पूर्वांचल के जिले आजमगढ़ की दो लोकसभा सीटों पर कल मतदान होना है। जिसमें एक आजमगढ़ की चर्चित लोकसभा सीट है, जिससे स्वर्गीय मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं । उनके सामने 2022 के उपचुनाव में सपा से सीट छीन लेने वाले भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ भाजपा के प्रत्याशी हैं। दूसरी सीट लालगंज है, जो सुरक्षित सीट है। 2019 में भी भाजपा यह सीट बसपा की संगीता आजाद से हार गई थी। हालांकि 2014 में नीलम सरोज वहां से आजादी के बाद पहली बार भाजपा का खाता खोलने में सफल रही थीं।
दस विधानसभा वाले इस जिले में पिछले विधानसभा चुनाव में सभी दस सीट सपा के खाते में गई थीं। आजमगढ़ में 25 तारीख को मतदान होना है। पिछले तीन दिनों से दोनों लोकसभा क्षेत्र में घूमते हुए यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि यहां कोई मतदाता साइलेंट नहीं है। लोग मुखर होकर बोल रहे हैं। वह मुद्दों पर खुलकर बोल रहे हैं और अपना पक्ष बताने से भी परहेज नहीं कर रहे।
आजमगढ़
आजमगढ़ शहर से फैजाबाद रोड पर सेहदा गांव की मौर्या बस्ती से लेकर निषाद बस्ती या शहर में पन्नालाल कॉलोनी सिविल लाइंस में खटीक समुदाय के सब्जी बेचने वाले नौजवान। इन सब के लिए रोजगार और महंगाई बड़ा मुद्दा है जिसके साथ आरक्षण और संविधान का मसला जुड़ जा रहा है। नौजवान अनिल मौर्य जो बागवानी का काम करते हैं कहते हैं कि कोई भर्ती नहीं है हो रही। हमारे गांव में किसी पढ़े-लिखे लड़के के पास नौकरी नहीं है। सभी लोग पटरी दुकानदार या शहर में जाकर कुछ छोटा-मोटा धंधा करते हैं। पिछली बार सब ने एकमत होकर भाजपा को वोट किया था इस बार हमारे समुदाय का वोट बंट गया है भाजपा और सपा में। अनिल मौर्य के बात की ताकीद भालचंद्र मौर्य ने भी की।
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सड़क के दूसरी तरफ निषाद बस्ती है जिसे आम तौर पर भाजपा का समर्थक माना जाता है। एक महिला से पूछने पर कि चलिए घर नहीं मिला लेकिन राशन तो मिल रहा वे फट पड़ती हैं “ का खाली पिलाने घोर के पीए से जिनगी चल जाई” । वहीं लोटन निषाद बोल पड़ते हैं “अबकी सीढ़ी बदले के बा” बाद में सपष्ट करते हैं कि इस बार बदल देना है। बीएससी तीसरे वर्ष के छात्र राकेश प्रजापति जो रानी सराय मोड़ पर चाय दुकान चलाते हैं और पहली बार अपने वोट का प्रयोग करेंगे, साफ कहते हैं गठबंधन को वोट देंगे। यह सरकार कुछ नहीं कर रही। उनकी चाय की दुकान पर बैठे लोग कहते हैं कि “इस बार सूद सहित वापस किया जाएगा”। मेरे पूछने पर क्या मतलब हुआ, वह कहते हैं कि पिछली बार सपा को हरा दिया गया था इस बार ब्याज जोड़ लीजिए एक लाख से ज्यादा वोट से जिता कर भेजा जाएगा।
जीयनपुर बाजार के पास लाटघाट में दंत चिकित्सक डाक्टर शिवकुमार, जो दलित समुदाय से आते हैं, वह एक मुश्किल की तरफ इशारा करते हैं। कहते हैं कि आजमगढ़ में सपा से दलितों का पुराना अंतर्विरोध है । यादव ग्रामीण हिस्से में दबंग है। इसलिए दलित वोटर संविधान पर आसन्न खतरे को समझ तो रहा है लेकिन यदि कांग्रेस होती तो पूरा दलित समुदाय इंडिया गठबंधन के पक्ष में होता।अभी उसका 10 से 15 फीसदी ही सपा में जाएगा। जबकि बसपा ने ऐसा मुस्लिम प्रत्याशी दिया है जिसको अपने घर खानदान का भी पूरा वोट नहीं मिलेगा, जो मिलेगा वह जाटव का ही मिलेगा।
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आजमगढ़ की सीट पर एमवाई समीकरण अपने आप में जिताऊ समीकरण है यदि उसमें बिखराव नहीं होता है। आजमगढ़ लोकसभा के उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली जिन्हें 2022 में 2 लाख 65 हजार वोट मिला था, अब सपा के एमएलसी हैं। उस उपचुनाव में सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव मात्र 8000 वोट से हारे थे। इस चुनाव में अति पिछड़ी जातियों चाहे वह मौर्य-कुशवाहा हों या प्रजापति या अन्य अति पिछड़ी जातियां, उनके भीतर आक्रोश और विभाजन दिख रहा। लाभार्थी का नैरेटिव बहुत कमजोर पड़ा है।
