डा. बलभद्र और नीतेश कुमार पर हमला करने वाले एबीवीपी नेताओं को को बचा रहा है पुलिस और प्रशासन
तीन सप्ताह से शिक्षक, छात्र और कर्मचारी कर रहे हैं आंदोलन
अनिल अंशुमन, गिरिडीह से
भाजपा शासित राज्य झारखंड में भाजपा और उसके संगठनों को गुंडागर्दी की किस तरह खुली छूट मिली हुई है इसका हालिया उदाहरण है गिरिडिह कालेज के दो शिक्षकों पर हमले की घटना। कालेज के सहायक प्रोफेसर डा. बलभद्र और नीतेश कुमार पर 10 जनवरी की रात एबीवीपी से जुड़े तीन लोगों ने हमला किया, डंडों से पीटा, पर्स और चेन छीनी। दस हजार रूपए हर महीने रंगदारी की मांग करते हुए धमकी दी कि घटना की जानकारी पुलिस को दोगे तो इससे भी बुरा अंजाम भुगतना होगा।
पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज की लेकिन घटना 29 दिन बाद भी उनकी गिरफ्तारी नहीं की गई बल्कि उन्हें जमानत कराने का मौका दिया गया। स्थानीय भाजपा विधायक ने तीनों अभियुक्तों का सार्वजनिक अभिनंदन किया। आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन, कार्य बहिष्कार कर रहे छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, कर्मचारियों को पुलिस ने धौंस पट्टी दी गई। यह अलग बात है कि कोई इससे डरा और झुका नहीं बल्कि बुद्धिजीवियों, लेखकों, शिक्षकों, आम छात्र-छात्राओं और कर्मचारियों ने सत्ता संरक्षित एबीवीपी के उत्पातियों के खिलाफ मजबूत आंदोलन खड़ा कर दिया।
ज्ञान, शील, एकता का नारा देने वाले एबीवीपी का शिक्षकों पर हमले का पुराना इतिहास है। 10 जनवरी को गिरिडीह कालेज भी इसका गवाह बन गया। 10 फरवरी को कालेज में छात्र संघ का चुनाव था। चुनाव में सभी पदों पर एबीवीपी के उम्मीदवार जीते लेकिन उन्हें कड़ी टक्कर मिली। चुनाव सम्पन्न कराने के बाद रात 9. 30 बजे हिन्दी के सहायक प्रोफेसर डा, बलभद्र और बीएड के सहायक प्रोफेसर नीतेश कुमार बाइक से आवास की और लौट रहे थे। डा. बलभद्र कवि हैं और जन संस्कृति मंच की राष्टीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं। रेलवे डाइवर्सन के पास कॉलेज में ठेकेदारी करनेवाला एबीपीपी कार्यकर्ता पीयूष कुमार सिन्हा उर्फ प्रतीक सिन्हा, विक्रम राय और उसके एक और साथी कार से आए और बाइक को टक्कर मार दी। ये लोग कालेज गेट से ही दोनों शिक्षकों का पीछा कर रहे थे। बाइक जैसे ही गिरी इन लोगों ने डंडे से नीतेश कुमार पर हमला कर दिया। डा. बलभद्र ने आगे बढ़कर जब विरोध किया तो उन पर भी डंडे से हमला किया गया। एक हमलावर बोला कि यहां विद्यार्थी परिषद् का राज है, इससे मत टकराना। हमलावरों ने नीतेश कुमार के गले से सोने की चेन और डा. बलभ्रद का पर्स भी छीन लिया जिसमें 2500 रूपए थे। तीनों हमलावरों ने 10-10 हजार रूपए रंगदारी की मांग की और घटना की शिकायत पुलिस से न करने की भी धमकी दी।
हमलावर दोनों शिक्षकों को डंडे से पीट रहे थे कि इसी दौरान विश्वविद्यालय कॉलेज शिक्षक संघ के सचिव प्रो. बालेंदु शेखर और कालेज शिक्षक संघ के सचिव प्रो. मृगेंद्र पीछे से आ गए। उनके बाइक की रोशनी देखकर हमलावर भाग गए। इस हमले में नीतेश कुमार गंभीर रूप से घायल हो गए और डॉ बलभद्र को भी काफी चोटें आयीं। दोनों को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया।
