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दिवालीखाल में लाठीचार्ज और पुलिस का झूठ 

एक मार्च 2021 को नंदप्रयाग-घाट सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की मांग पर विधानसभा प्रदर्शन कर रहे हजारों महिला-पुरुषों पर दिवालीखाल में पुलिस द्वारा जम कर लठियाँ चलायी गयी.
लाठी चलाने के बाद पुलिस की तरफ से यह प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है कि पहले आंदोलनकारियों ने पथराव किया,उसकी वजह से लाठी चलानी पड़ी. यह सरासर झूठ है.यह वीडियो देखिये. इसमें साफ दिख रहा है कि पुलिस और आंदोलनकारी बैरिकेड पर एक-दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश कर रहे हैं और फिर अचानक पुलिस लाठी चला रही है और दौड़ाने में वह महिला-पुरुष का फर्क भी नहीं कर रही है. वीडियो में आप देख सकते हैं कि इस प्रचंड लाठी चलाने की कार्यवाही के बावजूद मैं,पीछे नहीं हट रहा हूं,वहीं पर खड़ा हूं तो पुलिस के लोग मुझे ज़ोर से धकेल रहे हैं. मैं खाली हाथ हूं,उसके बावजूद पुलिस वाले मुझ पर लठियाँ चला रहे हैं.
मैं चमोली पुलिस को चुनौती देता हूं कि वे घटनाक्रम का असंपादित(unedited) वीडियो जारी करें, मीडिया के लिए उसकी स्क्रीनिंग करें. यदि उसमें यह दिखेगा कि पहले पथराव हुआ और उसके बाद लाठी चली तो हमारे लिए जो सजा तजवीज हो, हम सहर्ष स्वीकार करेंगे. लेकिन यदि पहले लाठी चलाने की बात उनके वीडियो में दिखाई देगी तो क्या चमोली पुलिस और पुलिस अधीक्षक सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का साहस कर पाएंगे ? क्या वे स्वयं झूठी अफवाहें फैलाने का मुकदमा दर्ज करेंगे ?
पुलिस से और खासतौर पर आईपीएस और पीपीएस अफसरों से निवेदन है कि सरकारी की चाकरी करिए पर कम से कम झूठ और अफवाहों के प्रसारकर मत बनिए. याद रखिए कि आप इस देश के, जनता के सेवक हैं. वही जनता जिसे सड़क जैसी मामूली मांग के लिए दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया. आप की प्रतिबद्धता किसी सरकार के प्रति नहीं बल्कि भारत के संविधान के प्रति होनी चाहिए,जिसकी शपथ ले कर आप सेवा में शामिल होते हैं.
अब थोड़ा घटनाक्रम भी जान लेते हैं. घटनाक्रम यूं हुआ कि नन्द्प्रायाग-घाट सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की मांग के लिए तीन महीने से घाट में शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहा है. सड़क डेढ़ लेन बनेगी,यह दो मुख्यमंत्रियों की घोषणा है,जिसमें एक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी हैं,जिनका स्वयं के बारे में दावा है कि वो कोरी घोषणा नहीं करते बल्कि पहले वस्तुस्थिति जान कर कोई बात कहते हैं. सोचिए दो मुख्यमंत्री कहें पर सड़क आधा लेन और नहीं बन पा रही है,क्या गज़ब है !
तीन महीने से आंदोलन चलाने के बाद घाट के हजारों लोग भराड़ीसैण में विधानसभा पर प्रदर्शन करने आए. जंगलचट्टी में बैरियर लगा कर उन्हें रोकने की कोशिश की गयी. लेकिन पुलिस बल कम था और आंदोलनकारी ज्यादा,इसलिए पानी की बौछार चलाये जाने के बावजूद आंदोलनकारी बैरियर पार करने में कामयाब हो गए. पुलिस द्वारा पानी की बौछार चलाये जाने के बावजूद आंदोलनकारी शांत बने रहे. जब आंदोलनकारियों ने बैरियर हटा दिया तो पुलिस के अफसरों ने प्रस्ताव रखा कि हम आपको पैदल वहां ले चलेंगे. आंदोलनकारियों के बैरिकेड पार करने के बाद इस प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं था. मैंने एक पुलिस अफसर से पूछा कि जब पैदल ले जाना था तो बैरिकेड लगाए ही क्यूँ ? इसका कोई जवाब नहीं था. यह आंदोलनकारियों को थकाने और स्वयं के लिए ज्यादा फोर्स इकट्ठा करने के लिए था. त्रिवेंद्र रावत जी के प्रशासन और पुलिस को लगा होगा कि तीन-चार किलोमीटर वह भी चढ़ाई वाले सड़क मार्ग पर लोग पस्त हो जाएंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सरकार और पुलिस यह भूल गयी कि ये पहाड़ी लोग हैं,जो लंबी-लंबी दूरियाँ पैदल तय कर लेते हैं.
