समकालीन जनमत
ग्राउन्ड रिपोर्ट

‘ यहीं पैदा हुए, जवान हुए, आज सब तहस-नहस कर दिया, अब कहां जाएं ’


( मेट्रो स्टेशन बनाने के के लिए पटना के मलाही पकड़ी में शहरी गरीबों को बर्बरता पूर्वक उजाड़े जाने और इसके खिलाफ शुरू हुए आंदोलन की ग्राउण्ड रिपोर्ट )


सुबह के 9 बजे होंगे, धूप अभी से बेहद कड़ी थी. उसी धूप में खुले आसमान के नीचे एक दूध पीता बच्चा तप रहा था. महिला-पुरुष सभी किसी छांव की उम्मीद में इधर से उधर भटक रहे थे. कचरा बीन कर अपना जीवन चलाने वाले राजधानी पटना के मलाही पकड़ी में रह रहे गरीबों की झोपड़ियों को प्रशासन ने 5 अक्टूबर को बर्बरता से रौंद दिया था. सभी झोपड़ियां जमींदोज कर दी गईं. यहां तक कि आग लगाकर सभी सामान भी नष्ट कर दिए गए. लगभग 25 वर्षों से उस स्थान पर रह रहे इन गरीब परिवारों का अपराध बस इतना है कि वे उस स्थान से अपनी बेदखली का विरोध कर रहे थे अथवा उसके एवज में किसी और स्थान पर बसाए जाने की मांग कर रहे थे.

पटना में चल रहे मेट्रो प्रोजेक्ट के तहत उसी स्थान पर एक बड़े स्टेशन का निर्माण होना है, जहां पर इन गरीबों की झोपड़ियां थीं.



‘बाबू, मारा सो तो मारा ही, सब चौका-बर्तन चूर दिया. 5 अक्टूबर की सुबह 9 बजे प्रशासन की ओर से सभी झोपड़ियाें को खाली करने का आदेश दिया गया. हमलोग खाली कर ही रहे थे कि कुछ ही देर बाद सैंकड़ों की संख्या में चितकबरा पुलिस आ पहुंची और लोगों को मारना-पीटना शुरू कर दिया. गंदी-गंदी गाली देते हुए हम लोगों का बाल खींच-खींच कर मारा. राजेश ठाकुर के माथा पर मार दिया और उसी रात वे मर गए. सबकी हालत खराब हो गई है.’

उक्त बातें अपनी बांह, चेहरे और शरीर के अन्य हिस्सों पर पुलिसिया मार से स्याह पड़ चुके निशानों को दिखाते हुए अनीता देवी ने कहा. वह बताती हैं कि उनके बड़े बेटे रोहित को पुलिस ने बिजली के तार से बेरहमी से पीटा. वह जब भागकर इलाज कराने एक बगल के अस्पताल में पहुंचा, तो पुलिस वहां भी पहुंच गई और अस्पताल में ही बर्बरता से पीटने लगी. एक तरफ पुलिस की मार पड़ रही थी, उनके बर्तनों व सामानों को तोड़ा जा रहा था, चूल्हे पर पका भोजन तक उठाकर फ़ेंका जा रहा था और दूसरी ओर बचे सामान भी लूट लिए गए. अनीता देवी कहती हैं – ‘चौका-बर्तन का काम करते थे. 2200 रु. महीना में मिलता था. सब छूट गया है. घर में अनाज का एक भी दाना नहीं है. बच्चों के भरोसे जीवन चल रहा है. वही लोग जहां-तहां से चुन-बीन करके कुछ लाता है तो हम कुछ खा पाते हैं. जब खाएला ही न है, तब इलाज कहां से करायेंगे? दिन-रात हम सब लोग डर में जी रहे हैं कि कब पुलिस आएगी और यहां से भगा देगी! ’’



ईंट के चूल्हे पर भात पका रहीं करमनी देवी कहती हैं – ‘‘ यहीं हमलोग पैदा हुए, यहीं जवान हुए, यहीं शादी भी हुई, दू गो बच्चा भी हुआ, लेकिन आज सबकुछ तहस-नहस हो गया, हम लोग कहां जाएं?’’ मंजू देवी कहती हैं -‘‘दूसरा से बर्तन लेकर बच्चों के लिए खाना बना रहे हैं. सब सामान चूर दिया. एक चम्मच तक नहीं बचा है. कबाड़ी की दूकान थी, उसे भी जला दिया-’’ सब परिवारों की कहानी एक सी है. ये लोग सबसे पहले खाने-पीने के सामान की व्यवस्था चाहते हैं.

5 अक्टूबर को एएसपी संदीप सिंह के नेतृत्व में बर्बरता की सारी हदों को पार कर दिया गया. मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ा दी गई. पुलिसिया वहशियाना कार्रवाई ने लोगाें के बीच भय पैदा कर रखा है. चालीस वर्षीय राजेश ठाकुर की मौत के बाद तो और भी लोग डरे-सहमे हैं. दर्द-पीड़ा और आर्थिक विपन्नता से जूझते इन परिवारों को उम्मीद है कि आंदोलन का नेतृत्व दे रहे नेता जरूर कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.

