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‘ चितरंजन सिंह का निधन लोकतांत्रिक आंदोलनों के लिए अपूरणीय क्षति ’

लखनऊ.  भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने जाने-माने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता चितरंजन सिंह के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है। लंबी बीमारी के बाद लगभग 67 वर्ष की उम्र में उनका निधन शुक्रवार को हो गया। उनकी अन्त्येष्टि शनिवार को सुबह बलिया में उनके पैतृक गांव सुल्तानपुर (मनियर) में होगी।

भाकपा (माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने बताया कि मधुमेह से गंभीर रूप से पीड़ित होने पर उन्हें बीएचयू के अस्पताल में लाया गया था। उनके दोनों गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया था। वहां से वापस उनको घर ले जाया गया और आज उनका निधन हो गया।

श्री यादव ने कहा कि चितरंजन सिंह छात्र जीवन से ही भाकपा (माले) के सदस्य थे और आजीवन सदस्य बने रहे। वे मुश्किल समयों में भी पार्टी के साथ अडिग रूप से खड़े रहे। आइपीएफ (इंडियन पीपुल्स फ्रंट) में सक्रिय रहे और बाद को वे पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) में राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी के रूप में सक्रिय रहे। वे मानवाधिकारों के लिए लड़ने वालों की अगली कतार में हमेशा खड़े रहे।

राज्य सचिव ने कहा कि पार्टी ने आज अपना एक सच्चा साथी खो दिया है। यह और भी दुखद है कि जीवन पर्यंत लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाला अग्रिम पंक्ति का योद्धा आपातकाल दिवस पर ही हम लोगों को छोड़कर चला गया। मौजूदा दौर में ऐसे साथी का जाना लोकतांत्रिक आंदोलनों के लिए अपूरणीय क्षति है.

उन्होंने कहा कि माले की राज्य कमेटी पार्टी के प्रति आजीवन निष्ठावान बने रहे अपने साथी के प्रति अपनी शोक श्रद्धांजलि अर्पित करती है। बलिया में कामरेड चितरंजन सिंह की अन्त्येष्टि से पहले उनके पार्थिव शरीर पर पार्टी का झंडा दिया जाएगा।

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