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भगत सिंह के विचारों का प्रतिरूप: गगन दमामा बाज्यो

अभिषेक मिश्र


संचालक और निर्देशक शिल्पी मारवाह और उनकी टीम के माध्यम से सुखमंच थियेटर अपने सामयिक और संदेशपरक नाट्य प्रस्तुतियों की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास करता रहा है।

इसी कड़ी में विगत 23 मार्च को ‘शहीद दिवस’ के अवसर पर उनके समूह द्वारा प्रसिद्ध रंगकर्मी और लेखक पीयूष मिश्रा के लिखे नाटक ‘ गगन दमामा बाज्यो’ का सफल मंचन किया गया।

भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों, तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों, उनके संघर्ष, उनके त्याग, उनके सपनों और आज की वास्तविकता के साथ उनके विचारों की प्रासंगिकता की झलक दिखाने की दिशा में यह प्रयास काफी सफल रहा।

यह नाटक पीयूष मिश्रा ने सबसे पहले ‘एक्ट वन’ के लिए तब लिखा था जब देश में हिंसा का दामन थामने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही थी। ऐसे में भगत सिंह को केंद्र में रखकर इस नाटक की परिकल्पना की गई थी। ‘गगन दमामा बाज्यो’- गुरु ग्रंथ साहिब से ली गई एक सूक्ति है जिसका अर्थ है, ‘ गगन रूपी नगाड़ा से घोषणा हो चुकी है आज से ही भिड़ जा, बाकी देख लेंगे।’
यह नाटक छात्र, नौजवान, दोस्त, पुत्र, प्रेमी, शांत, मजाकिया, बुद्धिजीवी, क्रांतिकारी और युगद्रष्टा आदि भगत सिंह की विभिन्न छवियों से दर्शकों को रूबरू करवाता है।  वो भगत सिंह जो नास्तिक हैं पर गीता और विवेकानंद का भी अध्ययन करता है

धर्मों के विविध स्वरूपों पर उनकी बहस इसे देखने के उनके एक समग्र दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करती है।

नाटक भगत सिंह के छात्र जीवन के अनुभवों से शुरू होता है जब वो भी गांधी जी से प्रभावित थे। असहयोग आंदोलन में शामिल हुये और उसके अचानक वापस ले लिए जाने से निराश भी। उन्होंने अपनी अलग राह चुनी पर एक संवाद में वो गांधी जी का जिक्र आने पर कर्ण और कृष्ण का भी जिक्र करते हैं जिन्हें उनकी अपनी-अपनी स्थितियों ने एक-दूसरे के सामने ला खड़ा किया था।
नाटक चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारियों की याद दिलाता हमें बाध्य करता है कि हम पुनः उनकी जीवनियों, उनके विचारों से गुजरें, उनके आदर्शों और सपनों को समझें और आसपास देख महसूस करें क्या इन्हीं उपलब्धियों के लिए इन नौजवानों ने अपनी सुख-सुविधा, परिवार, कैरियर, प्रेम और जीवन तक को न्योछावर कर दिया था!

नाटक देखते हुये हम यह सोचने के लिए विवश होते हैं कि उन शहीदों ने जिस शांति, प्रेम, सौहाद्रपूर्ण भारत का स्वप्न देखा था यदि वह पूर्ण न हो पाया है तो उसके दोषी हम सभी, हमारी संकीर्णता और स्वार्थ हैं।

यदि उनसे उबर इस देश को एक आदर्श स्वरूप न दे पायें तो हम सभी अपने शहीदों के प्रति अपराधी हैं। नाटक का लेखन और इसका प्रस्तुतिकरण इस अर्थ में भी सफल है कि यह नाटक जहाँ आपको अपनी ओर से कुछ योगदान करने को प्रेरित करता है तो वहीं इन बलिदानों और उनके स्वप्नों के बिखरने की मौजूदा परिस्थितियों में खुद कुछ ठोस न कर पाने की विवशता का भी अहसास करवाता है।
अंत में भगत सिंह के चंद संवाद जो उनके व्यक्तित्व और देश के भविष्य के प्रति उनके दृष्टिकोण और उनके विचारों की एक झलक प्रस्तुत करते हैं-

भगत सिंह- “जिस्म पर लगे घाव आदमी की ताक़त का सबूत नहीं होते जनाब। ताक़त कहीं और से आती है। ख़ून बहना कोई बड़ी बात नहीं है… वो अपना हो… या सामने वाले का। बड़ी बात ये है कि जिस्म से टपकी हुई एक बूंद आने वाली नस्ल के सारे के सारे खू़न में आग लगा सकती है या नहीं। इनसानी ज़िन्दगी बहुत क़ीमती होती है। हंसते-हंसते उसको फांसी के तख़्ते पे चढ़ा देना हिम्मत का काम ज़रूर है… मगर समझदारी का नहीं। वक़्त और मौक़ा तय किए बग़ैर अपनी जान गंवाना बेवकूफी है। हिन्दुस्तान के स्वाधीनता संग्राम के सौ साल के इतिहास में शायद यही कमी रह गई…”

(शायद यही वक्त और मौका अपनी तरफ से तय किया भगत सिंह ने)

“…बाकी जहां तक आज़ादी का सवाल है… तो बतला दूं कि हिन्दुस्तान को सिर्फ़ आज़ादी की जरूरत नहीं है। और कहीं अगर ये हमें ग़लत तरीके से मिल गई तो मुझे कहने में हिचक नहीं कि आज से सत्तर साल बाद भी हालात ऐसे रहेंगे। गोरे चले जाएंगे… भूरे आ जाएंगे। कालाबाज़ारी का साम्राज्य होगा…घूसखोरी सर उठा के नाचेगी। अमीर और अमीर होते जाएंगे… ग़रीब और ग़रीब… और धर्म… जाति और ज़ुबान के नाम पर इस मुल़्क में तबाही का ऐसा नंगा नाच शुरू होगा…जिसको बुझाते-बुझाते आने वाली नस्लों और सरकारों की कमर टूट जाएगी…”

ये पंक्तियाँ बताती हैं कि युवा क्रांतिकारी भगत सिंह स्वप्नद्रष्टा ही नहीं भविष्यद्रष्टा भी थे। इस देश, इसके नागरिकों, इसके युवाओं को लेकर उनके जो स्वप्न थे वो आज भी अधूरे हैं जिन्हें पूरा करना हमारी साझी ज़िम्मेदारी है…..

(अभिषेक कुमार मिश्र भूवैज्ञानिक और विज्ञान लेखक हैं. साहित्य, कला-संस्कृति, विरासत आदि में भी रुचि. विरासत पर आधारित ब्लॉग ‘ धरोहर ’ और गांधी जी के विचारों पर केंद्रित ब्लॉग ‘ गांधीजी ’  का संचालन. मुख्य रूप से हिंदी विज्ञान लेख, विज्ञान कथाएं और हमारी विरासत के बारे में लेखन. Email: abhi.dhr@gmail.com , ब्लॉग का पता – ourdharohar.blogspot.com)

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