कल 28 जनवरी गोरख स्मृति दिवस की पूर्व संध्या पर हैदराबाद विश्वविद्यालय में गोरख को उनकी कविताओं एवं गीतों के माध्यम से याद किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत गोरख के मशहूर गीत ‘जनता के आवे पलटनिया हिलेला झकझोर दुनिया’ से हुआ। इसके बाद साथी संध्या ने गोरख के जेएनयू के दोस्त रहे पत्रकार उर्मिलेश का उनपर लिखा संस्मरण ‘प्रेम, करुणा और तकलीफ़ का उमड़ता समंदर’ (जो उनकी किताब ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ में संकलित है) का पाठ किया। इसके बाद ‘गुलमिया अब हम नाहीं बजइबो अजदिया हमरा के भावेले’ की प्रस्तुति हुई।
इस गीत के प्रस्तुति के बाद गोरख की कुछ कविताओं का पाठ किया गया। ‘कला कला के लिए’ का पाठ साथी पुष्कर बंधु ने, ‘ख़ूनी पंजा’ का पाठ साथी लोनी ने और ‘कैथरकला की औरतें’ का पाठ संध्या ने किया। कविता पाठ के बाद ‘समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई’ का गायन हुआ।
इस गीत के बाद इस कार्यक्रम में हिंदी के वरिष्ठ कवि ‘लाल्टू’ जी ने ‘सपन मनभावन : बेहतर समाज का सपना दिखलाता हमारा गोरख’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि इस फासीवादी समय में हमें एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है। उन्होंने गोरख का जिक्र करते हुए कहा कि मेरी पहल पत्रिका में छपी कविता को पढ़कर गोरख ने मुझे पत्र लिखा था पर संसाधनों की अपर्याप्तता के चलते उनसे मिलना न हो सका। वे एक क्रांतिकारी कवि थे।
व्याख्यान के बाद गोरख के रूपक-गीत ‘मैना’ का गायन हुआ। कार्यक्रम की समाप्ति साथी शक्ति ने उपस्थित सभी साथियों का शुक्रिया अदा करते हुए किया। इस कार्यक्रम का संचालन विनोद ने किया।
गोरख के गीतों की प्रस्तुति हर्ष, सुभाष, रामनाथ, शक्ति, मिंटू, रजनीश, योगेंद्र ने किया। इसके साथ ही इस कार्यक्रम में डॉ भीम सिंह, तबरेज़, अतुल, यश, मनीषा, गौरव, शुभम के अतिरिक्त लगभग पचास से ज्यादा श्रोता अंतिम तक इस कार्यक्रम से जुड़े रहे।