बाढ़ खंड के इंजीनियर ने डीएम को पत्र लिख खनन को अवैध बताया
क्षेत्रीय कांग्रेस विधायक ने मुख्यमंत्री को पत्र देकर खनन पट्टा निरस्त करने की मांग की
छह दिन से ग्रामीण खनन रोकने की माँग को लेकर कर रहे हैं धरना-प्रदर्शन
कुशीनगर जिले में बड़ी गंडक नदी में बालू खनन की अनुमति देकर प्रदेश सरकार और कुशीनगर जिला प्रशासन ने तमकुहीराज तहसील के डेढ़ लाख लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है। इससे पहले से ही नदी के कटान का शिकार 17 किलामीटर लम्बे अहिरौलीदान-पिपराघाट तटबंध (एपी तटबंध) के कटने का खतरा पैदा हो गया है। यदि बालू खनन जारी रहा तो बारिश या उसके पहले ही तटबंध कट सकता है और डेढ़ लाख लोग बाढ़ और कटान के कारण विस्थापित होने के मजबूर हो जाएंगे।
इस खतरे से सिर्फ ग्रामीण ही आगाह नहीं कर रहे हैं बल्कि तटबंध की मरम्मत, बचाव की जिम्मेदारी निभाने वाले बाढ़ खंड के इंजीनियर यही बात कह रहे हैं जिनसे खनन का पट्टा दिए जाने के पहले कोई राय नहीं ली गई। ग्रामीण, स्थानीय जन प्रतिनिधि और इंजीनियर बोल ही नहीं रहे हैं, बड़े अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक खनन रोकने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस मुद्दे पर सभी चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि बालू खनन का पट्टा पाए लोग बहुत ही प्रभावशाली हैं और उनके तार बड़े भाजपा नेताओं व मंत्रियों से जुड़े हुए हैं.
बड़ी गंडक नदी
बड़ी गंडक नदी नारायणी नेपाल से होकर यूपी के महराजगंज और कुशीनगर जिले से गुजरते हुए बिहार जाकर सोनपुर गंगा नदी में मिल जाती है। इस नदी पर बिहार, यूपी और नेपाल की संधि पर बाल्मीकिनगर में बैराज बना है और इससे दो नहरें निकाली गई हैं। एक नहर यूपी के महराजगंज और आस-पास के जिले के लाखों हेक्टेयर भूमि को सिंचित करती है तो दूसरी पश्चिमी बिहार के खेतों को हरा-भरा बनाने में योगदान देती है। इस बड़ी नदी का पाट कई-कई किलोमीटर चौड़ा है। हजारों लोगों के खेत, मकान नदी के फ्लड प्लेन में है। ये खेत बेहद उपजाऊ हैं।
हर वर्ष नदी की बाढ़ से तटवर्ती गांवों के लोग प्रभावित होते हैं। नदी की धारा में जल्दी-जल्दी नाटकीय बदलाव होता है जिसके कारण प्रति वर्ष खेत और लोगों के घर नदी में समा जाते हैं।
एपी तटबंध
इस बड़ी नदी की बाढ़ से लोगों की जिंदगी बचाने के लिए कई तटबंध बनाए गए हैं। इसी में से एक है एपी तटबंध यानि अहिरौलीदान-पिपराघाट तटबंध। यह तटबंध 1958 में बना था। यह तटबंध यूपी के कुशीनगर जिले के सेवरही कस्बे के पिपराघाट से शुरू होकर बिहार की सीमा अहिरौलीदान तक बना है जिसकी लम्बाई 17 किलोमीटर है। यह तटबंध ही लोगों की आवाजाही का सम्पर्क मार्ग भी है हालांकि वर्षो से सड़क की मरम्मत न होने से इसकी हालत बेहद खराब है।
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यह तटबंध कुशीनगर जिले के तमकुहीराज तहसील के लाखों लोगों की जीवन रेखा है। यह तटबंध न सिर्फ उन्हें बाढ़ से बचाता है बल्कि आवागमन सुलभ कराता है। तटबंध के आस-पास अहिरौलीदान, बाघाचैर, नोनिया पट्टी, फरसाछापर, बाघ खास, विरवट कोन्हवलिया, जवही दयाल, बघवा जगदीश, परसा खिरसिया, जंगली पट्टी, पिपराघाट, दोमाठ, मठिया श्रीराम, वेदूपार, देड़ियारी, सिसवा दीगर, सिसवा अव्वल, खैरटिया, मुहेद छापर आदि गांव हैं।
इन गांवों के लोगों की खेती नदी के फ्लड प्लेन में है। यहां से उन्हें अपने मवेशियों के लिए चारा मिलता है। नदी से उन्हें दर्जनों प्रकार की मछली मिलती है जो उनकी आजीविका का आधार है। बारिश और बाढ़ के महीनों के अलावा आठ महीने यह नदी क्षेत्र में कृषि गतिविधियां शबाब पर रहती है।
कटान की व्यथा कथा
