( मोनालिसा को लेकर शताब्दी से भी ज्यादा समय से कई किस्म के विवाद चलते रहे हैं। कई इसे एक साधारण सा चित्र मानते हैं, जिसे मीडिया द्वारा इस कारण से उछाला गया ताकि फ्रांस के लूव्र कला संग्रहालय का नाम हो सके जहाँ यह चित्र प्रदर्शित है। इसके विपरीत कुछ इसे चित्रकला की सबसे नायाब कृति मानते हैं. इस चित्र पर असंख्य कथाओं के साथ-साथ, इस चित्र के तरह-तरह के विश्लेषणों को वर्षों से हम सुनते-पढ़ते आ रहें है. इस बार के तस्वीरनामा में अशोक भौमिक ‘मोनालिसा’ चित्र को अपनी व्याख्या द्वारा दर्शकों को ‘दिखाने’ की कोशिश कर रहे है , जिसे लोग प्रायः ‘ पढ़ने ‘ की (और समीक्षक ‘ पढ़ाने ‘ की ) कोशिश करते हैं .सं. )
विश्व की सबसे ज्यादा चर्चित चित्र ‘मोनालिसा’ को एक श्रेष्ठ चित्रकार की एक श्रेष्ठ कृति के रूप में जाना जाता है . ‘मोनालिसा’ , निस्संदेह शबीह (पोर्ट्रेट) चित्रण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है (चित्र A ).
हालाँकि इस चित्र की ख्याति , चित्र की महिला की रहस्यमय हँसी को लेकर तमाम व्याख्याओं के लिए है पर इन सबों के चलते , हम प्रायः चित्र की अनेक कलात्मक पक्षों को अनदेखा कर देते हैं . इस चित्र में चित्रकार लिओनार्दो दा विन्सी ने दृश्य-चित्र (लैंडस्केप) और शबीह-चित्र (पोर्ट्रेट) को अपनी तमाम बारीकियों के साथ एक ही चित्र में चित्रित किया है.
चित्र का दृश्यचित्र (लैंडस्केप) , महिला के बायें (देखें चित्र-B) और दाहिने (देखें चित्र दो हिस्सों में बँटा दिखता है (देखें चित्र-C) . यहाँ गौर से देखने पर दृश्य चित्र का आकाश का अंश महिला की आँख और कान के ऊपर के हिस्से में है ,जबकि लैंडस्केप की सूखी जमीन का हिस्सा महिला की गर्दन के नीचे से कोहनी तक का हिस्सा है. इन्हीं दोनों के बीच ( महिला के कान से कंधे तक) इस दृश्यचित्र में हरियाली का विस्तार है , जहाँ एक नदी भी दिखती है.
इस दृश्यचित्र के बायें हिस्से के ऊपरी भाग में एक नदी दिखती है (देखें चित्र B-1) जबकि इस अंश के नीचे का हिस्सा मटमैला और भूरे रंग का जमीनी हिस्सा है , जहाँ एक पुराना सा पुल भी दिखाई देता है (देखें चित्र B-2).
महिला के दाहिने हिस्से के दृश्यचित्र में एक सर्पिल सड़क दिखाई देती है जो नदी तट तक जाती है. यह दृश्य काफी ऊँचाई से देखा गया लगता है ,जिसे प्रायः हम ‘ उड़ती चिड़िया की नज़र से ‘ या ‘ बर्ड्स आई व्यू ‘ से देखा हुआ दृश्य कहते है. इस परिप्रेक्ष्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि पृष्टभूमि का यह दृश्य न केवल महिला से काफी दूर ही है बल्कि महिला किसी बहुत ऊँचे भवन की खिड़की के पास बैठी हुई है. इससे इस संभावना को भी एक आधार मिलता है कि यह दृश्यचित्र कोई प्राकृतिक दृश्य न होकर, एक चित्रित पृष्ठपट (बैकड्राप) है , जिसे महिला के पीछे तान कर इस चित्र को बनाया गया है.
