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धरने में उठी आवाज -चुनाव से पहले अधूरे वादों को पूरा करे हेमंत सरकार  

रांची। झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा 10 सितम्बर को रांची में राज भवन के समक्ष आयोजित धरने में राज्य के विभिन्न जिलों से 2000 से अधिक लोग शामिल हुए। लोगों ने  “ भाजपा हटाओ, झारखंड बचाओ” और “हेमंत सोरेन सरकार, जन मुद्दों पर वादा निभाओ”  का नारा लगते हुए हेमंत सोरेन सरकार से अधूरे वादों को चुनाव से पहले पूरा करने की मांग की।

धरने की शुरुआत में मंथन ने कहा कि 2019 के विधान सभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन दल  ने अपने घोषणा पत्र में अनेक जन मुद्दों पर कार्यवाई का वादा किया था। पिछले 5 वर्षों में राज्य सरकार ने जन अपेक्षा के अनुरूप कई काम किये है लेकिन अनेक महत्त्वपूर्ण वादे अभी भी अपूर्ण है।

बिरसा हेमब्रम ने कहा कि पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा राज्य की 22 लाख एकड़ गैर-मजरुआ व सामुदायिक ज़मीन को लैंड बैंक में डाल दिया गया था। बिना ग्राम सभा से पूछे, लैंड बैंक से ज़मीन का आवंटन विभिन्न सरकारी और निजी परियोजनाओं के लिए किया  जा रहा है। झामुमो ने इसे रद्द करने का वादा किया था लेकिन इस पर सरकार चुप्पी साधी हुई है।

जेम्स हेरेंज ने कहा इसी प्रकार भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन, 2017 के तहत निजी व सरकारी परियोजनाओं के लिए बिना ग्राम सभा की सहमति व सामाजिक प्रभाव आंकलन के बहुफसलीय भूमि समेत निजी व सामुदायिक भूमि का जबरन अधिग्रहण हो रहा है।

पश्चिमी सिंहभूम से आये हेलेन सुंडी ने सवाल किया कि क्या अपनी चुनी हुई सरकार आदिवासियों का अस्तित्व खत्म होने का इंतजार कर रही है ?

अजय एक्का ने कहा कि यह दुःख की बात है कि इस सरकार में भी संसाधनों और स्थानीय व्यवस्था पर पारंपरिक ग्राम सभा के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए पेसा की नियमावली नहीं बन पाई। वन अधिकारों पर संघर्ष करने वाले जौर्ज मनिपल्ली ने कहा कि राज्य सरकार वन पट्टों के आवंटन के बड़े-बड़े दावे कर रही है लेकिन राज्य के हजारों निजी व सामुदायिक दावे लंबित हैं।  सरकार ने घोषणा की थी कि 9 अगस्त 2024 को हर ज़िले में 100-100 सामुदायिक वन पट्टों का वितरण किया जायेगा लेकिन आज तक एक भी नहीं हुआ है।

लातेहार से आए प्रणेश राणा ने कहा कि वन विभाग सदियों से खेती कर रहे ग्रामीणों पर फर्जी मामले दर्ज कर रही है। आदिवासी समुदायों की  मूल समस्याओं के साथ-साथ राज्य में दलित समुदाय भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।

सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन के धरम वाल्मीकी ने बताया कि महज़ जाति प्रमाण पत्र और सीवर सेफ्टी टैंक में हों रही मौत, ये मुख्य संघर्ष है। अनेक दलित युवा प्रमाण पत्र न बनने के कारण पढाई व रोज़गार से वंचित हो रहे हैं. हालाँकि राज्य सरकार ने भूमिहीन परिवारों के जाति प्रमाण पत्र के लिए एक प्रक्रिया बनाकर रखी है, लेकिन वो इतनी जटिल है कि प्रमाण पत्र मिलना ही बहुत मुश्किल है।

लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता ज़्याँ द्रेज़ ने याद दिलाया कि आदिवासी-दलितों के लिए फर्जी मामले और सालों तक जेल में विचाराधीन बन के बंद रहना भी एक बड़ी समस्या है। गठबंधन दलों ने घोषणा पत्र में वादा किया था कि लम्बे समय से जेल में बंद विचारधीन कैदियों को रिहा किया जायेगा. लेकिन इस पर किसी प्रकार की कार्यवाई नहीं हुई।

धरने में लोगों ने आदिवासी-दलित बच्चों में व्यापक कुपोषण के मुद्दे को भी उठाया। सोमवती देवी ने कहा कि हेमंत सोरेन सरकार ने पांच सालो में कई बार घोषणा किया कि मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी में बच्चों को रोज़ अंडे दिए जायेंगे. लेकिन पांच साल गुज़र जाने के बाद भी सरकार बच्चों की थाली में अंडा नहीं दे पाई है।

धरने में लोगों ने कहा कि रघुवर दास सरकार की जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध 2019 में झामुमो गठबंधन को जनता का व्यापक जनसमर्थन मिला था. इसके बाद पिछले पांच साल में भाजपा व केंद्र सरकार लगातार राज्य सरकार को गिराने की कोशिश करती रही.

भारत जोड़ो अभियान के योगेन्द्र यादव ने कहा की लगातार राज्य में साम्प्रदायिकता फ़ैलाने की कोशिश हो रही है. जनता तो डबल बुलडोज़र भाजपा राज नहीं चाहती है. लेकिन हेमंत सोरेन सरकार को जन मुद्दों पर सच्चाई और प्रतिबद्धता के साथ कार्यवाई कर के जनता के संघर्ष का साथ देना होगा।

धरने के अंत में झारखंड जनाधिकार महासभा ने मुख्यमंत्री के नाम  मांग पत्र दिया गया, मांग पात्र में विधान सभा चुनाव से लैंड बैंक रद्द करने, भूमि अधिग्रहण कानून (झारखंड) संशोधन, 2017 रद्द करने, लंबित व्यक्तिगत और सामुदायिक वन पट्टों का वितरण करने, ईचा-खरकाई डैम, लुगु बुरु पॉवर प्लांट समेत सभी जन विरोधी परियोजनाओं को रद्द करने,  पेसा नियमावली को अधिसूचित कर कड़ाई से लागू करने, दलितों को जाति प्रमाण पत्र व भूमि पट्टा का आवंटन करने, आंगनवाड़ी व मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडे देने  और लम्बे समय से जेलबन्द विचाराधीन कैदियों को रिहा करने की मांग की गई।

धरने में अजय एक्का, आलोका कुजूर, अंबिता किसकू, अंबिका यादव, बा सिंह हेस्सा, बिलकन डांग, बिरसा हेमब्रम, धरम वाल्मीकि, जौर्ज मौनिपल्ली, हेलेन सोंडी, जयपाल सरदार, जेम्स हेरेंज, ज़्याँ द्रेज़, कुमार चंद मार्डी, मंथन, मारगरेट, नंद किशोर गंझु, मेरी निशा हंसदा, प्रवेश राणा, प्रफुल लिंडा, पुष्कर महतो, प्रवीर पीटर, राजा भारती, रिया पिंगुआ, रिजीना टोप्पो, रोज़ खाखा, सोमवती देवी, सुरेंद्र राम, सिराज दत्ता, विमल सिंह, योगेन्द्र यादव समेत कई वक्ताओं ने बात रखी।

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