इसमें से अहिरौलीदान के एक दर्जन टोले-छितु टोला, बैरिया, खरखूरा, मदरही, नोनिया पट्टी आदि तटबंध के भीतर हैं। ये गांव जब बसे थे तो नदी उनसे काफी दूर थी और बाढ़ के वक्त ही उनके नजदीक नदी का पानी पहुंचता था। वर्ष 2012 से नदी का रूख तटबंध की तरफ मुड़ता चला गया और अब नदी अहिरौलीदान गांव के एक दर्जन टोलों के काफी करीब आ गई है।
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नदी के करीब आते ही इन गांवों के लोगों के खेत और घर नदी में समाने लगे। वर्ष 2017 में नदी ने काफी कटान किया और दर्जनों घर नदी में समा गए।
खरखूंटा गांव के मैनेजर चौहान का पक्का घर नदी की कटान से दिसम्बर माह में पूरी तरह से कट गया। उनका पांच एकड़ खेत भी नदी में समा गया। मैनेजर अब प्लास्टिक के दो छोटे-छोटे टेंट में परिवार सहित रह रहे हैं। यह टेंट भी उन्होंने दूसरे के जमीन में लगाया है। मैनेजर कहते हैं कि उन्होंने घर को नदी में कटता देखा तो मजदूर लगाकर घर को तोड़वा दिया ताकि ईंट बच जाए। उन्हें मजदूरी में ही 30 हजार रूपए खर्च करने पड़े। अपने जमींदोज घर पर खड़े मैनेजर का गला यह सब बताते-बताते रूंध जाता है।
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इसी टोले के विनोद, बलिस्टर चौहान , बाबूलाल चौहान, धर्मेन्द्र चौहान, जितेन्द्र, चन्द्रेश्वर का पक्का घर नदी में कट गया। इस टोले के आठ लोगों का घर कट चुका है और नदी अभी भी कटान कर रही है।
नोनिया पट्टी निवासी पौहारी प्रसाद का घर जून माह में नदी में समा गया। वह अपने तीन भाइयों और मां पाना देवी के साथ दूसरों के घरों में रह रहा है।
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पाना देवी ने बताया की उनकी दो बहुएं मायके चली गईं हैं क्योंकि यहां रहने को जगह नहीं है। अब उसके पास न घर है खेत. इस गांव के अनवत राम, रबड़, डोमा सिंह सहित डेढ़ दर्जन लोगों का घर नदी की कटान का शिकार हुआ है।
अहिरौलीदान ढलवा चौराहे पर चाय की दुकान में पूर्व प्रधान हरिकृष्ण सिंह मिल गए। वह अपने बड़े पक्के का घर नदी की कटान के जद में आने से डरे हुए हैं। वह कहते हैं कि कटान को रोकने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है।
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विरवट कोन्हवलिया के पास नदी ने पिछले वर्ष तटबंध तक को काट दिया। यहाँ का दुर्गा मंदिर नदी में कटकर समा गया। अब तटबंध के इस पार नया मंदिर बना है।
अहिरौलीदान निवासी अरविन्द सिंह बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में 200 से अधिक घर नदी के कटान में विलीन हो गए। सैकड़ों एकड़ खेत भी नदी में समा गए। तटबंध से 300 मीटर दूर तक के घर कट गए। वह कहते हैं कि नदी की एक धारा 2012 से तटबंध की तरफ मुड़ी और अहिरौलीदान के टोले एक-एक कर कटान की जद में आने लगे।
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अहिरौलीदान निवासी अरविन्द सिंह बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में 200 से अधिक घर नदी के कटान में विलीन हो गए। सैकड़ों एकड़ खेत भी नदी में समा गए। तटबंध से 300 मीटर दूर तक के घर कट गए। वह कहते हैं कि नदी की एक धारा 2012 से तटबंध की तरफ मुड़ी और अहिरौलीदान के टोले एक-एक कर कटान की जद में आने लगे।
सबसे पहले बैरिया टोला और डा. ध्रुवनारायण का टोला कटान के दायरे में आया। इसके बाद कटान रूका लेकिन फिर 2015 से कटान शुरू हो गई। दलित बहुल कंचन टोला कटान में पूरी तरह से विलीन हो गया। बेघर हुए लोग तटबंध पर रह रहे हैं। वर्ष 2017 में अक्टूबर माह से कटान और तेज हो गई है। श्री सिंह बताते हैं कि चार राजस्व गांव-हनुमानगंज, शिवरतन राय टोला, नरायनपुर और परसौनी जनूबी टोला के सभी खेत नदी में समा गए हैं।
