समकालीन जनमत
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पिंजरे में बंद चीनी पूंजीवाद

चीन के किसी भी सावधान पर्यवेक्षक से यह तथ्य छूट नहीं सकता कि वह इस समय आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है । साथ ही यह भी नजर आ रहा है कि इस मोर्चे पर उसकी प्रतियोगिता संयुक्त राज्य अमेरिका से है । उनके बीच की यह होड़ धीरे धीरे वैश्विक स्तर की कूटनीतिक पहल के क्षेत्र में भी व्याप्त हो चली है । माना यह जा रहा है कि एक नये शीतयुद्ध की शुरुआत हो चुकी है जिसके एक ध्रुव पर अमेरिका के नेतृत्व में कुछ यूरोपीय देश हैं तो दूसरे ध्रुव पर चीन के साथ रूस खड़ा है । यूक्रेन युद्ध के लम्बा खिंचने की वजह भी यही है कि सैन्य कूटनीतिक धरातल पर दोनों ध्रुवों में समतुल्यता जैसा माहौल है । इजरायल के द्वारा फिलिस्तीन के विरुद्ध छेड़े गये हालिया युद्ध के समय भी चीन की यह हैसियत नजर आयी जब उसने अरब देशों को गोलबंद किया । चीन की यह समूची हैसियत उसकी बढ़ती आर्थिक ताकत का प्रतिबिम्ब है । उसकी इस आर्थिक ताकत को ठीक से समझने के लिए बहुतेरे बौद्धिक प्रयास हो रहे हैं । इसी क्रम में पश्चिमी देशों के तमाम बौद्धिक चीन की आर्थिकी को परिभाषित करने के मकसद से नयी नयी कोटियों को आजमा रहे हैं । यह गुत्थी सुलझ नहीं रही है कि उदारीकरण और वैश्वीकरण का विरोध करने की जगह चीन ने उसका लाभ कैसे उठाया । इसके लिए हम हाल में प्रकाशित एक किताब का जायजा लेंगे । इस किताब में चीन के पूंजीवाद को विशेष बताने के लिए ही नयी शब्दावली का इस्तेमाल किया गया है । लेखिका को असल में इस विरोधाभास को रेखांकित करना है कि चीन में समाजवादी शासन के मातहत और उसके निर्देशानुसार पूंजीवाद का विकास हो रहा है । याद रखें कि इस तरह की सैकड़ों किताबें लिखी जा रही हैं जिनमें दुनिया भर में उसकी आर्थिक उपस्थिति के विश्लेषण के साथ उसकी घरेलू आर्थिक व्यवस्था को भी गहराई से देखा जा रहा है ।

इस मामले में सभी लोग विगत कई सालों से चीनी फोन की कथा सुनते आ रहे हैं । इलेक्ट्रानिक की दुनिया में चीन के सामानों ने सारी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है । इस क्षेत्र में उसकी मजबूती का विश्लेषण करते हुए 2023 में प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी प्रेस से या-वेन लेइ की किताब ‘द गिल्डेड केज: टेकनोलाजी, डेवलपमेंट, ऐंड स्टेट कैपिटलिज्म इन चाइना’ का प्रकाशन हुआ। लेखिका को उत्सुकता थी कि तमाम सामाजिक समस्याओं के बावजूद चीन की कुछ प्रांतीय सरकारें मनुष्यों को हटाकर रोबो को काम में क्यों लगा रही हैं । उन्हें लगा कि यह तो किसी व्यापक परिघटना का अंश भर है। असल में चीन तकनीक आधारित विकास के नये चरण में प्रवेश करना चाहता है । किताब की शुरुआत क्लिंटन की 1998 की चीन यात्रा से होती है। इसके दो साल बाद चीन और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता हुआ और चीन विश्व व्यापार संगठन में भी शरीक हुआ। क्लिंटन का इरादा चीन में अमेरिकी मजदूरों द्वारा उत्पादित सामानों की बिक्री करने के लिए अमेरिकी कंपनियों को प्रोत्साहित करने का था। निर्माण का काम ही चीन में विस्थापित करने की जगह यह तरीका उन्हें सही लगा था। उम्मीद यह भी थी कि आर्थिक उदारीकरण के साथ ही राजनीतिक उदारीकरण भी अवश्य होगा । अमेरिका में इस यात्रा की भरपूर आलोचना हुई क्योंकि 1989 में घटित तिएन आन मेन के बाद कोई भी राष्ट्रपति चीन नहीं गया था । क्लिंटन को चीन की आर्थिक हैसियत का अनुमान था और वे इस मोर्चे पर सहकार आगे ले जाना चाहते थे । बातचीत में विज्ञान और तकनीक का सवाल प्रमुखता से उठा । टिकाऊ आर्थिक विकास के लिए इस क्षेत्र में आपसी सहयोग की जरूरत महसूस हुई । तकनीक के हस्तांतरण और उससे जुड़े राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल भी उठे । चीन में इंटरनेट के विस्तार से क्लिंटन खासा उत्साहित नजर आये । इसी समय अमेरिका में भी इस क्षेत्र में उछाल आया हुआ था । चीन की स्थानीय सरकारों द्वारा शिक्षा की पहुंच विस्तारित करने में आ रही दिक्कतों के मामले पर बात करते हुए क्लिंटन ने इस क्षेत्र में तकनीकी क्रांति की उपयोगिता पर रोशनी डाली । उनका कहना था कि इस मामले में चीन को एक ही साथ औद्योगिक और उत्तर औद्योगिक, दोनों कार्यभार पूरे करने होंगे । यूरोपीय देशों और अमेरिका ने पहले औद्योगिक क्रांति की उसके बाद उत्तर औद्योगिक ढांचे में प्रवेश किया । चीन को ये दोनों काम साथ साथ करने थे । इसके लिए चीन को अन्य देशों के मुकाबले अधिक तेजी से बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा प्रदान करनी थी ।

