पटना । भाकपा-माले की बिहार राज्य कमिटी ने देश की जानी मानी इतिहासविज्ञ, पटना विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष, प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता, पीयूसीएल की बिहार राज्य अध्यक्ष तथा जनवादी आंदोलनों की प्रखर समर्थक बुद्धिजीवी प्रो. डेजी नारायण के असमय निधन पर गहरा शोक जताया है और इस मौत को जनवादी आंदोलनों के लिए अपूरणीय क्षति बतलाया है.
भाकपा-माले ने शोक श्रद्जांलि में कहा है कि ऐसे दौर में जब देश में फासीवादी ताकतों ने तमाम किस्म के आंदोलनों से लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को भी अपना निशाना बना रखा है, प्रो. डेजी नारायण का निधन एक ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई करना फिलहाल संभव नहीं दिखता. अभी कुछ दिन पहले हिरासत में की गई फादर स्टेन की संस्थागत हत्या के खिलाफ आयोजित श्रद्धांजलि सभा में उन्होंने कहा था कि संविधान-लोकतंत्र व लोगों के जीने के अधिकार को लेकर चलने वाली लड़ाई को और तेज करना होगा. उन्होंने मजबूती से यूएपीए जैसे काले कानूनों को खत्म करने की मांग उठाई थीं. उन्होंने भीमा कोरेगांव की घटना में फंसाए गए सभी बुद्धिजीवियों की रिहाई के लिए लड़ाई तेज करने का आह्वान किया था. क्या पता था कि वे खुद इतनी जल्दी हम सबको छोड़ कर चली जाएंगी.
प्रो. नारायण ने खुद को महज एकैडमिक दायरे में समेट कर नहीं रखा. हालांकि वे अपने छात्रों के बीच अपनी विद्वता व अद्भुत वक्तृत्व कला के कारण भी खासी लोकप्रिय थीं.
भाकपा-माले व आइसा आंदोलन की कई पीढि़यों का उनसे गहरा जुड़ाव रहा. वे हमारे आंदोलनों की एक सच्ची समर्थक थीं और हर प्रकार से अपना सहयोग प्रदान करते रहती थीं.
विगत दिनों उन्हें रात में अचानक ब्रेन हैमरेज हुआ था. उसके बाद उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया था, जहां उनकी स्थिति लगातार क्रिटिकल ही बनी रही. वे लगातार वेंटिलेटर पर ही रहीं. हैमरेज के बाद ब्लड क्लाॅट हो गया और फेफेड़े ने काम करना पूरी तरह से बंद कर दिया था. अंततः आज दोपहर हृदयाघात से उनकी मौत हो गई.
न्याय व लोकतंत्र की लड़ाई के संघर्ष को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है.
भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने दुख की इस घड़ी में उनके बेटों व परिजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की है.