उन्होंने कहा कि यदि बालू खनन नहीं रूका तो गर्मी के महीने में ही 20 गांवों का अस्तित्व बचाना मुश्किल होगा। वह कहते हैं कि सिंचाई विभाग के इंजीनियर कह रहे हैं कि कटान को रोकने के लिए इस्टीमेट बन गया है लेकिन सरकार से धन नहीं मिला है। इसलिए कोई काम नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि अभी तक सिर्फ बाघाचौर के 18 कटान पीड़ितों को भूमि देकर बसाया गया है। शेष 185 लोगों को मदद के नाम पर बाढ़ के दिनों में चिउरा के अलावा कुछ नहीं मिला।
खनन का पट्टा
एपी तटबंध के नजदीक नारायणी नदी से बालू खनन का पटृटा किए जाने की जानकारी लोगों को तब हुई जब विरवट कोन्हवलिया गांव के पास बड़े पैमाने पर बालू खनन शुरू हो गया। देखते-देखते जेसीबी और पोकलैण्ड मशीनों से तटबंध के काफी करीब 100 से 200 मीटर की दूरी पर बालू खनन होने लगा। बालू ढोने के लिए ट्रैक्टर-ट्रालियों से लेकर 16 चक्का वाले ट्रकों की कतार लग गई। एक-एक दिन में 300 से 400 ट्रक बालू खनन कर बेचा जाने लगा।
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एपी तटबंध बालू ढोने वाले ट्रकों , ट्रालियों की कोलाहल से गूंजने लगा । बालू खनन को देख स्थानीय लोग चकित रह गए क्योंकि इसके पहले कभी भी बड़ी गंडक नदी से इस स्थान पर बालू का खनन नहीं हुआ था।
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यूपी में योगी सरकार बनने के बाद बालू खनन पर रोक लगा दी गई थी और नए सिरे से नई खनन नीति के तहत पट्टों का आवंटन किया गया है। काफी समय तक बालू खनन रूके रहने के कारण बालू के दाम आसमान चढ़ गए हैं और आसानी से बालू मिल भी नहीं रहा है।
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बड़ी गंडक का सफेद बालू बहुत अच्छा माना जाता है। यहां बालू खनन होते ही बालू खरीदने वालों का मजमा लग गया। बालू काफी उंचे दर पर बेचा गया। एक ट्राली बालू का रेट चार हजार रूपए था तो छोटे ट्रक का 20 हजार और बड़े ट्रक का 40 हजार। स्थानीय ग्रामीणों न बताया कि गाड़ियों पर बालू की ओवरलोडिंग भी हो रही है।
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खोजबीन से पता चला कि एपी तटबंध के किनारे बड़ी गंडक नदी से बालू खनन के लिए तीन स्थानों पर पट्टे दिए गए हैं। विरवट कोन्हवलिया में गोरखपुर निवासी रोहन चौधरी ( रिलांयस इन्फ्राबिल्ड ) और देवरिया निवासी नवनाथ मौर्य ( सुप्रयास कंस्ट्रक्शन ) को बालू खनन के लिए 4.046 हेक्टेयर क्षेत्र आवंटित किया गया है। जवही दयाल में महराजगंज जिले के सिसवा बाजार स्थित ग्लोबल इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर को बालू खनन के लिए 4.071 हेक्टेयर क्षेत्र आवंटित किया गया है।
सुप्रयास कंस्ट्रक्शन और रिलांयस इन्फ्राबिल्ड को खनन पट्टा हेतु सहमति पत्र 13 दिसम्बर 2017 को और ग्लोबल इंडिया इन्फ्रास्टक्चर को 12 जनवरी 2018 और को जारी किया गया है।
खनन की अनुमति देने में बाढ खंड के अभियंताओं की सहमति नहीं
खनन पट्टों को अनुमति देते समय पर्यावरणीय खतरों और तटबंध पर पड़ने वाले असर को ध्यान में नहीं रखा गया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि तटबंध की देखरेख करने वाले बाढ़ खंड के अधिशासी अभियंता भरत राम का डीएम को लिखा पत्र। गोरखपुर न्यूज लाइन को बाढ़ खंड के अधिशासी अभियंता भरत राम द्वारा दो फरवरी को डीएम कुशीनगर को लिखा एक पत्र प्राप्त हुआ है।
इस पत्र में बालू खनन को अवैध बताते हुए इसे रोकने की गुहार लगाई गई है। पत्र की प्रति मुख्य अभियंता गण्डक सिंचाई एवं जल संसाधन गोरखपुर, अधीक्षण अभियंता सिंचाई कार्य मंडल-2, पुलिस अधीक्षक कुशीनगर, अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व को भेजा गया है।
इस बारे में 4 जनवरी को गोरखपुर न्यूज़ लाइन ने खबर प्रकाशित की थी.
