( तस्वीरनामा की 12 वीं कड़ी में प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक 1878 में ब्रिटिश चित्रकार विलियम फ्रेडरिक यमीस (1835 -1918 ) द्वारा बनाए गए चित्र ‘ और तुमने अपने पिता को आखिरी बार कब देखा ’ के बारे में जानकारी दे रहे हैं )
कैनवास पर बने इस विख्यात तैल चित्र का शीर्षक जितना नाटकीय है , उतना ही नाटकीय यह चित्र भी है. चित्र का शीर्षक ” और तुमने अपने पिता को आखिरी बार कब देखा ? ” वास्तव में किसी लम्बी अवधि के नाटक का अंतिम संवाद सा लगता है जो एक बेहद गम्भीर प्रश्न के रूप में उच्चारित हुआ है और जिसके उत्तर में मंच पर एक खामोशी ठहर सी गई है.
1878 में ब्रिटिश चित्रकार विलियम फ्रेडरिक यमीस (1835 -1918 ) द्वारा बनाए गए इस चित्र में यह ‘ खामोशी ‘ या यों कहें कि जवाब का इंतज़ार , मानो चित्र में उपस्थित हर एक चरित्र और इस चित्र के दर्शक आज भी कर रहे हैं.
इस चित्र के संदर्भ को लेकर ब्रिटेन के लोगों का एक बड़ा हिस्सा , लम्बे समय तक ‘ विक्टोरियाई युग के मूल्यों ‘ को याद करता और उस पर गौरवान्वित होता रहा है. चित्रकार विलियम फ्रेडरिक यमीस (1835 -1918 ) निस्संदेह अपने इस चित्र में उस विशिष्ट ‘शाही’,’ अभिजात ‘ या ‘ खानदानी ‘ ( ब्लू ब्लड) तत्व को रेखांकित करते हैं .
यह चित्र अपने ऐतिहासिक संदर्भों के लिए तो प्रसिद्ध है ही , पर इसके चित्र-गुणों को भी गम्भीरता से देखने से इसे हम एक महान चित्र के रूप में भी पाते हैं.
पहले हम इस चित्र के ऐतिहासिक संदर्भों को जानने की कोशिश करेंगे .
सदियों से इंग्लैंड में राजा के अधीन कई राजपुरुष या सामन्त हुआ करते थे जिनके पास ‘ जनता पर राज करने के लिए , राजा द्वारा प्रदत्त समस्त क्षमताएँ होती थी ‘ या वे (सामन्त) ऐसा मानते थे । ऐसी तानाशाही का विरोध करते हुए ब्रिटेन के संसद के सदस्य ( जो इन राजवाड़ों सामन्तों द्वारा ही नियुक्त किए जाते थे ) , कानूनों में सुधार कर लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करना चाहते थे. चार्ल्स प्रथम के शासन काल में इंग्लैंड में सामन्तों, सांसदों और उनके समर्थकों के बीच संघर्ष ने विकराल रूप लिया था , जिसे हम इतिहास में इंगलिश सिविल वार या 1649 का ब्रिटेन के गृह युद्ध के नाम से जानते हैं .
इस गृह युद्ध में सामन्तों के कई महलों पर सांसदों ( जिसे इतिहास में ‘पार्लियामेंटेरियन ‘ कहा गया है) और उनके साथ जनता के एक बड़े दल जिसमे सेना के लोग भी शामिल थे, ने कब्ज़ा कर लिया था. इस चित्र में ऐसे ही एक महल का ज़िक्र हैं , जहाँ सामन्त की पत्नी, उसकी दो बेटियाँ और एक बेटा तो महल में उपस्थित हैं और महल से भागे सामन्त की खोज में चित्र में जिरह करते सात और लोग हैं. प्रश्न पूछने वाला सबसे पहले एक बच्चे से उसके भगोड़े पिता के बारे में मानो सवाल कर , उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है.
” और तुमने अपने पिता को आखिरी बार कब देखा ? “
चित्रकार , चूँकि बच्चे के राजसी गुणों को इस चित्र के माध्यम से महिमा मण्डित करना चाहता है , इसीलिए इस चित्र में उसने एक शाही परिवार के बच्चे के लिए इस सवाल को एक जटिल समस्या के रूप में प्रस्तुत किया है. तत्कालीन ‘ विक्टोरियाई ‘ शाही परिवार के बच्चों में ईमानदारी और सच बोलना एक ऐसा गुण मना जाता था , जो ( मानो ) उन्हें (ही) विरासत में हासिल होती थी . इसलिए चित्र में चित्रकार ने इस बच्चे को एक ऐसे संकट के क्षण में एक गहरी दुविधा के रु-ब-रु ला खड़ा किया है. अगर सामन्त का बेटा झूठ का सहारा लेकर गलत उत्तर देता है , तो उसका पिता तो शायद बच सकता है , पर अगर वह सच बोलता है तो विद्रोहियों का दल उसके पिता को खोज कर कैद कर लगा.
सच और झूठ के बीच इस द्वंद्व के जरिए चित्रकार , वास्तव में बच्चे के ‘ शाही ‘ होने के वैशिष्ट्य को सामने लाने की कोशिश करता है , साथ ही किसी पूर्व निर्धारित निष्कर्ष तक भी नहीं ले जाता है. इसके कारण , बच्चे के ठीक पीछे उसकी दोनों बहने और माँ के चिंतामग्न चहरों में अनिश्चयता का भाव साफ दिखाई देता है.