उत्तर औद्योगिक समाज की बात सबसे पहले 1973 में डैनिएल बेल ने की थी। उन्हें अपने विचारों के प्रसार पर स्वाभाविक रूप से संतोष हुआ । डैनिएल बेल ने इस समाज का लक्षण बताया- वस्तु उत्पादन के मुकाबले सेवा क्षेत्र की अधिकता, पेशेवर और तकनीकी से जुड़े खास वर्ग का उदय, नवाचार, आर्थिक वृद्धि और नीति निर्माण में विज्ञान और तकनीक की विशेष भूमिका, सरकार द्वारा तकनीकी प्रगति की योजना और उस पर नियंत्रण तथा फैसले लेने की प्रक्रिया में बौद्धिक तकनीक की निर्णायक सहायता। अर्थतंत्र, समाज और विज्ञान-तकनीकी के बीच घनिष्ठ जुड़ाव पर उनके जोर ने सूचना, ज्ञान और नेटवर्क आधारित समाज के बारे में सोच विचार को बहुत गहराई से प्रभावित किया था। उनका कहना था कि इक्कीसवीं सदी की विशेषता उत्तर औद्योगिक समाज होंगे । उन्होंने यह नहीं माना कि यह समाज औद्योगिक समाज का स्थान पूरी तरह ले लेगा। आखिर औद्योगिक समाज भी तो कृषिक समाजों को पूरी तरह समाप्त नहीं ही कर सका था । ऐसे सभी बदलाव पूर्ववर्ती समाज को बस पुनर्गठित ही करते हैं। उत्तर औद्योगिक समाज को बहुतेरे लोग केवल सेवा क्षेत्र की प्रभुता तक सीमित समझते हैं लेकिन डैनिएल बेल ने इसे विज्ञान, तकनीक और अर्थतंत्र की ऐसी आपसदारी कहा था जिसमें तकनीक की क्षमता प्रकृति और मनुष्य से भी अधिक हो जाती है। तकनीक को ऐसे समाज में बौद्धिकता हासिल होगी । इसकी वजह से फैसला लेने वाले तदर्थ प्रयोगों की जगह सुदूर भविष्य का आकलन करके योजना बना सकेंगे । सूचना व्यवस्था के साथ मिलकर बौद्धिक तकनीक एक नये अर्थतंत्र का निर्माण करेगी । लेखिका को उत्तर औद्योगिक समाज के बारे में बेल के ये अनुमान वर्तमान चीन को समझने के लिए बेहद उपयोगी प्रतीत होते हैं ।