इस चित्र की प्रकाश व्यवस्था विशेष रूप से देखने लायक है. चित्र में स्पष्टतः सात प्रकाशित अंश हैं ( देखें चित्र-D) जो मद्धिम से लेकर विभिन्न तीव्रता के स्तर हैं. इस प्रकाश व्यवस्था में केंद्र का हिस्सा सबसे ज्यादा प्रकाशित दिखता है. इस सबसे ज्यादा आलोकित हिस्से के चलते हमारी नज़र ‘ मोनालिसा ‘ के चेहरे पर नहीं टिक पाती. ‘ मोनालिसा ‘ चित्र के आकर्षण का यह एक बहुत महत्वपूर्ण पक्ष है.
‘ मोनालिसा ’ चित्र , चित्ररचना की एक ख़ास शैली ‘ स्फूमातो ‘ का प्रयोग किया गया है जिसमें सीमारेखाओं या आउटलाइन्स का प्रयोग न करते हुए एक ख़ास कोमलता ( धुवें या कोहरे जैसा ) को पैदा किया जाता है . इस चित्र में हम पाते हैं कि महिला के चेहरे पर कहीं भी कोई कठिन रेखा (हार्ड लाइन) नहीं है (देखें चित्र-E) . यहाँ तक कि महिला की भौहें तक नहीं बनाई गयी है. इस महिला के बालों के ऊपर एक हल्की जाली का एक आवरण है, जिसे हम महिला के दाहिनी और कान के पास देख सकते है. चित्र में इसे चित्रित करने में चित्रकार ने सीमारेखा या आउटलाइन का प्रयोग किया है.
चित्र में , रंग प्रयोग के स्फूमातो तकनीक से जिस कोमलता को उभरा गया है,उसके असर को हम चित्र के रंगों को हटा कर , चित्र को काले सफ़ेद में देखने से बेहतर समझ सकते हैं (देखें चित्र E-1) .
‘मोनालिसा’ चित्र की इन खूबियों को देखने-समझने और इसकी तुलना अन्य चित्रों से करने पर हम ‘ मोनलिसा ‘ की विशिष्टता को समझ पाते हैं।
लिओनार्दो दा विन्सी ( 1452-1519)
विश्व कला इतिहास में लिओनार्दो दा विन्सी ( 1452-1519) से बड़ा प्रतिभाशाली चित्रकार शायद दूसरा कोई चित्रकार नहीं हुआ. लिओनार्दो दा विन्सी न केवल एक चित्रकार थे बल्कि वे एक मूर्तिकार, अन्वेषक , गणितज्ञ ,साहित्यकार , वैज्ञानिक संगीतज्ञ, शरीर-वैज्ञानिक, वनस्पतिशास्त्री के अलावा भी कई और अन्य विधाओं में उनकी प्रतिभा के कारण उन्हें याद किया जाता है . उनकी कलाकृतियाँ आज भी कलाकारों को अचंभित करते हैं और छः सौ वर्षों बाद भी उनका मार्ग दर्शन करते हैं.
लिओनार्दो फ्लोरेंस के रहने वाले थे और उनकी कला शिक्षा फ्लोरेंस में ही हुयी थी पर बाद में वे मिलान , रोम ,वेनिस और फ्रांस में रह कर चित्र बनाय. एक चित्रकार के रूप में लिओनार्दो ने सदैव नए नए तरीकों को खोजने और उस पर काम करने का प्रयास किया. हालाँकि आज लिओनार्दो की केवल पंद्रह चित्र ही उपलब्ध हैं पर वे सभी अपने कला गुणों के कारण ऐतिहासिक महत्व के हैं. लिओनार्दो दा विन्ची का बनाया हुआ ‘ द लास्ट सपर ‘ विश्व के अन्यतम धार्मिक चित्रों में है.