अच्युतानंद मिश्र
नई कहानी के अप्रतिम कहानीकार शेखर जोशी नहीं रहें।याद आता है 2012 में जबलपुर में उनसे मुलाकात हुई थी। उनसे बात करते हुए महसूस हुआ कि जो आत्मीयता, तरलता और संवेदनशीलता उनकी कहानियों में है, चरित्रों में है वस्तुतः वह उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है।
मैंने अपने जीवन में आज तक इतना सरल सहज मन का लेखक नहीं देखा। मेरे लिए वे कोसी का घटवार, बदबू, दाज्यू जैसी अविस्मरणीय कहानी के कथाकार थें। उन्हें अपने इतने निकट पाकर मेरे लिए सहसा यकीन करना कठिन था। उनसे मुलाकात मुझे एक स्वप्न की तरह लगी थी।अब भी याद करता हूं तो कोई मीठे स्वप्न जैसा ही एहसास होता है। कोई स्मृति जो स्वप्न की तरह नर्म और गैर यकीनी हो। इसके बाद की उनसे एकाध मुलाकात और याद है। मैंने नौरंगी बीमार है पर लिखा था। संभवतः अनहद का विशेषांक था। उन्होंने फोन किया। कहा खूब मन से और नए ढंग से लिखा है। ऐसे ही लिखो। आज तक अपने लिखे पर इस तरह की प्रशंसा और गौरव मैने कभी महसूस नहीं किया। बहुत देर तक मेरे भीतर कोई गुदगुदी सी होती रही।
आखिर क्या था शेखर जोशी की कहानियों में कि वे समय-काल , पीढ़ी- युग , सभ्यता -भाषा आदि की सीमाओं के पार चली आती थीं?
वह कौन सा चुम्बकत्व था, जिससे पाठक एकबार खिंचने के बाद शायद ही छूट पाता हो।
कौन होगा जो दाज्यू पढ़कर दीवार की ओर मुँह करके रोया न हो? कोसी का घटवार में जिस तरह की विरल प्रेम संवेदना है, टूटने और छूटने के बीच बचाए रखने का जैसा मोह लगाव है -वैसा शायद ही कोई हो जिसने जीवन में महसूस न किया हो। पढ़कर विछोह के मरोड़ का दर्द किस अभागे के पेट में न उठा होगा ? बदबू जैसी कहानी ने कितने लोगों को अपने भीतर के नकार और प्रतिरोध को बचाए रखने की प्रेरणा दी होगी बताया नहीं जा सकता।
शेखर जोशी ने मामूली लोगों की गहन संवेदना की कहानियां लिखीं।ये कहानियाँ हमारे निकट के संसार का रोजनामचा थीं। उसमें छोटे बड़े हर तरह के दुख थे, करुणा थी। नई कहानी ने एक से एक दुर्लभ कथाकार हिंदी को दिया। मगर शेखर जोशी की कहानियों में जो जीवन सृजित करुणा का बखान था, वह अन्यत्र नहीं है।
जब भी कोई अपने शहर, घर परिवार से दूर किसी बेगाने शहर को जाएगा उसके प्राण किसी दाज्यू की खोज में भटकेंगे । जब भी कोई लौटकर घर आएगा।अपने पुराने प्रेमी से मिलकर कोसी के घटवार के नायक की तरह अपने को बेचैन पाएगा। पाने और खोने के बीच जीवन की मद्धिम लय को बार -बार सुनेगा।यही तो जीवन संगीत है। यह करुणा, यह बेचैनी, यह आत्मीयता ,यही तो इस दुनिया का हासिल है।शेखर जोशी की कहानियों का मूल द्रव्य भी यही है।
अब वे नहीं हैं। उनकी अविस्मरणीय कहानियाँ उनका स्मरण कराती रहेंगी।
अलविदा कथाकार।