समकालीन जनमत
स्मृति

कमलिनी दत्त का निधन भारतीय कला और सांस्कृतिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है

कमलिनी दत्त को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि

भारत की प्रसिद्ध टीवी प्रोड्यूसर, केंद्रीय दूरदर्शन आर्काइव की निदेशक, चर्चित नृत्य निर्देशक, भरत नाट्यम की कुशल नर्तक तथा शास्त्रीय कलाओं, दर्शन, धर्म, सौंदर्यशास्त्र और साहित्य की विदुषी कमलिनी नागराजन दत्त का निधन भारतीय कला और सांस्कृतिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। आज 27 अप्रैल 2025 को सुबह 7.45 बजे एम्स , दिल्ली में उनका निधन हो गया।

 कमलिनी नागराजन दत्त का जन्म 1950 में हुआ था। वे लगभग तीन दशक तक भारतीय दूरदर्शन में सक्रिय रूप से कार्य करती रहीं। उन्होंने नृत्य और संगीत से संबंधित कई बेहतरीन कार्यक्रमों का निर्माण और निर्देशन किया। बचपन में ही उनका दूरदर्शन से रिश्ता बन गया था। वे भारतीय दूरदर्शन की पहली बाल कलाकार थीं। दूरदर्शन में उन्होंने प्रशासकीय जिम्मेवारियों का अत्यंत कुशलता से निर्वाह किया। आखिरी दौर में जब उन्हें केंद्रीय दूरदर्शन अभिलेखागार का निदेशक बनाया गया, तो वे भूमिगत स्थानों में नमी के वातावरण में फेंक दिये गये भारतीय संगीत, नृत्य, साहित्य और नाटक से संबंधित दिग्गज शख्सियतों की रिर्काडिंग की विरासत को बचाने के लिए योद्धा की तरह जुट गयीं। कई टेपों में फफूंद लग चुके थे, वहां कीड़े-मकोड़े भी थे। लेकिन उनके नेतृत्व में मीडिया प्रोफेशनल्स और तकनीकी विशेषज्ञों की टीम ने कई महत्वपूर्ण सामग्री को बचाने में कामयाबी पायी।

उनके योगदान पर केंद्रित एक आलेख में मालिनी नायर ने लिखा है कि कमलिनी दत्त न होतीं तो दूरदर्शन अपनी कुछ सबसे मूल्यवान धरोहरें हमेशा के लिए खो देता। उनके अनुसार दूरदर्शन अभिलेखागार का कार्यभार संभालते समय कमलिनी जी का यह आंतरिक आदर्श था कि ‘आपका कचरा हमारा खजाना है।’ और उन्होंने अपने कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद पूरी लगन, प्यार और जुनून के साथ विरासत के संरक्षण और उद्धार का कार्य किया। उन्होंने भारतीय कला और साहित्य-संस्कृति के प्रेमियों को सचमुच कचरे से बहुमूल्य खजाना निकालकर उपलब्ध कराया। यामिनी कृष्णमूर्ति, कृष्णन नायर, बेगम अख्तर, हबीब पेंटर, निखिल वागले, लच्छू महाराज, मल्लिकार्जुन मंसूर से संबंधित कई पुरानी सामग्री और दूरदर्शन के स्वर्ण युग के यादगार कार्यक्रमों के साथ-साथ उन्होंने समकालीन संगीत, नृत्य और साहित्य की प्रतिभाओं के सृजन को भी संजोने का कार्य किया।

वे भारतीय दूरदर्शन के आधी सदी के इतिहास की साक्षी थीं। शास्त्रीय कलाओं के साथ संप्रेषण के नये माध्यमों और आर्काइविंग के क्षेत्र में विकसित होती नई तकनीक की संभावनाओं पर उनकी निगाह रहती थीं। उन्होंने इनका कुशलता के साथ उपयोग भी किया।

कमलिनी दत्त ने सात साल की उम्र से नृत्य करना शुरू कर दिया था। उन्होंने तंजावुर की एक देवदासी लक्ष्मीकांतम्मा से और आगे चलकर महान गुरु सिक्किल रामास्वामी पिल्लई से भरतनाट्यम का प्रशिक्षण लिया। वे उनकी वरिष्ठ शिष्याओं में थीं।

1972 में वे दूरदर्शन से एक कार्यक्रम निर्माता के रूप में जुड़ीं। उन्हें नृत्य और संगीत विभाग के प्रोड्यूसर की जिम्मेवारी दी गयी। वहीं कवि और दूरदर्शन के नये प्रोड्यूसर कुबेर दत्त अपनी एक डाक्यूमेंटरी के संगीत और इफेक्ट के सिलसिले में उनसे मिले। फिर मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा। दोनों जीवनसाथी बन गये। इस दंपत्ति ने दूरदर्शन के लिए बेमिसाल कार्य किया। कवि असद जैदी ने ठीक ही लिखा है कि दोनों दूरदर्शन की आबरू थे। दोनों का जन संस्कृति मंच के साथ हार्दिक जुड़ाव था। कुबेर जी के निधन के बावजूद जो अत्यंत महत्वपूर्ण समकालीन मुद्दों पर जन संस्कृति मंच ने स्मृति व्याख्यान आयोजित किये, वे उनके सहयोग के बिना संभव नहीं हो पाते। आज जन संस्कृति मंच ने अपने एक सहयोगी को हमेशा के लिए खो दिया है।

कमलिनी दत्त को कई भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया था। उन्होंने साहित्य, शास्त्रीय कलाओं, दर्शन, धर्म, नृत्य, सौंदर्यशास्त्र, साहित्य और भाषाओं के ज्ञान का उपयोग दूरदर्शन कार्यक्रमों के लिए किया और इस माध्यम के स्वरूप को गढ़ने में अविस्मरणीय भूमिका निभाई। उन्होंने इन क्षेत्रों से संबंधित छिटपुट लेखन कार्य भी किया, जो असंकलित है।
वे स्त्री की स्वतंत्रता और समानता की पक्षधर थीं। उनके स्त्रीवाद को महादेवी वर्मा की परंपरा से जोड़ा जा सकता है। वैसी ही करुणा और ममतामयी स्वभाव उनके व्यक्तित्व की पहचान थी। सेवानिवृत्ति के बाद निरंतर खराब होते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने खुद को नृत्यकला के विकास के लिए समर्पित कर रखा था। वे अपने पीछे अपनी प्रतिभावान पुत्री पूर्वा धनश्री को छोड़ गयी हैं, जो भरत नाट्यम और विलासिनी नाट्यम की प्रतिभाशाली नृत्यांगना हैं और अपने आप में उनकी अमूल्य विरासत हैं। जन संस्कृति मंच पूर्वा धनश्री और कमलिनी जी के समस्त परिजनों और उनके चाहने वालों के शोक में शामिल है और अपनी संवेदना व्यक्त करता है।

जन संस्कृति मंच की ओर से सुधीर सुमन द्वारा जारी 

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