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गंगा प्रसाद का जीवन श्रमिक से सर्वहारा बुद्धिजीवी में रूपान्तरण की कथा है

लखनऊ में गंगा प्रसाद स्मृति दिवस का आयोजन

लखनऊ। लेनिन पुस्तक केन्द्र के प्रबन्धक साथी गंगा प्रसाद के दूसरे स्मृति दिवस का आयोजन लखनऊ के लेनिन पुस्तक केन्द्र में हुआ। जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के आरम्भ में कामरेड गंगा प्रसाद के चित्र पर माल्यार्पण किया गया।

इस अवसर पर वक्ताओं ने गंगा प्रसाद के जीवन व कर्म पर अपने विचार रखे तथा उनके साथ की स्मृतियों को साझा किया। दूसरे सत्र में कवियों ने तानाशाही और फासीवाद के विरोध में अपनी कविताएं सुनायी।

इस अवसर पर कवि व जसम के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर का कहना था कि गंगा प्रसाद का जीवन विद्रोही से क्रान्तिकारी तथा  श्रमिक से सर्वहारा बुद्धिजीवी में रूपान्तरण की कथा है। वे कम्युनिस्ट आदर्शों में तपे ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपना सारा जीवन श्रमिक आंदोलन और लेनिन पुस्तक केन्द्र के माध्यम से वामपंथी-जनवादी विचारों व संस्कृति के प्रचार-प्रसार को समर्पित कर दिया। सोवियत समाजवाद के पतन के बाद जब समाजवाद पर वैचारिक हमला तेज था, गंगा प्रसाद ने लेनिन पुस्तक केन्द्र की महती जिम्मेदारी संभाली। बड़े ही सृजनात्मक तरीके से इसका संचालन किया। इसमें उनका विजन दिखता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने माने नाटककार राजेश कुमार ने की। उनका कहना था सोवियत संघ के विघटन से पूंजीवाद को पहल का मौका मिला। इतिहास के अन्त की बात कही गयी। उस दौर में गंगा प्रसाद जी ने विचारों को लोगों तक ले जाने का जो काम किया, उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। आज का दौर ज्यादा खराब है, भयावह है। फासीवाद ने अपना पैर समाज, राजनीति और संस्कृति में जमाया है। संस्कृति के क्षेत्र में वे हावी हैं। उनके आदमी बैठे हैं। वे महापुरुषों के अधिग्रहण में लगे हैं। हमारे नायक गायब हो रहे हैं। गंगा जी को याद करने का मतलब है कि हम अपने वैचारिक केन्द्र का निर्माण करें। उसे आगे बढ़ायें।

इस मौके पर प्रगतिशली महिला एसोसिएशन, एपवा की जिला संयोजक मीना सिंह, जसम लखनऊ के संयोजक श्याम अंकुरम, रेल कर्मचारियों के नेता मधुसूदन मगन, एक्टू के नेता सुरेन्द्र प्रसाद, कामरेड सूरज प्रसाद आदि ने भी अपनी बात रखी। संचालन कवयित्री विमल किशोर ने किया।

वक्ताओं ने इस बात को रेखांकित किया कि लकवा के आघात के बाद उनके पास जो जीवन बचा था तथा शरीर के अन्दर जो भी क्षमता शेष थी, उसका उपयोग वे वामपंथी राजनीति और संस्कृति के लिए करना चाहते थे, उस स्वप्न के लिए करना चाहते थे जिसे युवा दिनों से वे देखते चले आ रहे थे और उन्होंने ऐसा किया भी। उन्होंने जिस रास्ते का वरण किया वह कठिनाइयों से भरा था। वहां पाना नहीं खोना था। आज के समय में गंगा प्रसाद जैसे लोग दुर्लभ होते जा रहे हैं। उनका जीवन और कर्म हमलोगों के लिए अनुकरणीय है, उससे बहुत कुछ सीखना चाहिए।

इस मौके पर गंगा प्रसाद के परिवार के लोग भी शामिल थे जिनमें उनका बेटा संजय सिंह और अश्विनी सिंह तथा बेटी शशि बाला थी। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में कविताएं पढ़ी गयी। कवियों ने अपनी कविता के विविध रंगों से परिचित कराया। कविता पाठ करने वालों में अशोक श्रीवास्तव, मोती लाल प्रधान, मधुसूदन मगन, फरहान महदी, शिवा रजवार, विमल किशोर, कल्पना पाण्डेय, कौशल किशोर आदि प्रमुख थे।

ज्ञात हो कि गंगा प्रसाद का निधन 4 अप्रैल 2017 को लखनऊ में हुआ। उनके नेतृत्व में लेनिन पुस्तक केन्द्र लखनऊ शहर के बौद्धिक व सांस्कृतिक विमर्श की ऐसी जगह थी जहां नियमित रूप से गोष्ठियां, बैठकें, बहस-मुबाहिसा जैसी गतिविधियां होती। लेखक, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता और बौद्धिक यहां आते और यहां होने वाले कार्यक्रमों में हिस्सा लेते।

हरेक साल 22 अप्रैल को लेनिन पुस्तक केन्द्र अपना स्थापना दिवस मनाता जिसमें व्याख्यान, कविता पाठ, नाटक आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम होते। इस केन्द्र पर होने वाले कार्यक्रमों में पंकज बिष्ट, आनन्द स्वरूप वर्मा, अखिलेश मिश्र, कामतानाथ, मुद्राराक्षस, मोहन थपलियाल, उर्मिल कुमार थपलियाल, रूपरेखा वर्मा, शोभा सिंह, रमेश दीक्षित, वन्दना मिश्र, शिवमूर्ति, अजय सिंह, अनिल सिन्हा, अजन्ता लोहित, ताहिरा हसन, महेश प्रसाद श्रमिक, तश्ना आलमी, प्रभा दीक्षित, राजेन्द्र कुमार, गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ, जुगल किशोर, राकेश, वीरेन्द्र यादव, शकील सिद्दीकी, भगवान स्वरूप कटियार, राजेश कुमार, चन्द्रेश्वर जैसे अनगिनत लेखकों, बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ंका आना हुआ। इस जीवन्तता के केन्द्र में गंगा प्रसाद थे।

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