामाजिक विषयों पर बनी तुर्की की लघु फिल्मों के साथ उठा

शरणार्थी महिलाओं, बाल मजदूरी और भेदभाव पर आधारित तुर्की के युवा फिल्मकारों द्वारा बनाई गई पांच मिनट की अवधि की फिल्मों के संकलन के साथ फिल्मोत्सव का पर्दा उठा। ये फिल्में वहां के शार्ट फिल्म लाॅन्ग इम्पैक्ट कम्पटीशन की विजेता फिल्में थीं, जिनका कोेलाज मैक्सिन विलियम्सन ने तैयार किया था। इस प्रदर्शन के बाद कथाकार संतोष दीक्षित ने मैक्सिन विलियम्सन को फिल्मोत्सव का प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया। इन फिल्मों का परिचय फिल्मकार बलाका घोष ने दिया।

फिल्मों के प्रदर्शन के बाद दर्शकों से संवाद के दौरान मैक्सिन विलियम्सन ने कहा कि हमें कला की ताकत पर भरोसा करना होगा, इसके जरिए सांस्कृतिक बदलाव संभव है। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन का उदाहरण देते हुए पर्यावरण की रक्षा के लिए उपभोक्तावादी इच्छाओं पर नियंत्रण का भी सुझाव दिया।

दिल्ली के मनुष्य लंगूर पर बनी प्रतीक वत्स की फिल्म ‘इब अलय ऊ’ दिखाई गई

कुछ साल पहले जब प्रतीक वत्स के मोहल्ले में बंदरों का आतंक शुरू हुआ तो लोक अधिकारियों के साथ मिलकर निवासी कल्याण संस्था ने पालतू लंगूरों की मदद से उन्हें भगाया। फिर जब भारत के पशु कल्याण मंडलने वन्य-जीवन कल्याण एक्ट के तहत लंगूरों के इस प्रयोग को अवैध करार दिया तो एक नयी योजना बनायीं गयी। लंगूरों की आवाज निकालने वाले आदमी को काम दिया गया। हमने इस विचित्रता का उपहास किया.ताना दिया कि इंसान डार्विन के जीव विकास सिद्धांत के विपरीत बन्दर बनने की राह पर अग्रसर है। लेकिन प्रतीक वत्स ने इसमें अपनी फिल्म के लिए कहानी ढूंढ ली। भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे, के प्रतीक वत्स की पहली फिल्म एक प्रवासी अंजनि की कहानी है जिसे राजधानी में एक सरकारी नौकरी मिली है  लंगूरों की आवाज निकालने की. यहफिल्म मजेदार है लेकिन व्याकुल भी करती है. इस पर फिल्मकार ने बहुत शोध भी किया है. लेकिन इस फिल्म की असल कथा हमारी सामाजिक और इंसानी परिस्थितियों की है.

इस फिल्म का प्रिमीयर मुंबई फिल्मोत्सव के इंडिया गोल्ड सेक्शन में हुआ. यह इनकी डाक्यूमेंट्री ‘अ वेरी ओल्ड मैन विथ विंग्स’ की उत्तराधिकारी है जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2018 में जूरी पुरस्कार मिला. वत्स के अनुसार, बन्दर भगाने वाले की नौकरी के आस-पास ही यह पूरी हास्यास्पद परिस्थिति स्थित है, लेकिनमामला न इतना सादा है न मजेदार. “सतह पर यह एक व्यंग्य भले हो, मैं आशा करता हूँ कि यह फिल्म आतंरिक जटिलताओं को उभार सके।”

यह फिल्म ज्यादातर प्रतीक के अपने ही दोस्तों और सहपाठियों के सहयोग से बनी है। इसका विश्व प्रीमियर पिंग्याओ क्राउचिंग टाइगर हिडन ड्रैगन अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में हुआ. पिछले साल फिल्म बाजार में वर्क इन प्रोग्रेस लैब की तरफ से इसे फेसबुक अवार्ड भी मिला।

वत्स नार्थ कैंपस और सिविल लाइन्स इलाके में बड़े हुए हैं और इस स्थिति का उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है. उन्होंने बन्दर भगाने वाले महिंदर(इस फिल्म में अपना किरदार खुद निभा रहे) की कहानी पढ़ी. वह सुनहरी बाग में काम करते थें. अपने लेखक, कला निर्देशक और सहयोगी निर्देशक, शुभम के साथ वत्स उनसे मिले. धीरे-धीरे फिल्म को आकार मिलने लगा. “मैंइसे डाक्यूमेंट्रीया मोक्युमेंट्रीकी शक्ल देना चाहता था. लेकिनफिल्म बनाने की प्रक्रिया में हमने सोचा कि अब्सर्ड फिक्शन कीशक्ल में यथार्थ बुना जाए, क्योंकि तब यह फिल्म अपना काम कर पाएगी“, वत्स बताते हैं.

महिंदर के साथ वक्त बिताना और घूमना तथा बंदरों की रोजमर्रा पर ध्यान देना कि वह कैसे अपना काम करते हैं, प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं और एक दूसरे से बात करते हैं, इन सब को इस फिल्ममें मौलिक रूप से दर्शाया गया है. “इंतजार बहुत करना पड़ा, यह मछली पकड़ने जैसा है… हम बन्दर की दृष्टि दिखाना चाहते थे, वाइड शॉट का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे. हम इसे इस तरीके से लेंस में कैद करना चाहते थे.”

‘ इब अलय ऊ’ बगैर किसी पूर्वग्रह के कई विषयों पर गौर करती है. यह कभी संदेशात्मक या नेक होने की कोशिश नहीं करती. बंदरों को उत्पात हमारी अपनी गलती है (हनुमान का अवतार मान उनकी पूजा करना और उन्हें खिलाना) और इसे सुलझाना भी हमारा ही कर्तव्य है.हास्यात्मकता, भावनात्मकता और नाटकीयता अंत तक इस फिल्म का हिस्सा है. राजपथ, निर्माण उद्योग और विज्ञान भवन पर बंदरों के धावे में वत्स की मुखरता सामने आती है. राजनीति, राष्ट्रवाद, अच्छे दिनों की आशा, धार्मिकता, भगवानों के बाधक बनने की बातों के बीच एक पूर्वग्रह-रहित, जीवित कथा कही जा रही है.

वत्स इससे श्रमिक वर्ग की कहानी कहना चाहते हैं। उनकी दिल्ली फिल्मों को पंजाबी दिल्ली या पुरानी दिल्ली से भिन्न है। इब अलय ऊप्रत्यक्ष और अदृश्य वर्ग विभाजन और इंसानों पर इसके प्रभाव की कहानी है. यह मनुष्य की निराशाऔर अपमान की कथा है. कैसे एक आदमी से उसकी गरिमा छिन जाती है, और वह किस प्रकार अपनी रचनात्मकता और प्रयोगात्मकतासे ऊपर उठता ही है कि फिर नीचे खींच लिया जाता है. अंततः, बंदरों के खिलाफ इंसानों की यह लड़ाई, इंसानों की खुद के खिलाफ जंग बन जाती है. शायद इतने वक्त से इंसान ही कैद है और बन्दर बन जाना इंसान बनने से कहीं ज्यादा आजादी का अनुभव देता है।

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