http://gorakhpurnewsline.com/archives/13061
आठ फरवरी को गोरखपुर न्यूज लाइन ने चीफ इंजीनियर और अधिशासी अभियंता से बात करने की कोशिश की लेकिन दो अभियंताओं ने फोन नहीं उठाया।
आंदोलन
पहले से नदी की कटान से परेशान लोग बालू खनन से होने वाले खतरे से आशंकित हो गए और उन्होंने इसकी जानकारी क्षेत्रीय विधायक एवं कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू को दी। कुछ लोगों ने तटबंध की देखरेख करने वाले गंडक विभाग के इंजीनियरों को भी इसकी सूचना दी।
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कांग्रेस विधायक अजय कुमार लल्लू ने स्थानीय लोगों के सहयोग से 3 फरवरी से विरवट कोन्हवलिया गांव में तटबंध के किनारे धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। उनकी मांग है कि बालू खनन का पटृटा तुरन्त निरस्त किया जाए और तटबंध को मजबूत बनाने का काम शुरू किया जाए। धरना-प्रदर्शन अभी भी लगातार चल रहा है और इसमें सपा के अलावा भाजपा के भी कुछ नेता शरीक हो रहे हैं। हर रोज ग्रामीणों की भीड़ धरना-प्रदर्शन में शामिल हो रही है।
छह फरवरी को धरना स्थल पर बातचीत में अजय कुमार लल्लू ने बताया कि धरना शुरू होने के बाद तमकुहीराज के एसडीएम आए थे। उन्होंने कहा कि बालू का पट्टा निरस्त करना उनके अधिकार में नहीं है। यह कार्य डीएम ही कर सकते हैं। बाढ़ खंड के अधिशासी अभियंता भरत राम ने मौके पर आकर प्रदर्शनकारियों से कहा कि खनन का पट्टा आवंटित किए जाते समय उनके विभाग से सलाह नहीं ली गई है। श्री लल्लू ने बताया कि उन्होंने बालू खनन से तटबंध के कटने-टूटने और लाखों की जिंदगी खतरे में पड़ने के बारे में 3 और 4 फरवरी को मोबाइल से फोन कर खनन मंत्री अर्चना पांडेय, सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह, कुशीनगर जिले के प्रभारी मंत्री मोती सिंह और बाढ़ मंत्री स्वाती सिंह को बता दिया। सभी ने यही कहा कि वे इस मामले को देख रहे हैं लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
कांग्रेस विधायक ने 7 अगस्त को लखनउ जाकर मुख्यमंत्री को भी इस बारे में ज्ञापन दिया है। उनका कहना है कि विधानसभा सत्र में वह इस मामले को प्रमुखता से उठाएंगे। उधर विरवट कोन्हवलिया में ग्रामीण धरना-प्रदर्शन को आठ फरवरी को छठवें दिन भी जारी रखे रहे। उनका कहना है कि आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक बालू खनन का पट्टा निरस्त नहीं कर दिया जाता।
गोरखपुर न्यूज लाइन ने छह फरवरी को एपी तटबंध का दौरा किया। दिन में खनन बंद दिखा लेकिन रात में जेसीबी मशीन फिर से चलने लगी थी। विरवट कोन्हवलिया गांव के दुर्गा मंदिर के पास तटबंध के किनारे ठेकेदारों द्वारा अवैध निर्माण किए जाने की शिकायत भी ग्रामीणों ने की।
( गोरखपुर न्यूज़ लाइन से साभार)
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