जबरन बेदखली के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन  

मेट्रो स्टेशन निर्माण के कारण हो रहे इस विस्थापन के मद्देनजर इन गरीबों के लिए वैकल्पिक आवास के सवाल पर 5-6 अगस्त को मलाही पकड़ी चौक पर भाकपा-माले और अन्य वाम संगठनों ने एकताबद्ध होकर दो दिवसीय धरना दिया था. इसमें माले विधायक दल के नेता कॉ. महबूब आलम, शहरी गरीब मोर्चा के संयोजक अशोक कुमार व माले नेता रणविजय कुमार सहित पार्टी के अन्य नेता शामिल हुए थे. प्रशासन ने विस्थापन के एवज में दूसरी जगह बसाने का आश्वासन दिया था और उस सहमति के बाद धरना खत्म हुआ था. उसके बाद, विस्थापित होने वाले परिवारों की सूची बननी आरंभ हुई. लगभग 250 परिवारों की सूची बन भी गई, लेकिन इसी बीच 5 अक्टूबर की घटना को अंजाम दिया गया.



पुलिस बर्बरता में घायल होने के बाद इलाज के दौरान राजेश ठाकुर की मौत के खिलाफ 6 अक्टूबर को आक्रोशित हजारों शहरी गरीबों ने मलाही पकड़ी चौराहे को घेर लिया. वे नीतीश-भाजपा सरकार की गरीब विरोधी नीतियों को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए मृतक राजेश ठाकुर के परिजन के लिए 10 लाख रु. मुआवजा व सरकारी नौकरी, पुलिस अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने, बगैर वैकल्पिक व्यवस्था के झुग्गियों को उजाड़ने पर तुरन्त रोक लगाने तथा पहले के आंदोलन के बाद पाटलिपुत्र खेल परिसर के उत्तर में पटना डीएम द्वारा चयनित स्थल पर गरीबों को बसाने के सवाल पर बनी सहमति को लागू करने की मांग करते हुए मृतक राजेश ठाकुर के शव को चौक पर रख कर प्रदर्शन करने लगे.



शहरी गरीब मोर्चा व भाकपा (माले) नेता अशोक कुमार, पन्नालाल सिंह, उमेश शर्मा, आइसा छात्र नेता पुनीत व सीपीआई व अन्य नेताओं के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने मलाही पकड़ी चौक को चौतरफा जाम कर दिया. झुग्गी-झोपड़ी वासी शहरी गरीबों के आंदोलन की खबर पाते ही भाकपा (माले) विधायक दल नेता महबूब आलम व ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए और धरना पर बैठ गए.

माले विधायक महबूब आलम के पहुंचते ही आंदोनकरियों का जोश दुगुना हो गया. जिसके बाद वहां मौजूद एसडीओ पटना सदर व पुलिस अधिकारियों से हुई वार्ता में कुल 5 लाख रु. मुआवजा देने, जिसमें 4 लाख प्रशासन की ओर से व एक लाख रु श्रम विभाग की असंगठित कामगार योजना के तहत देने, तत्काल 20 हजार रु. व कबीर अंत्येष्टि योजना के तहत 3 हजार रु- नकद देने, अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने, मृतक राजेश के परिजन को नगर निगम में नौकरी देने आदि मांगों पर बनी सहमति के बाद आंदोलन समाप्त हुआ और मृतक राजेश का शरीर पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया.



इन्हीं सवालों पर आंदोलन तेज करने के उद्देश्य से 9 अक्टूबर को भाकपा-माले व अन्य वाम दलों ने ‘मलाही पकड़ी झुग्गी झोपड़ी बसाओ संघर्ष समिति’ का गठन किया. गरीबों के अधिकार की लड़ाई में अपनी जिंदगी गंवाने वाले राजेश ठाकुर की स्मृति में 10 अक्टूबर को एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित करने का भी फैसला किया गया. साथ ही, इस मसले पर बिहार के नगर विकास मंत्री व पटना नगर आयुक्त से एक शीर्ष प्रतिनिधिमंडल मुलाकात का भी निर्णय किया गया. इस बैठक में मुख्य रूप से भाकपा-माले के पटना स्थाई समिति सदस्य अशोक कुमार, भाकपा-माले के पटना महानगर सचिव अभ्युदय, भाकपा के देवरत्न प्रसाद, माकपा के मनोज चंद्रवंशी व भाकपा-माले के रणविजय कुमार उपस्थित हुए.

मजदूरों से बेगारी करवाता मेट्रो

पटना मेट्रो के उक्त स्थल पर बन रहे स्टेशन निर्माण के कार्य में झुग्गी-झोपड़ी के 12 युवकों को मजदूरी का काम मिला है. मजदूर रामकिशुन पासवान कहते हैं कि उनलोगों से सफाई व अन्य काम लिए जाते हैं, लेकिन मजदूरी महज 260 रु- मिलती है. वे बताते हैं कि मजबूरी में इसे करना पड़ रहा है. मेट्रो वाला बोलता है कि काम करना है तो करो वरना छोड़ दो.



रामकिशुन पासवान ने अपने मोबाइल में एक तस्वीर दिखलाई. यह सूचना पट है जिसमें अकुशल, अर्द्धकुशल, कुशल व अतिकुशल मजदूरों की मजदूरी का निर्धारण किया गया है. नार्गाजुन कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड इसका नियोक्ता है, जबकि मुख्य नियोक्ता दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन है.

अकुशल मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी 534 रु. प्रतिदिन, अर्द्धकुशल मजदूरों की मजदूरी 603, कुशल मजदूरों की मजदूरी 767 रु. और अतिकुशल मजदूरों की मजदूरी 777 रु. दर्ज है. लेकिन इन 12 मजदूरों को महज 260 रु. मिल रहा है. इन मजदूरों ने अपनी मजदूरी कम से कम 400 रु. करने की मांग उठाई. तीन-चार बार इन्होंने हड़ताल भी की, लेकिन मेट्रो प्रशासन अपने ही नियमों को लागू नहीं कर रहा है. बेराजगारी ऐसी है कि लोग बेबस और मजबूर हैं.

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