घटना की खबर आग की तरह फैल गयी। घटना की रात ही दोनों शिक्षकों ने सदर थाने में घटना की एफआईआर करायी। दूसरे दिन कॉलेज में अवकाश था। इसके बावजूद बड़ी संख्या में कॉलेज के शिक्षक, कर्मचारी व छात्र काफी रोष के साथ इकट्ठे हुए। सबने मिलकर एक प्रतिनिधि मंडल का गठन किया जो हमलावरों की फौरन गिरफ्तारी के लिए प्रशासन के आला अधिकारियों से मिला लेकिन स्थानीय भाजपा सांसद और विधायक के दबाव पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। दो दिन बाद कॉलेज खुलते ही सभी शिक्षकों व कर्मचारियों ने हमलावरों की अविलम्ब गिरफ्तारी की मांग करते हुए कॉलेज में कार्य बहिष्कार किया और इसकी सूचना विनोबा भावे विश्वविद्यालय को भेज दी। ंदूसरी ओर सैकड़ों छात्र-छात्राएं कॉलेज परिसर में विरोध-पोस्टर लेकर धरने पर बैठ गए और सभा करने लगे। इसी बीच 14 और 15 जनवरी को मकरसंक्रांति का अवकाश हो गया।

अवकाश के बाद जब कॉलेज फिर खुला तो घटना के पांच दिन बाद भी हमलावरों को नहीं पकड़ने से क्षुब्ध शिक्षकों- कर्मचारियों ने पुनः कार्य बहिष्कार किया। छात्रों ने ‘ कॉलेज में गुंडागर्दी नहीं चलेगी , हमें न्याय चाहिए ’ , ‘ कॉलेज में शिक्षा का वातावरण खत्म करने की साजिश नहीं चलेगी ’ , ‘ पुलिस- प्रशासन होश में आओ ’, ‘ हमलावरों को तुरत गिरफ्तार करो ’ का नारा लगाते हुए सैकड़ों छात्र-छात्राएं फिर से धरने पर बैठ गए।
इस घटना से शहर के लोग भी आक्रोशित दिखे। विभिन्न संगठनों से जुड़े लोग, नागरिक, राजनैतिक दलों के नेता व कार्यकर्ता तथा छात्रों के अभिभावक विरोध कार्यक्रम में शामिल होने लगे। इससे भाजपा सांसद, विधायक व नेता बौखला गए और बढ़ते विरोध को दबाने के लिए साजिश करने लगे। सबसे पहले पुलिस का इस्तेमाल किया गया। सदर एसडीओ के नेतृत्व में कई मजिस्ट्रेट के साथ 13 गाड़ियों पर सवार होकर पुलिस बल ने कॉलेज पहुंचकर कर कैम्पस को छावनी में बदल डाला। यह देख शिक्षक-छात्रों में रोष बढ़ने लगा जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गयी। डा. बलभद्र और उनके सहयोगी शिक्षकों की अपील पर छात्र संयमित रहे जबकि पुलिस अधिकारियों का व्यवहार उकसाने वाला था।
17 जनवरी को विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यलय की टीम कालेज में आई। विश्वविद्यालय से टीम ने जारी विरोध कार्यक्रम में आकर समर्थन व्यक्त किया। शांतिपूर्ण आंदोलन को भड़काने के मकसद से सदर एसडीओ ने एक और कोशिश की। वह वह पुलिस बल के साथ कालेज पहुंची और रौब झाड़ते हुए कॉलेज प्रिंसिपल के चेम्बर में जाकर उनकी कुर्सी पर बैठ गयी । उन्होंने आंदोलन कर रहे शिक्षकों के के प्रतिनिधियों को हाजिर होने का फरमान भिजवाया। हमलावरों को पकड़ने की बजाये भाजपा नेताओं के निर्देश पर न्याय मांगने वालों को ही धारा 107 के तहत गिरफ्तार करने की धमकी भी दी। इस पर शिक्षकों ने अपनी गिरफ्तारी की पेशकश कर दी। कालेज में आई विश्वविद्यालय की टीम ने भी पुलिस की इस हरकत का विरोध करते हुए बड़े अफसरों के पास लिखित विरोध पत्र देकर एसडीओ पर कार्रवाई की मांग की। विभिन्न राजनितिक दलों ने पुलिस के इस पक्षपातपूर्ण रवैये और अपराधियों को संरक्षण देनेके विरोध में प्रेस कांफ्रेंस कर पुतला दहन कार्यक्रम किया। आंदोलन के दौरान विद्यार्थी परिषद से जुड़े कई छात्र-छात्राओं व शिक्षकों ने अपने संगठन की तीखी भत्र्सना की। कुछ लोगों ने स्वयं को परिषद से अलग कर लिया।