आजमगढ़ की राजनीति को पिछले 10 सालों से नजदीक से देख रहे अध्यापक दुर्गा सिंह कहते हैं कि आजमगढ़ में विपक्ष की राजनीति केंद्र में रही है । जिसके पीछे समाजवादियों और वामपंथियों के संघर्ष की यहां गहरी जड़े हैं। जरूर आज हम उसे जातीय समीकरणों में देख रहे हैं पर उसके भीतर यही चेतना है इसलिए यहां आज का विपक्ष निश्चित रूप से भारी पड़ेगा।
लालगंज (सु)
सुबह 8:30 बजे आजमगढ़ डीएम आवास के सामने से टौंस नदी पार करते हुए लालगंज सुरक्षित सीट के कस्बे निजामाबाद के चौराहे पर पहुंचता हूं । यह काफी पुराना कस्बा है और सिक्ख गुरु गोविंद सिंह के प्रवास तथा मिट्टी के काले बर्तनों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है।
चौराहे पर दिहाड़ी मजदूरी इकट्ठा हो रहे हैं और स्थानीय लोग भी हैं। बातचीत शुरू होते ही एक अधेड़ सज्जन बोल उठते हैं “ हे बाबू ₹500 का नोट तोड़ावा त सांझी ले ओकर पता ना लगैला, बाजार जा त रहरी का दाल और सरसों तेल खरीदे में अंखिए सफेद हो जात बा, मसूरिका त 400 से 600 न बा लेबर मिस्त्री क। कइसे चली उहो रोज ना मिलैले सौ जनी इहाँ अहियैं त 70 जना बिना काम के वापस चल जाइहैं”। यह सारे मजदूरों का सामूहिक दुख है यानी महंगाई और बेरोजगारी।
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बातचीत के बीच में ही एक सज्जन आकर बैठ जाते हैं और विकास की बात करने लगते हैं लेकिन लोग उन पर झपट पड़ते हैं । शहर से जोड़ने वाली सड़क जिससे मैं होकर आया था, उस पर एक कमेंट आता है कि पुल के बाद ऐसी सड़क है कि महिला के गर्भ से बच्चा बाहर आ जाए। मैं थोड़ा तफसील जानना चाहता हूं तो पता चलता है, यह सड़क पहले राज्य के कोष से बनती थी लेकिन अब प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क के तहत आ गई है। जिसका बजट केंद्र से होता है, यह स्थानीय लोग बताते हैं। इसी बाजार में पान की दुकान चलाने वाले अति पिछड़ी जाति के गौर बिरादरी के नौजवान इस सरकार से काफी नाराज हैं।
मूलत: ग्रामीण मतदाताओं वाली इस सीट पर आजादी के बाद से भाजपा जरूर 2014 में जीत गई लेकिन 2019 में उसे बसपा की संगीता आजाद ने हरा दिया था। हालांकि अब वह भाजपा में है और तब सपा बसपा का गठबंधन था। इस बार भी भाजपा ने अपनी पुरानी प्रत्याशी नीलम सोनकर को खड़ा किया है जबकि सपा ने बसपा में रहे दो बार के सांसद दरोगा सरोज को और बसपा ने बीएचयू की अंग्रेजी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर इंदू चौधरी को प्रत्याशी बनाया है।
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यहां मुकाबला दिलचस्प है। जहां बसपा को कम से कम अपना कोर वोट बचाना है क्योंकि लंबे समय तक बसपा में रहे और अब सपा प्रत्याशी दरोगा सरोज की बसपा के कैडरों और समर्थकों से घनिष्ठ संबंध हैं। लोगों की बात मानें तो जरूर यहां बसपा को कुछ वोट मिलेंगे लेकिन वह मुकाबले को मजबूत त्रिकोणीय संघर्ष में ले जा पाएगी, इसमें शक है । कारण है कि पिछली बार उनके कोर वोटर के अलावा मुस्लिम और यादव मतदाता जिनकी लोकसभा में अच्छी उपस्थिति है, उसमें कोई विभाजन नहीं दिखता।
नीचे तक ग्रामीण इलाकों में बसपा भाजपा के इशारे पर काम कर रही है, अपने बल पर नहीं है , यह प्रचार सुनाई पड़ता है। बसपा के कैडर पार्टी बचाने के लिए जरूर अपील कर रहे हैं लेकिन उन समुदायों में गहरी निराशा है। आरक्षण और संविधान का सवाल भी उनके भीतर नीचे तक गया है, खासकर पढ़े लिखे नौजवान अपने समुदाय के भीतर इस बहस को तेजी से चला रहे हैं।
आजमगढ़ की सीट की तस्वीर जहां इंडिया गठबंधन के पक्ष में साफ दिखाई पड़ती है वहीं यहां मुकाबला कांटे का है।