सौरभ यादव
जिस समय दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी, उसी दौरान बिहार के मोतिहारी जिले मे महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत, जेएनयू के पूर्व छात्र संजय कुमार पर वीसी समर्थक गुंडों ने हमला कर दिया। संजय कुमार ने थाने में दर्ज की गई अपनी शिकायत में बताया कि वो कमरे में बैठ कर अपनी पढ़ाई-लिखाई सम्बंधित कार्य कर रहे थे कि तभी 20-25 लड़को का एक झुंड आया और उन्हें पीटने लगा। यही नही यह भीड़ उन्हें घसीट कर घर के बाहर सड़क तक ले आई और इस दौरान उनको लात, घुसों और डंडो से पीटा जाता रहा।
संजय कुमार ने बताया भीड़ उन्हें लगातार धमकी देती रही और तुम कुलपति और दैनिक भाष्कर अखबार के ब्यूरो प्रमुख के खिलाफ लगातर बोल और लिख रहे हो, जल्दी ही इस्तीफा देकर यहां से नही गए तो पेट्रोल डालकर जला दिया जाएगा।
2014 में जब मोदी सरकार आई तो बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग ने इसे देश के लिए एक बड़ा खतरा बताया वही दूसरी तरफ एक ऐसा धड़ा भी था जिसने ये कहा कि सत्ता का चरित्र फासीवादियों को भी अपने सिस्टम में ढ़ाल लेता है। अब जब मोदी सरकार का कार्यकाल अपने आखिरी दौर में है तब पिछले कुछ सालों से लगातार हो रही भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएं देश मे फासीवादी खतरे की आहट का संकेत दे रही है।
सबसे पहले गौ मांस के नाम भीड़ द्वारा हत्याओं का दौर शुरू हुआ और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगो को निशाना बनाकर उनकी संगठित रूप से देश भर में जगह-जगह हत्याएं की गई। झारखंड में बच्चा चोरी के अफवाह के नाम पर भी भीड़ द्वारा हत्या का एक नया पैटर्न सामने आया। लेकिन इधर बीच कुछ समय से सरकार के खिलाफ बोलने वालों पर भी प्रत्यक्ष हमले शुरू हो गए है।
झारखंड में ही कुछ दिन पहले स्वामी अग्निवेश को भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्यों ने पीटा, वही स्वतंत्रता दिवस से ठीक एक दिन पहले कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में जेएनयू के छात्र और एक्टिविस्ट उमर खालिद पर पिस्टल से हमला हुआ। अभी ये मामले ठंडे भी नही पड़े थे कि आज फिर पूर्व प्राधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने जा रहे स्वामी अग्निवेश को भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर पीटा गया और उधर बिहार में कुलपति के खिलाफ आवाज उठा रहे असिस्टेंट प्रोफेसर संजय कुमार पर जान लेवा हमला किया गया।
यह पहला मौका नही है जब किसी विश्वविद्यालय के अध्यापक को पीटा गया हो। हाल ही में हुई इस तरह की घटनाओं में पिछले साल एक सेमिनार के संदर्भ में हुए बवाल के दौरान रामजस कॉलेज के अध्यापक प्रशांत चक्रवर्ती को एबीवीपी के गुंडों ने पीटा था। अभी हाल ही में गुजरात के भुज जिले के कच्छ यूनिवर्सिटी में भी छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी के मन मुताबिक वोटर लिस्ट तैयार नही करने के कारण एक प्रोफेसर को पीटा गया। लखनऊ विश्वविद्लाय में भी सत्ता समर्थित गुंडे द्वारा एक फ़ेलोशिप के लिए लिखे गए पेपर को रिजेक्ट करने के कारण एक दलित प्रोफेसर को पीटा गया।
ये कुछ घटनाएं है जो अभी हाल के ही दिनों में विभिन्न कैम्पसों में घटित हुई है। इन सभी घटनाओं में पीटने वाले सत्ता समर्थक लोग है और इन सभी घटनाओं के वीडियो भी सामने आए लेकिन सरकारों द्वारा इन अपराधियो को दिए जा रहे संरक्षण की वजह से इनपर अब तक कोई ठोस कार्यवाही नही की गई। कार्यवाही का नही किया जाना भी इन घटनाओं की बढोत्तरी का कारण एक प्रमुख कारण है ।
मोदी सरकार के बनने के बाद से ही भाजपा ने देश भर के विश्वविद्यालयों में आरएसएस का भगवा एजेंडा लागू करना शुरू कर दिया। लेकिन छात्रों के द्वारा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिए जाने के कारण सरकार को अपने कदम पीछे खीचने पड़े। ऐसे में जेएनयू समेत देश भर के तमाम विश्वविद्यालयों में इन्होंने अपने एजेंट कुलपतियों माध्यम से आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाना शुरू किया है। जिसका विरोध छात्र-छात्राओं समेत विश्वविद्यालय के अध्यापक भी कर रहे है। जिसकी बानगी हाल ही में जेएनयू में कराए गए एक रेफरेंडम में अध्यापको द्वारा कुलपति को हटाए जाने के पक्ष में दिए गए बहुमत में देखने को मिली। इसीलिये अब इनका अगला निशाना विश्वविद्यालयों के अध्यापको समेत अकादमिक दुनिया के वो लोग है जो लगातर सरकार के खिलाफ लिख और बोल रहे। तब ऐसे दौर में हमलावरों का प्रतिरोध करते हुए सत्ता के खिलाफ लड़ रहे अध्यापको, छात्रों और बुद्धिजीवियों के पक्ष में खड़ा होना जरूरी हो जाता है।