22 साल पहले 11 जुलाई, 1996 को दो बजे दिन में रणवीर सेना के कोई 50-60 हथियारबन्द लोगों ने बथानी टोला को घेर कर हमला किया और दलितों, अपसंख्यको , मजदूर – किसानों, शोषितों के घर मे आग लगा कर 21 लोगों को मार डाला. महिलाओं और बच्चों को खास निशाना बनाया गया. मृतकों में 16 महिलाएं और 7 बच्चे- बच्चियाँ थीं. 3 वर्ष से लेकर 70 वर्ष तक की महिला को भी नही छोड़ा गया.
हमलवार पूरे तीन घंटों तक मौत का खेल खेलते रहे. इस टोला के सौ मीटर से लेकर दो किलोमीटर के रेंज में चार पुलिस कैम्प थाना मौजूद रहने के बावजूद भी पुलिस लगभग सात घंटे बाद पहुंची जबकि लोग दिन के दो बजे ही लोग काटे और मारे जा रहें थे.
इस जनसंहार में अब तक का सबसे घिनौना, क्रूरतम , मध्ययुगीन बर्बरता का चरम नमूना पेश किया गया. 18 वर्षीय एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया. एक महिला के स्तन काट लिए गए और एक बच्ची बेबी कुसुम की जांघें काट डाली गईं. तीन साल की बच्ची को हवा में उछाला गया और नीचे गिरती हुई बच्ची को तलवार से काट डाला गया.
इस बर्बरता के पीछे रणवीर सेना जो आरएसएस–भाजपा संरक्षित भूस्वामियों का एक खास जाति का गिरोह था जिसके मुखिया ब्रह्मेश्वर ने कहा था कि हम गरीब – दलितों के बच्चों को मारतें है क्योंकि ये बड़े होकर नक्सलाइट बनेंगे. हम महिलाओं को भी मारतें है क्योंकि ये नक्सलाइट को जन्म देती हैं .
रणवीर सेना का मानना था कि ‘भविष्य में पैदा होने वाले नक्सलियों का अभी सफाया करो .’
जैसा कि भाकपा -माले महासचिव विनोद मिश्र ने बाथे जनसंहार के बाद कहा था कि “यह युद्ध निस्संदेह जीता जा सकता है और इसे अवश्य जितना है, यह मानव प्रगति, जनवाद और सच्चे राष्ट्रवाद की पुकार है. यह आधुनिक दौर का तकाजा है. ” बिहार की बहादुर जनता ने जनप्रतिरोध के हर स्तर को विकसित कर सामंती रणवीर सेना से जंग जीत लिया जिसका उदाहरण है रणवीर सेना का ध्वस्त होना और मानवता के दुश्मन रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर का अंत होना.
लेकिन न्यायिक लड़ाई जो 22 सालों से कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने के बाद जारी है. भारतीय न्याय व्यवस्था ने भी अपना चरित्र दिखला दिया. पटना उच्च न्यायलय के न्यायाधीश एन.पी.सिंह और ए.पी.सिंह ने ‘‘सबूतों के अभाव’’ में सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया. जब कि इस मामले में आरा की सेशन अदालत ने मई 2010 में कुल 23 लोगों को दोषी करार दिया था. इनमें से तीन को फांसी की सजा सुनाई गई थी जबकि बाकी लोगों को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा दी गई थी.
नीतीश की ‘ न्याय के साथ विकास और सुशासन की सरकार ’ ने जनसंहार के सभी मुकदमों में कमजोर पैरवी, साक्ष्य जुटाकर जनसंहारियों को छुड़ाने में सहयोग किया है.
नीतीश की संघपरस्ती यही पर खत्म नही होती. ‘ सुशासन बाबू ’ ने रणवीर सेना की राजनीतिक दलों से साठगांठ पर जांच करने के लिए 27 दिसम्बर 1997 को गठीत एक सदस्यीय अमीर दास आयोग को भंग कर दिया. तब अमीर दास ने कहा कि रणवीर सेना व भाजपा के नेताओं से साठगांठ का साक्ष्य मिलने के कारण भाजपा के दबाव में नीतीश सरकार ने इस आयोग को बिना पूर्व सूचना दिए भंग कर दिया.
पटना उच्च न्यायलय के फैसले पर भाकपा- माले ने क्षोभ प्रकट किया और राज्य भर में विरोध प्रदर्शन का एलान किया।
भाकपा माले और जनसंहार में मारे गए लोगों के परिवार ने पटना हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है । सुप्रीम कोर्ट के दो जजों अल्तमस कबीर और जे चेलमेश्वर की पीठ ने फैसले के विरुद्ध की गई अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि इस मामले की त्वरित सुनवाई जरूरी है.
बिहार सरकार ने अपनी लाज बचाते हुए पीछे से सुप्रीम कोर्ट में पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिफाफ अपील दायर की है.
भाकपा माले गरीबों के इस जनसंहार के दिन बथानी टोला के पीड़तों को न्याय के लिए हर वर्ष संकल्प दिवस के रूप में मनाती है .
11 जुलाई 2018 को बथानी टोला के वीर शहीदों के शहादत दिवस के अवसर पर भाकपा माले कार्यकर्त्ताओं ने संकल्प सभा आयोजित किया. बथानी टोला के वीर शहीद स्मारक पर भाकपा माले की सहार कमेटी के सचिव उपेंद्र भारती, तरारी विधायक सुदामा प्रसाद सहित सैकड़ों गरीब जनता ने माल्यापर्ण कर यह संकल्प लिया कि 22 साल पहले सामंती – साम्प्रदायिक , फासीवादी ताकतों द्वारा रचित जनसंहार का बदला और मारे गया शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि हम फ़ासीवादी ताकतों को हरा कर देंगे. शहीदों के प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
देखना है कि देश की न्याय व्यवस्था से बथानी टोला के गरीबों , दलितों , अल्प संख्यकों की हत्या करने वालों को कब सजा दे पाती है ?