मैंने नेपाल की राजशाही के खिलाफ चले नेपाली जनता के लोकतंत्र बहाली आन्दोलन को नजदीक से देखा था. भीषण दमन के उस दौर में नेपाली कम्युनिस्टों के नेतृत्व का एक हिस्सा भूमिगत स्थितियों में भारत में प्रवासी नेपालियों को संगठित कर आन्दोलन चलाता व नए-नए कार्यकर्ता तैयार करता था. मैं उस दौर में अपने संगठन भाकपा (माले) की तरफ से उनके समर्थन में दिल्ली और फरीदाबाद में आयोजित उनकी रैलियों में शामिल होता रहा हूँ. अब जब मैं 9 से 13 मार्च 2019 तक नेपाल में किसान संगठनों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में हिस्सा लेने काठमांडू गया, तो आज के नेपाल को जानने-समझने की मुझमें काफी उत्सुकता थी. इसी लिए मैंने नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार के पदाधिकारियों, सत्ताधारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं, कृषि मंत्रालय और किसान आयोग से जुड़े साथियों के साथ ही गावों में जमीनी स्तर पर किसान संगठन का काम कर रहे कार्यकर्ताओं से बातें की.
नेपाली जनता ने अपने महान लोकतांत्रिक आन्दोलन के बल पर राजशाही को उखाड़ फेंका है. लम्बी जद्दोजहद के बाद नेपाल ने अपने नए संविधान को अंगीकार कर लिया है. कामरेड मदन भंडारी के समय ही नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी माले ने नेपाल के लिए बहुदलीय लोकतंत्र का रास्ता अंगीकार कर लिया था. आज के दौर की नेपाल की प्रमुख दो कम्युनिस्ट पार्टियाँ नेकपा एमाले व नेकपा माओवादी सेंटर एकीकरण की दिशा में काफी आगे बढी हैं.
एकीकरण की यह प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है. यह बाहर से जितनी आसान और सहज दिखती है, अन्दर से उतनी ही जटिलताओं से भरी और हम सबके लिए सीखने का एक बेहतर प्रयोग है. केन्द्रीय स्तर से लेकर नीचे तक पार्टी ढाचों का एकीकरण हो गया है. पर दोनों धाराओं से समान पद पर समान प्रतिनिधित्व है. इस लिए जहां भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों में अभी अध्यक्ष का पद नहीं है, वहीं नेपाल में पहले एकीकरण में एमाले बनते समय अध्यक्ष का पद सृजित किया गया था और अभी के एकीकरण के बाद पार्टी में दो राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. दोनों पार्टियों के पोलित व्यूरो और केन्द्रीय कमेटियों का एकीकरण हुआ तो पोलित व्यूरो सदस्यों की संख्या डेढ़ सौ पहुँच गयी. ऐसी स्थिति में पोलित व्यूरो के अन्दर एक सचिवालय चुना गया है जो तात्कालिक मामलों पर निर्णय लेता है.
इसके अलावा जन संगठनों के मामले में अभी एकीकरण की प्रक्रिया ज्यादा आगे नहीं बढी है. वहाँ अभी भी दोनों धाराओं के जन संगठन अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं. पर गतिविधियाँ मिल कर करते हैं. इसी लिए यहाँ भी हर स्तर पर दोनों हिस्सों के बराबर प्रतिनिधित्व की व्यवस्था लागू है. यही प्रक्रिया धीरे धीरे सम्पूर्ण पार्टी को पूर्ण एकीकरण की दिशा में आगे बढाएगी.
नए संविधान के लागू होने के बाद एक साल पूर्व हुए पहले संसदीय चुनाव में इन कम्युनिस्टों की “नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी” को दो तिहाई बहुमत देकर नेपाली जनता ने नए संविधान के अनुसार नए नेपाल के निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सोंप दी है. इससे नेपाल में एक नए उत्साह का माहौल है. नेकपा के नेता-कार्यकर्ता इस भारी जीत से उत्साहित दिख रहे हैं, नए जनपक्षीय संविधान को कैसे लागू किया जाए, इस पर पूरे नेपाल में बहसें जारी हैं. सरकार और सत्ताधारी पार्टी के नेता नए संविधान की खूबियों को जनता को बता रहे हैं. वहीँ नेपाल की आम जनता अब इस बदलाव के नतीजों का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है. पूंजीवादी-सामन्ती ताकतों का प्रतिनिधि विपक्ष और राज्य मशीनरी में बैठी समाजवाद विरोधी नौकरशाही “देखो और इन्तजार करो” की मुद्रा में दिख रही है.
राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव के बाद नेपाल जमीनी स्तर पर एक बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा है. जीत के जश्न से निकल कर अब जमीनी स्तर पर बदलाव की पहल ही इस राजनीतिक और संवैधानिक बदलाव की स्थिरता की गारंटी करेगा.
सत्ताधारी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी का आकलन है कि उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से नव जनवादी क्रांति की मंजिल पार कर ली है. वे जनता के नए संविधान का निर्माण और कम्युनिस्टों को मिली दो तिहाई बहुमत की सरकार को उसका प्रमुख उदाहरण मानते हैं. वे कहते हैं, “हालांकि इस बदलाव में एक दशक तक चले हथियारबंद आन्दोलन और जनता की भारी कुर्वानियों ने अहम भूमिका निभाने का काम किया है”. उनका मानना है कि नेपाल में अब कम्युनिस्टों के नेतृत्व में पूंजीवादी विकास समाजवादी रूपांतरण की नीतियों के साथ जुड़ा रहेगा. जन युद्ध के दौर के पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के योग्यता रखने वाले लोगों को नेपाल की स्थाई सेना में विभिन्न पदों पर समाहित किया गया है. जो योद्धा अनफिट थे उन्हें 10-10 लाख की नकद सहायता दी गयी है.
नेपाल के विकास के लिए कृषि क्षेत्र में बुनियादी बदलाव को लेकर नेपाली समाज और नेपाल की सरकार में जबरदस्त बहसें दिख रही हैं. कृषि में उत्पादन को बढाने व भूमि व्यवस्था को लेकर जबरदस्त बहसें हैं. तराई और पहाड़ में बंटी नेपाल की खेती तथा 65 प्रतिशत कृषक आबादी की आजीविका और जीवन स्तर को उन्नत करना उनके सामने बड़ी चुनौती है. एक हिस्से का मानना है कि भूमि का निजी स्वामित्व ख़त्म होना चाहिए. जबकि एक दूसरे हिस्से का मानना है कि भूमि के निजी स्वामित्व में कोई छेड़छाड़ किए बिना किसानों की सहकारी समितियों (कोआपरेटिव्स) के माध्यम से खेती शुरू करनी चाहिए. दूसरे मत से वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी भी सहमत दिख रही है. तराई क्षेत्र में भारत से हो रही सस्ती सब्जियों और गन्ने की सप्लाई से किसान परेशान है. क्योंकि इससे उनके उत्पादों की कीमत गिर रही है और उसकी लागत भी नहीं मिल रही है.
नेपाल ने अपनी कृषि की दशा में सुधार के लिए एक राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया है. इस आयोग के गठन का फैसला संविधान निर्माण के दो साल पहले ही ले लिया गया था. इस आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए, यह बात भी शुरू हुई है. दूसरे देशों में जब कोई आयोग गठित होता है तो उसका अध्यक्ष कोई सेवानिवृत जज या अधिकारी होता है. नेपाल के किसान आयोग का गठन इस मामले में उम्मीद भरा है कि उसके अध्यक्ष सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के किसान संगठन के वर्तमान अध्यक्ष कामरेड चित्र बहादुर हैं. सात सदस्यीय किसान आयोग में चार सदस्य अभी भी सीधे किसान आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले हैं. पूरे सम्मेलन के दौरान किसान आयोग के अध्यक्ष कामरेड चित्र बहादुर का मौजूद रहना, हर वक्ता को ध्यान से सुनना और उनके अनुभवों व सुझावों को खुद नोट करना, काफी उम्मीद जगाने वाला था. नेपाल के राष्ट्रीय किसान आयोग की रिपोर्ट का बेसब्री से हमें भी इंतज़ार रहेगा.
