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युवाओं और बेरोजगारों के सबसे आत्मीय कथाकार हैं अमरकांत : प्रणय कृष्ण

बलिया में ‘ शती स्मरण :अमरकांत ‘ का आयोजन

बलिया। जन संस्कृति मंच ने अप्रितम कथाकार अमरकांत की जन्म शती आयोजन की श्रृंखला की शुरुआत करते हुए छह अक्टूबर को बलिया के टाउन हाल सभागार में ‘ शती स्मरण: अमरकांत’ कार्यक्रम का आयोजन किया। आयोजन के पहले सत्र में गोष्ठी हुई तो दूसरे सत्र में फिल्मकार संजय जोशी द्वारा साहित्य अकादमी के लिये बनायी गई दस्तावेजी फिल्म ‘ कहानीकार अमरकांत ‘ दिखाई गई। इस मौके पर अमरकांत की कहानियों पर कथाकार प्रियदर्शन मालवीय की किताब ‘ सादगी का सौंदर्य’ का विमोचन भी हुआ।

गोष्ठी का प्रारंभ नाट्य एवं गायन टीम ‘ कोरस ’ की समता ने गोरख पांडेय के गीत गुलमिया हम नाहीं बजइबो, अजदिया हमारा के भावेला ’ गाकर किया। बलिया के वरिष्ठ पत्रकार एवं सांस्कृतिक कार्यकर्ता अशोक ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि बलिया जिला क्रांति की धरती के साथ साथ साहित्य सृजन की उर्वरा भूमि रही है।

इलाहाबाद से आये युवा आलोचक प्रेमशंकर ने कहा कि अमरकांत ने प्रेमचंद की हिंदी कथा साहित्य की यथार्थवादी और प्रगतिशील लेखन की परंपरा को को आगे बढाया। घीसू-माधव, होरी-गोबर जैसे सामान्य और उपेक्षित जीवन को साहित्य में नायक की पदवी देकर कथाकार प्रेमचंद ने जिस परंपरा का सूत्रपात किया, उसे आगे बढाते हुए ही अमरकांत ने राजुआ जैसा चरित्र हिंदी संसार को दिया जो कि स्वाधीनता के बाद बने भारतीय समाज की जोंक व्यवस्था का परिणाम है। बल्कि अगर यह देखना हो कि स्वाधीनता के बाद भारतीय समाज में गोबर और घीसू-माधव जैसे चरित्रों की क्या जगह बनी तो अमरकांत की कहानी ‘ डिप्टी कलक्टर ‘  के नारायण बाबू और ‘ हत्यारे ‘ के  गुमराह युवकों के जरिए उन्हें पहचाना जा सकता है।

युवा इतिहासकार शुभनीत कौशिक ने कहा कि यह आयोजन उसी स्थान पर हो रहा है जहां के ‘ चलता पुस्तकालय ’ ने अमरकांत सहित कई कहानीकारों को रचने और गढ़ने का काम किया। उन्हें याद करते हुए बलिया सहित देश के तमाम स्थानों पर पुस्तकालयों की पढने और विमर्श की संस्कृति बनाने में उनकी भूमिका को याद किया जाना चाहिए। साथ ही इस बात पर भी चर्चा करना चाहिए कि ये संस्थाएँ आज क्यों बदलहाल हुई। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले जब 1937 में कांग्रेस मंत्रिमंडल बना तभी से जनता विशेषकर किसानों, युवाओं और श्रमिकों की उम्मीदें निराशा में बदलने लगी और आजाद भारत में यह और गहरी होती गयीं जिसे अमरकांत ने बहुत जहीन तरीके से अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के बहूस्तरीय आवाजों को अपनी कहानियों व उपन्यासों में दर्ज किया। उन्होंने आजाद भारत में उभर रहे सांप्रदायिक खतरे, मध्य वर्ग की आंकाक्षाओं के साथ-साथ उसके पाखंड और सामंती प्रवृतियों की गहराई से शिनाख्त की।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रोफेसर बसंत त्रिपाठी ने कहा कि अमरकांत नई कहानी के दौर में निम्न मध्य वर्गीय जीवन के संघर्ष व अंतर्विरोध के सबसे बड़े कथाकार थे। निम्न मध्य वर्ग का संघर्ष जीविका-रोजगार के अलावा सांस्कृतिक भी था जिसे अमरकांत ने अपनी रचनाओं में बहुत सूक्ष्मता से दर्ज किया। प्रो बसंत ने कहा कि अमरकांत की कहानियों को समझने के लिए आजादी के बाद के परिवेश की संरचना को ठीक से समझना होगा। आजादी के बाद मध्य वर्ग सत्ता की ओर बढ़ते हुए अवसरो का लाभ उठा रहा था और उसकी दावेदारी भी प्रस्तुत कर रहा था। उस वक्त गांव और कस्बे तमाम अन्तर्विरोधों के साथ आजाद भारत की संरचना का हिस्सा बन रहे थे। आजाद भारत के नेतृत्व ने अन्तर्विरोधों को हल करने का रास्ता शहरीकरण और औद्योगिकीकरण में देखा। अमरकांत उस दौर में ग्रामीण संरचना के अन्तर्विरोधों को बहुत सूक्ष्मता के साथ देखने वाले लेखक हैं। उन्होंने इस अन्तर्विरोध को अतिरिक्त मुग्धता के साथ नहीं बल्कि निर्ममता के साथ देखा। उन्होंने अपनी रचनाओं ने दिखायी न देने वाले विस्थापन को दर्ज किया जो आर्थिक स्थिति कमजोर होने और ग्रामीण इलाकों के उजड़ते जाने से उपज रही थी। अमरकांत ने निम्न मध्य वर्गीय जीवन को व्यक्तिगत समस्या नहीं माना बल्कि समाज की स्थितियों के लिए उसे जिम्मेदार माना जो लोगों के भीतर किस्म किस्म के चाहतों को जन्म दे रही थी। उन्होंने कहा कि अमरकांत की कहानयिां असमाप्त कहानियां हैं। वह अपनी कहानियों में संकेत छोड़ते हैं जो छूट जाए तो कहानी भी पकड़ से छूट जाति है। उनकी यह कथयुक्ति, कमाल की भाषा और मुहावरे उन्हें विलक्षण कथाकार बनाते हैं।

मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो प्रणय कृष्ण ने अमरकांत के व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष की चर्चा करते कहा हम लोगों को उन्होंने व्यक्तित्व की उदारता और लोकतांत्रिकता का मूल्य दिया। मिला। प्रणय कृष्ण ने अमरकांत की कहानियों में उपमाओं की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि कथा संसार में इस मायने में वे अलहदा कथाकार हैं। उनकी कहानियों मे एक पंक्ति में एक के उपर एक चढ़ती हुई उपमाएं मिलती हैं। ये उपमाएं उपमेय से ज्यादा अर्थ संप्रेषित करती हैं। ये उपमाएं रोजमर्रा की जिंदगी से ली गयी हैं। उनकी कहानियों में बहता हुआ समय एकदम अलग तरीके से आता है। उन्होंने बहुत पहले अपनी कहानी ‘ जिंदगी और जोंक ’ में लिंचिंग की शिनाख्त की जो हमारे संस्कृति में बद्धमूल है जिसका आज व्यापक प्रसार होता जा रहा है। उन्होंने अमरकांत को युवाओं और बेरोजगारों का सबसे आत्मीय कथाकार बताते हुए कहा कि जब इस देश में रोजगार का सवाल पर आंदोलन आगे बढता जाएगा तब युवाओं को अमरकांत जितना प्रासंगिक और आत्मीय कथाकार उन्हें कोई और नहीं मिलेगा।

उन्होंने कहा कि अमरकांत की कहानियों में घटनाएं बहुत अधिक नहीं घटती। उनकी कहानियों में वातावरण उपस्थित है जो दूसरे कथाकारों से अलग है। वे अपनी कहन, शैली और प्रतिबद्धता को यर्थाथ के साथ प्रस्तुत कर रहे थे।

कथाकार प्रियदर्शन मालवीय ने कहा कि अमरकांत की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।पक्षधरता जान सरोकार की राजनीति के साथ है।

समकालीन जनमत के प्रधान संपादक रामजी राय ने कहा कि नागार्जुन के कहे अनुसार बड़े रचनाकार को पोल खोलन होना चाहिए। आज हालत यह कि जो ओपन है उसको गोपन करने का कम हो रहा है तो यह चुनौती रचनाकारों के सामने है। अमरकांत ने इस चुनौती को स्वीाकर किया। उन्होंने जीवन और समाज में समाये पाखंड, झूठ और बनावटीपन को भेदा, उसके सारे पर्दे गिरा दिए और मुखौटों को उतार दिया। उन्होंने दिखया कि अपने को कुलीन की तरह पेश कर रहे लोगों के भीतर किस तरह की सामंती क्रूरता है। उन्होंने आजादी के बाद देश में पसरते जा रहे कंगाली और उसके कारणों को अपनी रचनाओं के जरिए समाने लाने का काम किया। उनके पात्रों में जीवन के प्रति गहरी जिजीविषा है। तमाम दुश्वारियों के बीच उनके पात्र अपने स्वाभिमान के लिए संघर्ष करते हैं। अमरकांत शोषण के जड़ में जाते हैं और उसके सभी स्वरूपों को बेनकाब करते हैं।

गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात कथाकार शिवमूर्ति ने 45 वर्ष पहले बलिया में अमरकांत जी से मुलाकात और उस दौर में बलिया की साहित्यिक सक्रियता की चर्चा करते हुए कहा कि बलिया का जो बागी तेवर और सांस्कृतिक माहौल मिला उन्हें यहां मिला और कहीं नहीं मिला। बलिया ने ही हमारे अंदर कथाकार का बीज रोपित किया। मेरे उपन्यास और कई कहानियों का आधार बलिया है। यहीं मुझे वे गीत मिले जिन्हें मैंने कई कहानियों में लिया।

गोष्ठी का संचालन कर रहे जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ राम नरेश राम ने कहा कि हिंदी कथा संसार में अमरकांत प्रेमचंद के बाद सबसे ज्यादा प्रामाणिक यथार्थवादी राचनाकार के रूप में जाने जाते हैं। अमरकांत और उनके समकालीन रचनाकारों में भारतीय समाज के यथार्थ की आलोचना का स्वरूप विकसित होता दिखायी देता है। इसमें एक तरफ आधुनिक भारत बनने की बेचैनी दिखायी देती है तो दूसरी तरफ सामंती समाजिक संरख्ना के टूटने की प्रक्रिया में भीतर से नये सामंतवाद के स्वरूप का विकास होता दिखता है। अमरकांत के कथा संसार में इसको सबसे बेहतर तरीके से देखा जा सकता है।

धन्यवाद ज्ञापन जन संस्कृति मंच, बलिया की सदस्य डॉ निशा ने किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। पूरा हाल भरा हुआ था।

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