क्लिंटन ने चीन में जिस तरह एक ही साथ औद्योगिक और उत्तर औद्योगिक क्रांति संपन्न होने का अंदाजा लगाया था उसे फलीभूत होते सभी देख रहे हैं । विकास के अध्येता मानते हैं कि जिन देशों में भी विकास देर से शुरू होता है वे पहले से विकसित देशों के मुकाबले तेजी से आर्थिक वृद्धि हासिल करते हैं क्योंकि इन पूर्व विकसित देशों का अनुभव और ज्ञान उनके लिए सुलभ रहता है । विकास का समय भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि समय के साथ भूराजनीतिक, सांस्थानिक, तकनीकी और वैचारिक संदर्भ भी बदल जाते हैं । सूचना और संचार तकनीक के आगमन के साथ चीन के विकास का यह दौर शुरू हुआ और नवउदारवादी वैश्वीकरण ने उसे त्वरित कर दिया । इस विकास में उसके आसपास के कुछ अन्य देशों की तरह चीन में भी राज्य ने निर्णायक भूमिका निभायी । चीन को अपनी इस प्रगति में विकसित देशों से भारी मदद मिली । वैश्वीकरण के साथ सीमाओं के आरपार पूंजी, तकनीक, वस्तु और सेवाओं की अबाध आवाजाही शुरू हुई जिसने चीन के ग्रामीण देशी उद्योगीकरण का चेहरा 1990 के दशक में बदल दिया । 1989 की राजनीतिक उथल पुथल के बावजूद चीन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में बढ़ोत्तरी आयी जब देंग ने आर्थिक सुधारों को आगे भी जारी रखने का वादा किया । इससे श्रम सघन निर्यातोन्मुखी निर्माण में तेजी आयी और चीन को दुनिया का कारखाना कहा जाने लगा । इसके बाद चीन विश्व व्यापार संगठन में शरीक हुआ और 2012 तक निर्माण क्षेत्र में रोजगार सृजन की जबर्दस्त उछाल का भी गवाह रहा ।

इसी दौरान चीन में सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े क्षेत्रों का विकास हुआ। इस क्षेत्र की तमाम कंपनियों की स्थापना चीनी वैज्ञानिकों ने की। 1998 में इससे जुड़े प्रयोगों के लिए खास इलाके का आवंटन हुआ। उस इलाके में नवाचार की धूम मच गयी और बहुतेरी कंपनियों के मुख्यालय वहीं खुले । ढेर सारी इंटरनेट कंपनियों की स्थापना भी उसी समय हुई । 2008 में जब वित्तीय संकट आया तो उसके बाद नये युग का आरम्भ हुआ। उसके बाद चीन की सरकार ने श्रम सघन निर्यातोन्मुखी निर्माण का भरोसा छोड़ा और विज्ञान-तकनीकोन्मुखी समाजार्थिक विकास की राह चुनी जिसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के साथ ही घरेलू उपभोग की भारी भूमिका होनी थी ।
इस प्रयास की बदौलत चीनी राज्य ने सफलता के साथ इंटरनेट क्षेत्र को चीनी अर्थतंत्र की आधारभित्ति के रूप में खड़ा किया । 2008 के बाद से चीनी इंटरनेट कंपनियों में दुनिया भर से धन का निवेश होना शुरू हुआ। फिलहाल दुनिया की दस सबसे बड़ी इंटरनेट कंपनियों में से पांच चीन की हैं और शेष पांच अमेरिका की हैं । चीन का डिजिटल अर्थतंत्र उसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग चालीस फ़ीसद है । इस समय अमेरिका और चीन ही दुनिया के डिजिटल पूंजीवाद की सबसे बड़ी ताकतें हैं। चीन के भीतर के समाजविज्ञानी भी चीन के तकनीक आधारित विकास को बड़ा सामाजिक बदलाव मानने लगे हैं। इस क्षेत्र में नवागंतुक होने और अलोकतांत्रिक शासन होने के बावजूद चीन के इस प्रयोग को बेहद गम्भीरता के साथ देखा परखा जा रहा है। लेखिका ने इसी विकास को समझने का प्रयास इस किताब में किया है। स्लावोज ज़िज़ैक ने चीन को पूंजीवाद का भविष्य तक कह डाला है और माना है कि चीन ने पूंजीवाद के प्रबंधन के मामले में खुद को पश्चिमी देशों के मुकाबले अधिक सक्षम साबित किया है ।

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