दिवालिखाल में विधानसभा,भराड़ीसैण को जाने वाले रास्ते पर बैरिकेड लगा था और भारी पुलिस बल तैनात था. पुलिस बैरिकेड बचाना चाहती थी और आंदोलनकारी विधानसभा जाना चाहते थे. काफी ज़ोर आजमाइश के बावजूद जब आंदोलनकारी पीछे नहीं हटे तो कई राउंड पानी की बौछारें चलायी गयी पर आंदोलनकारी फिर भी डटे रहे.”
यह खींचातान और ज़ोर आजमाइश चल रही थी. इस बीच मैंने पुलिस और प्रशासन के लोगों से पूछा कि कोई जिम्मेदार अधिकारी है,यहां पर ? काला कोट पहने एक सज्जन सामने आए और बोले-मैं असवाल हूं, एसडीएम हूं. मैंने उनसे कहा कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा,हल तो बातचीत से होगा तो आप इन लोगों की बात करवाइए. वो सज्जन बोले-मैं देखता हूं.
यह कह कर मैं भीड़ के बीच लौटा ही था कि पुलिस ने लाठी चलाना शुरू कर दिया,जिसके वीडियो देखे जा सकते हैं. जैसा ऊपर भी मैंने लिखा कि जिस वक्त लाठी चली,उस वक्त बैरिकेड से आगे बढ़ने के लिए आंदोलनकारी पुलिस के साथ ज़ोर आज़माइश कर रहे थे. वीडियो में दिख रहा है कि उस समय कोई पत्थर नहीं चल रहा है.यह भी गौरतलब है कि लाठी चलाने की घटना के बाद प्रशासन की ओर से आंदोलनकारियों से वार्ता का प्रस्ताव किया गया. पाँच लोगों को प्रशासन वार्ता के लिए ले भी गया. लेकिन एसडीएम उनका पास ही बनवाते रहे. प्रशासन का लोगों को वार्ता के लिए ले जाया जाना और लाठी चलाने की घटना के बाद पुलिस की गाड़ी के हूटर से वार्ता के लिए आमंत्रण से सिद्ध है कि सड़क की मांग करने वाले उपद्रवी नहीं आंदोलनकारी थे,जिनके शरीर पर पुलिस की बर्बर लाठियों से चोटें भले ही आई,लेकिन उनका हौसला तब भी नहीं डिगा. हमने तो पुलिस की लठियों का दौर समाप्त होने के बाद उसी बैरिकेड पर जनगीत गाये और भाषण भी दिया. हम गीत गा सकते थे,हमने गीत गाये. पुलिस के एक सीओ जिनका नाम अनुज था,पीपीएस अफसर होने के बावजूद उस बेचारे के पास केवल गालियां थी,जो वह बाद तक भी देते रहे. हम गाली तो नहीं दे सकते थे पर भाषण में बोल आए कि ये आप ही को मुबारक हों !
आंदोलनों के इतने सालों के अनुभव से मैं यह जानता हूं कि पुलिस लाठी चलाने के लिए चाहे कितने ही कुतर्क गढ़ ले,लेकिन लाठी वह सत्ता के इशारे पर ही चलाती है. जब तक सत्ता का इशारा नहीं होता तब तक चाहे परिस्थिति कितनी ही विकट क्यूं ना हो जाये, पुलिस लाठी नहीं चलाती. सत्ता का इशारा हो तो पुलिस तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बना कर लाठी चलाने को सही ठहराने की कोशिश करती है.
इसलिए त्रिवेंद्र रावत जी से निवेदन है कि लोगों को पिटवाया है तो कहिए कि हां हमने पिटवाया, तुमने जो प्रचंड बहुमत दिया, ये उसका इनाम है,सरकार के आखिरी साल में ! यह भी निवेदन है मुख्यमंत्री जी पुलिस से लाठी बेशक चलवाइए पर उनसे झूठ मत बुलवाइए. पुलिस एक सार्वजनिक सेवा है, आपकी पार्टी का आईटी सेल नहीं है,जिससे दो रुपये प्रति ट्वीट की दर से कुछ भी झूठ-सच और अफवाह फैलाने के काम पर लगा दिया जाये.

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