समकालीन जनमत
साहित्य-संस्कृति

केदारनाथ सिंह के काव्य वैशिष्टय का अनुकरण नहीं किया जा सकता: प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों ने प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि दी
गोरखपुर, 21 मार्च। प्रेमचन्द पार्क में आज दोपहर बड़ी संख्या में जुटे साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों ने प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि दी और यादें साझा की। यह आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक संघ, प्रेमचन्द साहित्य संस्थान, भोजपुरी संगम, संगम, सुधा संस्मृति संस्थान, इप्टा, अलख कला समूह आदि ने मिल कर किया था।

श्रद्धांजलि सभा में साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि अपने समकालीन कवियों-रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना से केदारनाथ सिंह की कविता थोड़ी मुश्किल जरूर थी लेकिन वह अपने समकालीन कवियों में सबसे अधिक लोकप्रिय थे। तीसरा सप्तक के कवियों में भी सबसे ज्यादा लोकप्रियता केदार जी को मिली। इसके कई कारण हैं लेकिन उनका वृहद रूप से लोगों से जुड़ाव भी उनकी कविता की लोकप्रियता का एक कारण लगता है। केदारनाथ सिंह की कविता की बुनावट को पकड़ने के लिए बहुत गहराई में जाना पड़ता है। नई पीढ़ी में उनकी सबसे ज्यादा नकल की गई लेकिन उनके काव्य का वैशिष्टय ऐसा है कि उनका अनुकरण नहीं किया जा सकता। उनका अनुकरण न हो पाया है न आगे होने वाला है। वह बहुत गहरे स्तर पर भावुक व्यक्ति थे। इसलिए दुनिया, समाज और लोगों से उनका गहरा लगाव बना। वह दुर्लभ व्यक्तित्व के थे। वह बहुत सहज थे लेकिन उतने ही स्वाभिमानी भी थे। मेरा उनसे 55 वर्षों का साथ रहा है। गांव की गलियों से लेकर लंदन तक की यात्राओं के संस्मरण का खजाना संजोए हुए हूं।

 

वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने केदारनाथ सिंह से जुड़े स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि जीवन और समाज बहुत जटिल है और इसको साहित्य में लाना उससे भी जटिल है लेकिन केदार जी की रचनाओं में जीवन और समाज की जटिलताएं सहज रूप में अभिव्यक्त हुई हैं। केदारनाथ सिंह के मित्र कवि गिरधर करूण ने कहा कि उन्होंने अपना बड़ा भाई खो दिया है। उनसे उनका संवाद हमेशा भोजपुरी में होता था। वह उनसे खूब बहस करते थे।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अनन्त मिश्र ने कहा कि केदारनाथ सिंह  के निधन से वह स्तब्ध हैं। उनके पास स्तब्धता के अलावा कोई शब्द नहीं है। उनके न रहने से नीम के नए पत्तों की कोई आस नहीं रह गई है। वह नहीं हैं लेकिन उनकी नाद शिष्यों में मौजूद रहेगी। वरिष्ठ कवि महेश अश्क ने कहा कि केदार जी की कविता और व्यक्तित्व एक जैसा हैं। केदार जी की बोलचाल की सहजता और कविता की सहजता में कोई अन्तर नहीं हैं और यही उनको अन्य रचनाकारों से अलग करती हैं। उन्होंने उनसे भाषा को बरतने का सलीका सीखा। उनमें मेलों, चिड़ियों, पेड़ों के प्रति बच्चों जैसा आकर्षण था।

आलोचक कपिलेदव ने कहा कि केदारनाथ सिंह साहित्यिक समाज और साहित्य से सीधा सरोकार न रखने वालों के बीच समान रूप से लोकप्रिय थे। उनके जैसा कवि और व्यक्ति होना, सभी के लिए हसरत है। उनकी जैसी मूलगामी संवेदना, चेतना प्राप्त कर ही कोई बड़ा कवि हो सकता है। वह भावनिष्ठ कवि थे। उनकी कविता ह्दय की भूमि पर घटित होती है न कि विचारों की भूमि पर।

वरिष्ठ कवयित्री डा. रंजना जायसवाल ने पडरौना में पढ़ाई के दौरान उनसे और उनके परिवार से जुड़े संस्मरण सुनाए और कहा कि केदार जी उनके पिता तुल्य थे। वह जब भी मिलते तो उन्हें पडरौना की बेटी कह कर परिचय कराते। कवयित्री रागिनी यादव ने केदारनाथ सिंह की दो कविताओं को पढ़ उन्हें याद किया।
जन संस्कृति मंच के अशोक चौधरी ने संगठन की श्रद्धांजलि वक्तव्य को पढ़ा और कहा कि केदारनाथ सिंह की कविता ‘ आदमी के उठे हुए हाथों ’ की तरह हिन्दुस्तानी अवाम के संघर्षों को थामे रहेगी। बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष एवं गोरखपुर जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रत्नाकर सिंह ने कहा कि केदारनाथ सिंह बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने उनकी भोजपुरी के प्रति असीम लगाव व प्रेम का उल्लेख किया। सामाजिक कार्यकर्ता मान्धाता सिंह ने फिराक सम्मान के कार्यक्रमों में केदारनाथ सिंह की उपस्थिति के संस्मरण सुनाए। वरिष्ठ पत्रकार जगदीश लाल श्रीवास्तव ने कहा कि जब जेएनयू पर सत्ता और दक्षिणपंथी संगठन देशद्रोही होने का आरोप लगाते हुए हमला कर रहे थे तो केदारनाथ सिंह ने गोरखपुर में ही एक संगोष्ठी में कहा कि उन्हें जेएनयू पर गर्व है और यह कहने के लिए वह कोई भी आरोप, इल्जाम सुनने को तैयार हैं।

श्रद्धांजलि सभा में डा. आनन्द पांडेय, प्रलेस के भरत शर्मा, रवीन्द्र मोहन श्रीवास्तव, जय प्रकाश मिश्र आदि ने अपनी यादें साझा करते हुए श्रद्धांजलि दी। सभा में फतेहबहादुर सिंह, अजीत सिंह, बैजनाथ मिश्र, राजेश साहनी, विकास, जय प्रकाश यादव, वेद प्रकाश, राजाराम चौधरी, अमोल, बेचन सिंह पटेल, कथाकार रवि राय, कुमार अभिनीत आदि उपस्थित थे। संचालन जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह ने किया।

Related posts

Fearlessly expressing peoples opinion