गिरिडीह में झारखण्ड के बाहर से आयी एक बड़ी आबादी व स्थानीय सामाजिक संरचना में ‘ फूट डालो , राज करो ’ की चालबाजियों के बूते इस इलाके से कई बार भाजपा सांसद और विधायक की सीट जीतती रही है। संघ-भाजपा और उसके संगठनों ने इलाके के एकमात्र गिरिडीह कॉलेज पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए छात्र राजनीति का इस्तेमाल किया। लगभग 10 हजार से भी अधिक छात्र-छात्राओं के इस कॉलेज के शैक्षिक वातावरण को सिर्फ इसलिए खराब करने की कोशिश की गई ताकि यहां के छात्रों में किसी भी प्रकार की स्वस्थ चेतना और पठन-पाठन की कैम्पस संस्कृति का विकास न हो सके। डा. बलभद्र 2008 में यहां हिंदी प्राध्यपक बन कर आये। उन्होंने छात्र-छात्राओं को नियमित पढ़ाने के साथ-साथ उनमें पढ़ने की रूचि-दृष्टि पैदा करने की मुहिम शुरू की। विशेष कर कॉलेज में हमेशा से उपेक्षित रखे गए आदिवासी, दलित और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं से घनिष्ठ शैक्षिक संवाद कायम कर वह उनके चहेते शिक्षक बन गए। सही ढंग से सोचने- समझने, पढ़ने और तर्क-विश्लेषण की प्रेरणा प्रेरणा भरने वाले एक आत्मीय व सबको सदा सहयोग देने वाले शिक्षक के रूप में डा. बलभद्र की पहचान है। इस बदलते शैक्षिक और नए वैचारिक परिदृश्य से बौखलाये संघियों द्वारा की गयी इस कायरतापूर्ण कार्यवाही ने उन्हें और अलगाव में ही डाला है। जिन दिनों जेएनयू में छात्रों के आंदोलन के समर्थन में यहां के आईसा के छात्रों ने अभियान चलाया था तो इसी कॉलेज में परिषद्-संघियों ने नारा लगाया था-गिरिडीह कॉलेज को जेएनयू नहीं बनाने देंगे। उस वक्त भी डा. बलभद्र को निशाना बनाने की कोशिश की गई थी।
डा. बलभद्र के हमलावरों को सत्ता के इशारे पर पुलिस-प्रशासन ने गिरफ्तार नहीं ही किया और उन्हें अग्रिम जमानत करा लेने का पूरा अवसर दिया। वारंट होने के बावजूद तीन दिन बाद ही जब स्थानीय भाजपा विधायक ने इस घटना के आरोपियों का सार्वजनिक तौर पर अभिनदंन कार्यक्रम किया। कालेज में परीक्षाएं शुरू होने से आंदोलन फिलहाल स्थगति है लेकिन शिक्षकों, छात्र-छात्राओं व कर्मचारियों का क्षोभ कम नहीं हुआ है। परीक्षा समाप्त होने के बाद एक बार फिर आंदोलन की बात हो रही है।
झारखण्ड जन संस्कृति मंच ने हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी
गिरिडीह कॉलेज के हिंदी प्राध्यापक एवं कवि प्रो. बलभद्र व बी.एड प्राध्यापक नीतेेश कुमार पर 10 जनवरी को हुए घातक हमले की घटना की जांच करने के लिए झारखण्ड जन संस्कृति मंच के प्रदेश सचिव अनिल अंशुमन के नेतृत्व में जसम के राष्ट्रीय पार्षद जावेद इस्लाम व युवा कवि लालदीप समेत कई लेखक-पत्रकार गिरिडीह पंहुचे। जसम प्रतिनिधिमंडल ने घटना की पूरी जानकारी ली और इसके खिलाफ आंदोलन कर रहे शिक्षकों, कर्मचारियों, छात्र-छात्राओं व विभिन्न संगठनों को जुझारू के लिए बधाई दी। प्रतिनिधिमंडल ने डा. बलभद्र व नीतेश कुमार पर हमला करनेवालों दोषियों के खिलाफ अविलम्ब कार्रवाई करने, शिक्षा का बेहतर माहौल बनानेवाले शिक्षकों के सम्मान व सुरक्षा की गारंटी करने, कॉलेज में छात्र – राजनीति और नेताओं के नाम पर धौंस-धमकी से शैक्षिक वातावरण को खराब करने वालों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने, हमलावरों को संरक्षण देनेवाले पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। मंच ने कहा कि यदि उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई तो नागरिक समाज , लेखकों, बुद्धिजीवियों , छात्र व उनके अभिभावकों के साथ मिलकर वृहद आंदोलन किया जाएगा।
2 comments
Comments are closed.