पटना। ‘नवादा कांड सत्ता संरक्षित ताकतों द्वारा अंजाम दिया गया है। बिहार में जारी जमीन सर्वेक्षण से इसके तार जुड़ते हैं। भूमाफिया गिरोह दलित-गरीबों की बस्तियों को जलाकर या बुलडोज करके उनका नामोनिशान मिटा देने की कोशिशें कर रहे हैं। बिना किसी पूर्व तैयारी के राज्य में जारी जमीन सर्वेक्षण दलितों-गरीबों पर हमले व उनकी बेदखली का पर्याय बनता जा रहा है। ‘
यह बातें पटना में पूर्व विधायक व खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष मनोज मंजिल ने 20 सितम्बर को संवाददाता सम्मेलन में कही। नवादा में घटित बर्बर कांड की जांच में गए माले के पूर्व विधायक सहित जिला सचिव भोला राम, नरेन्द्र प्रसाद सिंह, सुदामा देवी, अजीत कमार मेहता, मेवा लाल चंद्रवंशी, दिलीप कुमार, विजय मांझी और युवा नेता विनय कुमार शामिल थे।
संवाददाता सम्मेलन में गया जिला सचिव निरंजन कुमार भी उपस्थित थे।उन्होंने विगत कुछ दिनों में गया जिले में मुसहर समुदाय के 3 लोगों की हत्या और नवादा कांड की ही तर्ज पर बोधगया के बकरौर में महादलित बस्तियों पर हमले का मुद्दा उठाया।
कॉमरेड मनोज मंजिल ने कहा कि वर्तमान मामला 37.14 एकड़ के एक मालिक गैर मजरूआ प्लाॅट का है जिसे अब जिला प्रशासन रैयती जमीन बताकर मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रहा है। लंबे समय से इस जमीन पर दलित-गरीब जोत-आबाद कर रहे हैं। 1970 के सर्वे के दौरान अनुपस्थित जमींदार ने जालसाजी करके उसे अपने नाम पर चढ़वा लिया। लगभग 16.59 एकड़ जमीन कोे नंदू पासवान सहित डेड़ दर्जन लोगों ने अनुपस्थित जमींदार से मिलीभगत करके अपने नाम लिखवा लिया और दलित-गरीबों पर जमीन खाली करवाने का लगातार दबाव बनाते रहे हैं। मामला फिलहाल कोर्ट में है. लेकिन नया जमीन सर्वे को भूस्वामियों ने दलितों की बेदखली का एक मौका समझ लिया। इसी उद्देश्य से नवादा कांड रचाया गया है, ताकि नए सर्वे में जमीन भूमाफिया गिरोह के नाम पर चढ़ जाए. यदि समय रहते नीतीश सरकार ने सभी गरीबों के नाम जमीन बंदोबस्त कर दी होती तो आज यह घटना नहीं घटती।
उन्होंने कहा कि नवादा घटना बिना सत्ता संरक्षण के संभव ही नहीं है। स्थानीय थाना की मिलीभगत साफ दिख रही है। घटनास्थल से थाने की दूरी महज एक किलोमीटर है फिर भी 112 नंबर पर फोन करने के पश्चात पुलिस दो घंटे बाद पहुंचती है और मामले को रफा-दफा करने की ही कोशिश करती है। इसलिए इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
देदौर के कृष्णानगर में दबंगों के कारनामे में 34 परिवारों के 150 से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। पशु संपदा, अनाज सबकुछ जलकर नष्ट हो गया है। आतंक की वजह से अनिल मांझी की मौत हो चुकी है। जांच दल ने पाया कि लोग भय व आतंक के साए में जीने को मजबूर हैं। प्रशासन का दावा है कि पीड़ितों के लिए भोजन व आवास की व्यवस्था की गई है लेकिन हमारे जांच दल को इसकी घोर कमी दिखी। प्रशासन के रवैया में कोई सुधार नहीं है। प्रशासन द्वारा पीड़ितों को उपलब्ध कराया गया एक लाख 5 हजार का मुआवजा काफी कम है। प्रत्येक परिवार को कम से कम 10 लाख रु. का मुआवजा मिलना चाहिए। इस नृशंस घटना के लिए वहां के डीएम व एसपी पर कार्रवाई होनी चाहिए।
पूर्व विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि गया जिले में बोधगया थाने के बेकरौर में दलित बस्ती पर हमला किया गया। वहाँ 80 लोगों के नाम जमीन आवंटित की गई थी जिसपर भूस्वामियों की निगाह है। तीन महीना पहले संदिग्ध तरीके से 31 झोपड़ियों में आग लगा दी गई थी। 14 सितंबर केा 55 अन्य गरीबों के बीच जमीन का बंटवारा हुआ. लेकिन 17 सितंबर की ही रात दर्जनों दबंगों ने हरवे-हथियार से लैस होकर गरीबों की झोपड़ियों पर हमला कर दिया। महिलाओं के साथ बदसलूकी की, उनके कपड़े फाड़े और लाठी-डंडा से पिटाई की। हाल के दिनों में गया जिले में मुसहर व अन्य दलित समुदाय पर हमलों की बाढ़ सी आ गई है। टिकारी में सामंतों ने संजय मांझी का हाथ काट डाला। खिजरसराय में 100 रु. बकाया मजदूरी मांगने पर सजन मांझी की हत्या कर दी गई और कुछ दिन पहले बाराचट्टी में राजकुमार मांझी की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। बलात्कार की भी कई घटनाएं प्रकाश में आई हैं।
भाकपा-माले ने कहा कि वह लैंड सर्वे अभियान को दलित-गरीबों की बेदखली व उनपर हमले का अभियान नहीं बनने देगी। बिहार सरकार भूमाफियापरस्त है। सबसे पहले वह बरसो बरस से बसे दलितों-गरीबों के वास-आवास की सुरक्षा के ठोस कानूनी व प्रशासनिक उपाय करे। भाकपा-माले बिहार सरकार को आगाह करती है कि दबंगों के बढ़े मनोबल पर रोक लगाए। कमजोर लोगों के हक-अधिकार व जीवन की रक्षा में सरकार व प्रशासन द्वारा बरती जा रही लापरवाही का करारा जवाब बिहार की जनता उन्हें आने वाले दिनों में देगी.