नई दिल्ली। देश की स्वतंत्रता के साथ ही विभाजन की त्रासदी जुड़ी हुई है और जो बहुत अधिक गहरी है। इस त्रासदी को स्वयं प्रकाश जैसे समर्थ कथाकारों ने अपने साहित्य में प्रभावी और यथार्थ ढंग से दर्शाया है जो बताता है कि यह केवल एक घटना होकर नहीं रह जाती बल्कि इसके आयाम कहीं अधिक गहरे हैं।
यह बातें प्रसिद्ध आलोचक और अम्बेडकर विश्वविद्यालय में हिन्दी आचार्य प्रो. गोपाल प्रधान ने कथाकार स्वयं प्रकाश की पाँचवीं पुण्यतिथि पर ” स्वयं प्रकाश: एक मूल्यांकन ” पुस्तक लोकार्पण में स्वयं प्रकाश की कहानियों ‘पार्टीशन’ और ‘क्या तुमने कभी कोई सरदार भिखारी देखा ?’ के संदर्भ में कही।
उन्होंने कहा कि भारतीय राजनीति और समाज में ‘अन्य ‘ को जिस प्रभावशाली और यथार्थ रूप से स्वयं की कहानियाँ दर्शाती हैं वैसा अन्यत्र नहीं है। प्रभाकर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का सम्पादन वरिष्ठ आलोचक प्रो ए. अरविंदाक्षन ने किया है।
चर्चा में किरोड़ीमल महाविद्यालय में हिन्दी आचार्य प्रो. नामदेव ने समकालीन हिंदी कहानी में यथार्थ चित्रण की सहजता के लिए स्वयं प्रकाश की कथा उपलब्धियों को महत्त्वपूर्ण बताते हुए उनकी प्रारम्भिक कहानी ‘ नीलकांत का सफर ‘ का विश्लेषण किया। प्रो. नामदेव ने इस कहानी में वर्णित मामूली घटनाक्रम की गहरी अभिव्यंजना और यथार्थवादी चित्रण की सराहना की। उन्होंने कहा कि स्वयं प्रकाश जी की लेखनी ने कहानियों के साथ साथ उपन्यासों और नाटकों से समाज के ऐतिहासिक पहलुओं को बड़े सटीक तरीके से उजागर किया है।
हिन्दू कालेज के डॉ. पल्लव ने स्वयं प्रकाश से अपने आत्मीय संबंधों को याद करते हुए कहा कि हिन्दी कहानी में अच्छाई की खोज के लिए स्वयं प्रकाश को अनूठा लेखक माना जाएगा। बड़ी संख्या में कहानियाँ लिखने और समाज की विषमताओं का चित्रण करने के बावजूद उनके यहाँ खलनायक और बुरे पात्र नहीं आए हैं। डॉ. पल्लव ने उनकी पुस्तक ‘ धूप में नंगे पाँव ‘ को आत्मकथात्मक पुस्तकों में उल्लेखनीय बताया जहां किसी भी तरह के कलुष से बचते हुए वे अपने जीवन का चित्रण करते हैं। डॉ पल्लव ने प्रो. अरविंदाक्षन की पुस्तक का स्वागत करते हुए कहा कि जिस समय हमारे समाज में आलोचना के मूल्यों का ह्रास हो रहा है तब साहित्य और संस्कृति में आलोचना की जरूरत और महत्व बढ़ जाता है।
इससे पहले प्रभाकर प्रकाशन के संपादक अंशु चौधरी ने स्वागत करते हुए अरविंदाक्षन की पुस्तक का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि इस मूल्यांकन पुस्तक में स्वयं प्रकाश जी की समग्र रचनाओं, जैसे उपन्यास, नाटक, कहानियाँ और संस्मरण पर आधारित दो दर्जन से अधिक विश्लेषणात्मक लेख हैं। उन्होंने कहा कि इन लेखों के अतिरिक्त पुस्तक में स्वयं प्रकाश जी की दो आत्मकथात्मक रचनाओं और राजीव कुमार के साथ उनका लंबा संवाद भी शामिल किया गया है।
कार्यक्रम में सुपरिचित लेखक और रंगकर्मी इरशाद खान सिकंदर, असित जोशी सहित युवा विद्यार्थियों-शोधार्थियों और प्रतिष्ठित साहित्यकारों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। कार्यक्रम के अंत में प्रभाकर प्रकाशन के निदेशक नीहारिका ने आभार प्रदर्शन किया। आयोजन स्थल पर लगाईं गई पुस्तक प्रदर्शनी की पाठकों ने सराहना की।