बावजूद इन सबके , इस चित्र में सांसदों की ज्यादतियाँ नहीं दिखती. चित्र के बीचोबीच कुर्सी पर पैर पसारे बैठा आदमी अपने नारंगी रंग के कमरबंध के कारण सेना का अधिकारी लगता है , पर वह खामोश है और जिरह में सक्रिय हिस्सा नहीं लेता दिख रहा है. बच्ची , जिसकी पूछताछ अभी होनी है , रो रही है पर एक सैनिक ने उसके पीठ पर भरोसे का हाथ रखा है. क्या सैनिक के इस व्यवहार से चित्रकार गृह युद्ध के दौरान सैनिकों के बीच सामन्तों के प्रति गहरी वफादारी को रेखांकित करना चाह रहा है ? चित्र के चार शाही पात्रों को अलग से पहचाना जा सकता है , जबकि शेष सातों पात्र साधारण पृष्ठभूमि से आये लगते हैं. सवाल पूछ कर उत्तर की प्रतीक्षा करता बेहद गम्भीर व्यक्ति के चेहरे में क्रूरता नहीं है और उसका इरादा उस बच्चे को आहत करना भी नहीं लगता है.
जिरह के इस मुहूर्त को चित्रकार विलियम फ्रेडरिक यमीस ने बखूबी इस चित्र में उकेरा है. चित्र में मानो सब कुछ इस सवाल के उत्तर पर आकर रुक गया है. तीनों शाही महिलाएँ जहाँ बच्चे के जवाब सुनने के लिए बेचैन हैं , वहीं अन्य सात लोगों में उत्तर के हड़बड़ाहट नहीं देती. चित्र के बीच कुर्सी पर बैठा सेना का अधिकारी ( नारंगी कमरबन्द बाँधे) लगभग सुस्ताने की मुद्रा में है. बच्ची की पीठ पर अपना हाथ रखे सैनिक हो या चार जिरह करने वालों के पीछे खड़ा सिपाही हो , दोनों की इस चित्र में कोई सक्रिय भूमिका नहीं दिखती. इस प्रकार , एक दूसरे के आमने सामने खड़े, मूल जिरह करने वाला आदमी और नीले कपड़ों में मेज़ के सामने खड़ा बच्चा ही इस चित्र का केंद्र बिंदु बन जाता है. यह इस चित्र का एक ऐसा पक्ष है जो चित्र को बिना किसी ज्ञात संदर्भ के भी महान बनाता है.
चित्र के केंद्र में मशाल की नीली लौ के मानिंद तना बच्चा निस्संदेह चित्र का सबसे महत्वपूर्ण पात्र है , जो बच्चा तो है पर कमजोर या निरीह कतई नहीं . उसमें आत्मत्याग की उतनी ही हिम्मत है , जितनी पलटवार की . चित्रकार ने उसे एक शाही वंश के आगामी पीढ़ी का प्रतिनिधि नायक के रूप में पेश करने में कहीं चूक नहीं की है . पर बावजूद इन सबके , यह चित्र किसी का न तो पक्ष लेता है और न ही किसी निष्कर्ष तक पहुँचने की कोशिश करता है.
चित्रकार विलियम फ्रेडरिक यमीस (1835 -1918 ) का चित्र ” और तुमने अपने पिता को आखिरी बार कब देखा ? ” कैनवास पर तैल रंग से बने इस चित्र की ऊंचाई 51.57 इंच है जबकि चौड़ाई 99.02 इंच है. चित्र के इस आकर के चलते राज महल के कक्ष की विशालता का पता चलता है. चित्र में कोई भी पात्र एक दूसरे आड़े नहीं आता है , लिहाज़ा ग्यारह पात्रों वाले इस चित्र की यह खासियत महल के इस कक्ष के के विस्तृत स्पेस को बखूबी पेश करता है. चित्र में , कमरे के प्रकाश का उत्स नहीं दिखता पर स रौशनी से कमरे के फर्श का एक खास हिस्सा प्रकाशित है. इस प्रकाश और शाही वस्त्रों की चमक के चलते , बच्ची और मेज के पास खड़ा बच्चा , कमरे में उपस्थित और दूसरों से ज्यादा प्रकाशित हैं.
चित्र में रंगों का प्रयोग सीमित हैं , पर सैनिक के भाले पर बँधे कपड़े का लाल रंग , चित्र में अन्यत्र कहीं न दिखने के कारण एक दिलचस्प प्रयोग के रूप में दर्शक के सामने आता हैं . इस चित्र में व्याप्त खामोशी की एक और वजह , अधिकांश पात्रों के एक ही सतह पर होने के कारण भी है . चित्र के इस अंश को देखने से हम इस पक्ष को और बेहतर समझ सकते हैं. चित्र के इस विशेष प्रयोग के चलते चित्रकार ने इन पात्रों को न केवल स्थिर बनाया हैं , उन्हें एक स्तर या सतह पर संयोजित कर एक जरूरी ठहराव भी दिया है. चित्र का जो जादुई प्रभाव दर्शकों पर पड़ता है , वह निस्संदेह असाधारण है और कहना न होगा , कि ऐसे चित्र कला इतिहास में हमें बहुत कम ही देखने को मिलते है.
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