इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीआरडी मेडिकल कालेज गोरखपुर के निलम्बित बाल रोग चिकित्सक डा. कफ़ील ख़ान पर अलीगढ़ जिला प्रशासन द्वारा लगाए गए राष्टीय सुरक्षा कानून और उसको राज्य सरकार की स्वीकृति को गैरकानूनी करार देते हुए उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और एस डी सिंह ने डा. कफील खान की मां नुजहत परवीन द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर आज यह फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई 28 अगस्त को पूरी करते हुए आदेश रिजर्व कर लिया था।
मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश एसडी सिंह ने डा. कफ़ील ख़ान के अलीगढ़ में दिए गए भाषण के आधार पर उन पर रासुका लगाए जाने का न्यायसंगत नहीं माना। रासुका की अवधि बढ़ाये जाने के आधार से भी हाईकोर्ट संतुष्ट नहीं हुआ।
डा. कफ़ील ख़ान को 29 जनवरी 2020 को मुम्बई से गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के गेट पर सीएए-एनआरसी के विरोध में आयोजित सभा में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में दर्ज केस में गिरफ़्तार किया गया था। इस मामले में उन्हें जमानत मिल गयी थी लेकिन उन्हें तीन दिन बाद तक रिहा नहीं किया गया और फिर 13 फरवरी 2020 को उनका रासुका लगा दिया गया। उसके बाद दो बार तीन-तीन महीने के लिए रासुका की अवधि बढ़ा दी गयी।
रासुका में निरूद्धगी को डा. कफ़ील की मां नुजहत परवीन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च को सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट को करनी चाहिए।
इसके बाद नुजहत परवीन ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। इस याचिका में प्रदेश सरकार की कार्यवाही पर मुख्यतया तीन विंदुओं पर सवाल उठाया गया था। पहला यह कि अलीगढ़ में दर्ज केस में जमानत मिल जाने के बाद चार दिन तक क्यों रिहा नहीं किया गया ? दूसरा यह कि डॉ कफ़ील ख़ान को अपने खिलाफ दर्ज सभी मामलों में जब जमानत मिल चुकी है तो फिर किस आधार पर उन्हें रासुक में निरुद्ध किया गया ? तीसरा यह कि कोविड-19 संक्रमण के कारण जब जेल से कैदियों को रिहा किया जा रहा है तो उन्हें रिहा करने के बजाय उन पर रासुका की अवधि तीन महीने के लिए और बढ़ा दी गयी।
हाईकोर्ट में नुजहत परवीन की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर आठ जून, दस जून, 16 जून, सात जुलाई , 27 जुलाई और को 5 अगस्त को सुनवाई हुई।
हाई कोर्ट में 27 जुलाई को न्यायाधीश शशिकांत गुप्ता और मंजूरानी चौहान की बेंच में सुनवाई हुई थी। इसमें याची के अधिवक्ता को संशोधित याचिका दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय देते हुए पांच अगस्त की तारीख निर्धारित की गयी।
पांच अगस्त को न्यायाधीश मनोज मिश्र और दीपक वर्मा की बेंच ने सुनवाई की। अपर शासकीय अधिवक्ता पतंजलि शर्मा ने कोर्ट में कहा कि याची की संशोधित याचिका शुक्रवार को उनके कार्यालय को मिली है। इसका जवाब देने के लिए दस दिन का समय चाहिए। इस पर कोर्ट ने उन्हें 19 अगस्त को सुनवाई की तारीख निर्धारित करते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता को अपना जवाब दाखिल करने कहा। कोर्ट ने केन्द्र सरकार को भी अपना हलफनामा 19 अगस्त को प्रस्तुत करने को कहा।
इसी बीच नुजहत परवीन एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट चली गयीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की कि डा. कफील के रासुका में निरूद्धगी के मामले की समयबद्ध सुनवाई हो। उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 11 अगस्त को सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट से कहा कि 15 दिन में फैसला करे कि डॉ कफ़ील ख़ान को रिहा कर सकते हैं या नहीं।
इसके बाद 19 अगस्त को एक आदेश जारी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रासुका के तहत डॉ. कफ़ील ख़ान पर रासुका की कार्रवाई के मूल दस्तावेज तलब किए थे।