नव जनवादी क्रांति देश में कृषि क्रांति से होकर ही जनवाद व समाजवाद की और बढ़ेगी, यह बात सत्ताधारी कम्युनिस्ट नेताओं कार्यकर्ताओं की बातचीत में दिख रही है. पर कृषि मंत्रालय के प्रजेंटेशन में मुकम्मल भूमि सुधार के जरिये ग्रामीण समाज में भूमि संबंधों व उत्पादन संबंधों को बदल कर सामन्ती अवशेषों के खात्मे पर जोर नहीं दिख रहा था. नेपाल ने खाद्य संप्रभुता और खाद्य सुरक्षा को नए संविधान में मौलिक अधिकार का दर्जा दे दिया है. इसे लागू करने के लिए सरकार और पार्टी नेताओं के बीच नीतियों की समझ में अभी फर्क बना हुआ दिख रहा है. कृषि मंत्रालय के प्रजेंटेशन और सत्ताधारी किसान नेताओं के प्रजेंटेशन में अंतर दिख रहा था. कृषि मंत्रालय खेती के विकास के लिए जो खाका पेश कर रहा था उसमें खेती की जमीन और अपने परम्परागत बीजों को कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय निगमों के शिकंजे से बचाने का कोई संकल्प नहीं दिख रहा था. बिना इसके खाद्य संप्रभुता की रक्षा कैसे होगी यह सवाल नेपाली कम्युनिस्टों के सामने खड़ा है. इस सब पर जब मैंने नेकपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड पुष्प कमल दहल प्रचंड से बात की तो उन्होंने कहा कि नेकपा और राज्य मशीनरी के नजरिये के बीच अभी यह अंतर है जिसके खिलाफ हम सतत संघर्ष चला रहे हैं.
नेपाली जनता और नेपाल की सरकार के भारत से पहले जैसे दिली रिश्तों में काफी दूरी दिख रही है. हर जरूरत के सामान के लिए भारत और भारतीय सीमा के रास्तों पर सदियों से निर्भर नेपाल की भारत सरकार द्वारा की गयी आर्थिक नाकेबंदी नेपाल की जनता के लिए आज भी एक डरावना स्वप्न है. इस नाकेबंदी ने नेपाल के लोगों को खून के आंसूं रुला दिए थे. नेपाल में आए भीषण भूकंप और तबाही के दौर में मोदी सरकार और भारतीय कारपोरेट मीडिया द्वारा मदद के नाम पर मोदी के प्रचार को प्रमुखता नेपाल के लोगों को पसंद नहीं आई. ऊपर से भारत में अचानक हुई नोटबंदी के समय नेपाल में भारत के एक हजार और पांच सौ के नोटों में चौबीस हजार करोड़ रुपए चलन में थे. पर मोदी सरकार ने इन नोटों को बदलने से इनकार कर नेपाल जैसे गरीब देश को चौबीस हजार करोड़ रुपए की चपत लगा दी.
इसके अलावा आरएसएस के नेपाल की अंदरुनी राजनीति में हस्तक्षेप कर नेपाल को फिर हिन्दू राष्ट्र बनाने के षड़यंत्रों ने भी लोकतंत्र की स्थापना के लिए इतनी कुर्बानी झेली नेपाल की जनता की भारत से दूरी बनाने में भूमिका निभाई है. आज नेपाल की जनता अब भारत और उसकी सीमा पर उतना निर्भर रहकर खुद को संकट में नहीं डालना चाहती है. इस लिए भारत के साथ ही चीन के साथ भी नेपाल व्यापारिक रिश्ते विकसित कर रहा है. एक संप्रभु राष्ट्र नेपाल के हित में यही सही कदम होगा ताकि निर्भरता के बजाए उसकी मोल भाव की ताकत बढ़ सके.
कुल मिलाकर कहा जाए तो नेपाल ने सुबह की लालिमा तो देख ली है, पर अब नेपाली जनता एक बेहतर दिन के इंतज़ार में है. नेपाली कामरेडों और नेपाल की सरकार के भविष्य के कदमों पर नेपाली जनता के साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप की लोकतंत्र पसंद ताकतों की नजरें भी टिकी हैं. उम्मीद है वे अपने मकसद में कामयाब होंगे.
(भाकपा माले के मुखपत्र लिबरेशन से साभार. लेखक अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव और विप्लवी किसान संदेश के संपादक हैं )