भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के 26 अक्तूबर के सम्बोधन ने सरकार और केन्द्रीय बैंक के बीच के गम्भीर मतभेदों को सतह पर ला दिया है।
डाॅ0 आचार्य ने अपने तीखे सम्बोधन में कह दिया था कि, ‘‘जो सरकारें केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान नहीं करतीं उन्हें देर-सवेर वित्तीय बाजारों के गुस्से का सामना करना ही पड़ता है, अर्थव्यवस्था ख़ाक हो जाती है और फिर सिर्फ उस दिन के लिये पश्चात्ताप करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता जब इस नियामक संस्था की अनदेखी की गयी थी।’’
इसके दो दिन बाद केन्द्रीय वित्तमंत्री ने निष्क्रिय आस्तियों में अत्यधिक वृद्धि के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक को जिम्मेदार ठहरा कर आग में घी डाल दिया।
भारतीय जनता पार्टी नीत राजग सरकार द्वारा ‘भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता का अपमान करने’ के लिये उसपर हमला करने में विपक्ष ने जरा भी देर नहीं की।
पूर्व वित्तमंत्री यशवन्त सिन्हा ने ट्वीट किया कि इस सरकार ने ‘भारतीय रिज़र्व बैंक की खटिया खड़ी करने के लिये कमर कस ली है।’
रेडिफ.काॅम के उत्कर्ष मिश्रा से बात करते हुये सिन्हा ने कहा, ‘‘रास्ता सिर्फ एक ही बचा है, यह सरकार चली जाय, यह गवर्नर चला जाय। भारतीय रिज़र्व बैंक में शान्ति तभी लौट सकती है।’’
आपके ख्याल से भारतीय रिज़र्व बैंक और वित्त-मंत्रालय के बीच इस रस्साकशी का खास कारण क्या है ? कुछ भी हो, सरकार की दखलंदाजी तो बहुत पुरानी है। अब क्या बदल गया है?
यह एकदम अप्रत्याशित स्थिति है। सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक को निर्देश दे, यह तो स्पष्ट रूप से अप्रत्याशित है। पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ। इस सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और उसकी व्यवस्था में पूरी तरह से अविश्वास का प्रदर्शन किया है। और इसी लिये गवर्नर के पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
क्या उनके इस्तीफे से भारतीय रिज़र्व बैंक के लिये हालात और भी बदतर नहीं हो जायेंगे और सरकार को खुलकर खेलने का मौका नहीं मिल जायेगा ?
वे (सरकार) फ़ौरी तौर पर कामयाब तो हो जायेंगे पर आखीर में नापाक मंसूबों को मुँह की खानी ही पड़ेगी। और जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि गवर्नर की बची-खुची इज़्जत बची रह जायेगी।
डाॅ0 ऊर्जित पटेल की नियुक्ति राजग ने की है, इससे मौजूदा कलह और भी आश्चर्यजनक हो गया है……..
एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है, ‘‘मामूली कीट भी पलटवार करता है।’’ तो कीट ने पलटवार कर दिया है। यही तो केन्द्रीय जाँच ब्यूरो में भी हुआ है।
आपकी नज़र में ‘सरकार को केन्द्रीय बैंक को निर्देश जारी करने का अधिकार देनेवाले भारतीय रिज़र्व बैंक एक्ट की धारा 7’ का इस्तेमाल सरकार क्यों कर रही है? इसका भारतीय रिज़र्व बैंक पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
यह भारतीय रिज़र्व बैंक की साख को पूरी तरह से बरबाद कर देगा। इससे भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता चैपट हो जायेगी। ऐसी स्थिति कभी आनी ही नहीं चाहिये कि सरकार को धारा 7 का इस्तेमाल करना पड़े। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर को अपना नज़रिया समझाने में सरकार बुरी तरह नाकाम रही है।
क्या जिस तरह से डाॅ0 आचार्य ने सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक के बीच के मतभेदों को उजागर किया वह ठीक था ?
जब सरकार ने निर्देश जारी कर ही दिये तो गवर्नर या डिप्टी गवर्नर के पास विकल्प ही क्या बचा था?
एक ओर तो सरकार बढ़ती हुयी निष्प्रयोज्य आस्तियों पर इतना हायतौबा मचा रही है और दूसरी ओर भारतीय रिज़र्व बैंक को मज़बूर कर रही है कि….
ठीक, जेटली सफेद झूठ बोल रहे हैं। ध्यान देने का विन्दु यह है कि, 2014 में संसद में उन्होंने जो आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया था उसे देखिये। और उन्होंने वहाँ क्या कहा था? निष्प्रयोज्य आस्तियां रु0 2.14 लाख करोड़ हैं। और अब वह कह रहे हैं कि यह रु0 8.5 लाख करोड़ है। क्या उन्होंने संसद को 2014 में गुमराह नहीं किया था? और यह बयान देने के लिये उन्होंने चार साल इंतज़ार क्यों किया?
आर्थिक सर्वेक्षण पढ़कर मेरे जैसा आदमी भी आश्चर्यचकित था क्योंकि उस आर्थिक सर्वेक्षण में उन्होंने अपने दोस्त चिदम्बरम का बचाव किया था और संप्रग सरकार के आर्थिक कुप्रबन्धन के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
अब चार साल बाद उनके ज्ञान-चक्षु खुल गये हैं। वह सरासर झूठ बोल रहे हैं।
और अगर किसी को निकाल बाहर किया जाना चाहिये तो वह हैं वित्तमंत्री, क्योंकि उन्होंने अर्थव्यवस्था का घालमेल करके रख दिया है। उन्होंने रिश्तों (सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक के बीच के) को तार-तार कर दिया है। वह सबकुछ चलाते हैं, सिवाय वित्त के।
तो भारतीय रिज़र्वब बैंक के लिये अब इससे बाहर निकलने का रास्ता क्या बचा ?
रास्ता सिर्फ एक ही बचा है, यह सरकार चली जाय, यह गवर्नर चला जाय। भारतीय रिज़र्व बैंक में शान्ति तभी लौट सकती है।
( रेडिफ.काॅम से साभार अनुवादः दिनेश अस्थाना )
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